कहते हैं पति-पत्नी से नाजुक रिश्ता कोई नहीं होता और इससे मजबूत रिश्ता भी कोई नहीं होता। दो अजनबी एक ही रास्ते के मुसाफिर बन जाते हैं जिनकी मंजिल भी एक ही होती है। विश्वास इस संबंध की सबसे बड़ी कड़ी है और जब वह विश्वास इस रिश्ते में से चला जाता है तो शक का बीज किधर से आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही वैदेही के साथ हुआ था।
अभी राघव से उसकी शादी को 1 साल पूरा भी नहीं हुआ था। छोटी-छोटी बातों पर दोनों लड़ने लगे थे एक दूसरे को ताना देने लगे थे। शायद लोग सही कहते हैं लव मैरिज सफल नहीं होती। वैदेही अक्सर राघव को सुनाती रहती थी की शादी से पहले तुम मेरे पीछे पागल थे तुम ही कहते रहते थे कि अगर तुम्हारी शादी मुझसे नहीं हुई तो मैं पागल हो जाऊंगा।
तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है। मैं तुम्हें किसी और के साथ नहीं देख सकता उधर राघव के मन में भी यही सब चलता रहता है। न जाने किसकी नजर लग गई उनके प्यार को सब कुछ ठीक ही चल रहा था लेकिन करीब 20 दिन पहले वैदेही की दोस्त मिताली ने बताया कि उसने राघव को उसके ऑफिस की सहकर्मी आयशा के साथ एक मॉल में घूमते हुए देखा था।
उसी दिन उसकी पॉकेट से दो मूवी की टिकट भी मिली थी। तब से ही दोनों के बीच झगड़ा चल रहा है। राघव वैदेही को समझा समझा कर हार गया है। लेकिन वैदेही उस पर विश्वास करने को तैयार ही नहीं है।शक ऐसा ही होता है जो हम देखना चाहते हैं वही दिखता भी है। आज जब राघव ऑफिस से आया तो वैदेही सो रही थी। कितनी मासूम और प्यारी लग रही थी राघव उसके पास बैठकर उसके बाल सहलाने लगा
वैदेही उसके लिए चाय बनाने जाती