शक का बीज – पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : रेवा सीधी सादी ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी, समझदार, बहुत ही सुन्दर लड़की थी।वह बारहवीं कक्षा तक पढ़ी थी। गॉंव में कॉलेज नहीं था, आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ता था। बारहवीं के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी। घर पर उसकी माँ के साथ रहकर उसने गृहस्थी के सभी कार्य सीख लिए थे।

विरेन्द्र उनकी बिरादरी का था, और किसी वैवाहिक कार्यक्रम में उसने रेवा को देखा था। उसकी सादगी और सुन्दरता पर वह मोहित हो गया। उसकी शहर में एक बड़ी कम्पनी में मैनेजर की पोस्ट पर नौकरी लग गई थी। उसने अपनी मंशा अपने माता -पिता को बतलाई उन्हें भी रेवा पसन्द आ गई। रेवा के पिताजी रामेश्वर जी तो बहुत प्रसन्न हुए मगर रेवा की मॉं अवन्ती जी मन ही मन डर रही थी कि उनकी बेटी सीधी सादी है शहर के माहौल में कैसे रहेगी।

तब रामेश्वर जी ने कहा कि-‘अवन्ती तुम व्यर्थ चिंता करती हो, हमारी रेवा बहुत समझदार है। विरेन्द्र जी और उनके परिवार के लोग भी बहुत अच्छे‌ हैं,तुम्हारे काका के लड़के रतन की बेटी लता भी उसी शहर में है। वे जमाई जी भी,  विरेन्द्र जी की कम्पनी में नौकरी  करते हैं। यह बात सुनकर अवन्ती के मन को शांति मिली, उन्होंने रेवा से कहा कि बेटा तुझे वहाँ कोई परेशानी हो तो  तेरी बहिन लता भी उस शहर में रहती है, दोनों बहिने प्रेम से रहना।

रेवा की शादी हो गई और वह शहर में आ गई। उसके लिए माहौल नया था, मगर वह गृहस्थी के कार्य में बहुत होशियार थी,,उसने घर को व्यवस्थित तरीके से जमाया और सुचारू रूप से अपनी गृहस्थी चलाने लगी। विरेन्द्र और वे दोनों बहुत प्रेम से रहते, हर रविवार को कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाते। जीवन बहुत खुशी -खुशी चल रहा था।

लता का घर उनके घर से ज्यादा दूर नहीं था। कहने को तो वह उसकी बहिन थी, बोलती भी अच्छे से थी मगर जब भी वह रेवा को उसके पति के साथ गाड़ी पर जाते देखती ईर्ष्या से जल भुन जाती। लता का पति उसकी कम्पनी में एक छोटी पोस्ट पर नौकरी करता था। वह मौका ढूंढती रहती कि किस तरह रेवा और उसके पति के बीच दरार डाल दे, उनकी खुशी उसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी, और उसे वह मौका मिल गया।
एक बार कम्पनी में आडिट होने वाला था। पूरे ऑफिस का काम व्यवस्थित करना था।

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रात की ग्यारह बज गई थी और विरेन्द्र घर नहीं आया था। उसका फोन लग नहीं रहा था, उसके फोन की बेटरी डिस्चार्ज हो गई थी। रेवा‌ को घबराहट हो रही थी, उसने लता को फोन लगाया और पूछा -‘क्या जीजाजी घर आ गए हैं, ये अभी तक नहीं आए, न इनका फोन लग रहा है, मुझे घबराहट हो रही है।’ लता ने कहा ये तो छह बजे ऑफिस से निकल जाते हैं,

मैंने कह रखा है कि समय पर घर आ जाओ। रात के ग्यारह बजे कौनसा ऑफिस खुला रहता है?  तू बहुत भोली‌ है, विरेन्द्र जी पर नजर रखा कर। उनसे कह देना कि वे समय‌ पर घर आए। अच्छा मैं फोन रखती हूँ, वो आ जाए तो खबर करना। और तू चिंता मत कर वो आ जाऐंगे।’ उस दिन विरेन्द्र रात को दो बजे घर पर आया।

उसने भोजन नहीं किया और सो गया। दूसरे दिन भी सुबह जल्दी ऑफिस के लिए निकल गया। रेवा ने पूछा तो बोला अभी दस बारह दिन ऐसा ही चलेगा। कम्पनी में आडिट होने वाला है। वह कुछ नहीं बोली उसने सोचा ऑफिस में काम ज्यादा होगा। दूसरे दिन लता उसके घर आई और बोली ‘जमाई जी रात को कितनी बजे आए।

‘ रेवा ने कहा- ‘दो बजे’ ‘बापरे! तेरे जीजाजी तो कभी इतनी देर ऑफिस में नहीं रूके, इतनी रात तक कोई काम चलता है क्या? तू मेरी बहिन है इसलिए कह रही हूँ, तू जमाई जी पर नजर रख, उनसे पूछ की वे इतनी देर‌ ऑफिस  में क्या करते हैं। अगर तेरे जीजाजी इतनी देर से आए ना, तो मैं तो घर का दरवाजा भी नहीं खोलू। मुझे तेरी चिंता होती है, इसलिए कह रही हूँ। अच्छा अब जाती हूँ, कोई जरूरत लगे तो बताना, तेरी बहिन हमेशा तेरे साथ है।

रेवा सोच रही थी कि उसकी बहिन उसका कितना ध्यान रखती है। वह बोली-‘दीदी आप आती रहना, मुझे यहाँ आपका ही सहारा है।’ ‘हां रेवा मैं आती रहूँगी तू अपने को अकेला मत समझना।’ जब लता को लगने लगा कि रेवा उसकी बातों पर विश्वास करने लगी है, तो एक दिन उसने कहा रेवा तेरे जीजाजी कह रहै थे कि रूपाली जो जमाई जी की सेक्रेटरी है।

वह जमाई को पसंद करती थी, उनसे शादी करना चाहती थी मगर जमाई जी के माता-पिता को वह पसंद नहीं थी, इसलिए जमाई जी ने तुझसे शादी की। वह भी रात को जमाई जी के साथ ऑफिस में रूकती है, तू सम्हल कर रहना ये शहर की लड़कियां…..। ‘ अच्छा अब तेरे जीजाजी के आने का समय हो गया है। मैं घर जाती हूँ अपना ख्याल रखना।

लता ने यह बात मन से बनाकर कही थी ताकि रेवा विरेन्द्र से उसके बारे में पूछे और दोनों के रिश्ते में दरार आ जाए। लता के जाने के बाद रेवा उसकी कही बातों को याद कर बैचेन हो‌ रही थी। लता उसके मन में शक का बीज डालकर घर चली गई। विरेन्द्र जब रात को घर आया तो उसे परेशान देख कर उससे कहा – ‘रेवा  अभी मैं तुम्हें समय नहीं दे पा रहा हूँ, अगर तुम्हे परेशानी हो रही हो, तो तुम कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओ।

रेवा‌ के दिमाग में तो लता की कही बातें जगह बना चुकी थी। उसने विरेन्द्र की बातों का गलत मतलब निकाल लिया और बोली -‘हाॅं मुझे मायके में भेजकर आप मौज मस्ती करे, उसने बिना सोचे समझे पूछ लिया कौन है ये रूपाली?’ विरेन्द्र सुलझी हुई सोच वाला व्यक्ति था। वह बोला- ‘तुमसे रूपाली के बारे में किसने क्या कहा? मैं नहीं जानता, न जानना चाहता हूँ। पर तुमने प्रश्न पूछा है तो  बताता हूँ। रूपाली एक अनाथ लड़की है। हमारे घर पर सेवक राम भैया काम करते थे,

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रूपाली उनकी इकलौती संतान थी। एक सड़क दुर्घटना में सेवक राम और उनकी पत्नी शांत हो गए। उस समय रूपाली दसवी कक्षा में पढ़ती थी। तभी से उसके लालन पालन और पढ़ाई की जिम्मेदारी पापा ने अपने ऊपर ले ली।जब मेरी नौकरी लगी तो पापा ने कहा -“कि यह तुझे अपना भाई मानती है, तू अपनी कंपनी में इसे नौकरी दिलवा दे। तेरे संरक्षण में रहेगी।

आत्मनिर्भर बन जाएगी तो अच्छा लड़का देखकर उसका  विवाह कर देंगे।” अभी भी कोई प्रश्न तुम्हारे मन में हो तो पूछ लो।” रेवा की गर्दन शर्म से झुक गई थी, उससे कुछ बोलते नहीं बन रहा था। उसने हाथ जोड़कर विरेन्द्र से क्षमा मांगी तो वह बोला-‘ रेवा तुम्हारी इस बात ने मेरा मन दु:खाया है, कि तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं है।

शादी का बन्धन विश्वास पर अवलम्बित रहता है, उम्मीद करता हूँ आगे से इस विश्वास को कायम रखोगी।’ उसका मन उदास हो गया था, वह थका हुआ था उसे नींद आ गई और रेवा की ऑंखों से नींद गायब हो गई थी। दूसरे दिन विरेन्द्र ऑफिस चला गया। लता रेवा से मिलने आई  उसने सोचा था कि आज तो रेवा और विरेन्द्र में झगड़ा हुआ होगा।

उसने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि रेवा ने कहा – ‘वाह लता दी, तुमने बड़ी दीदी होने का अच्छा फर्ज निभाया “तुम  पर विश्वास करना मेरी सबसे बड़ी गलती थी।” तुमने मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया। अब तुम कृपा करके अपने घर चली जाओ और फिर कभी यहाँ मत आना। मुझे कोशिश करने दो कि मैं अच्छी पत्नी बन सकूँ, मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है और मुझे उसे सुधारना है। रेवा ने लता को घर के बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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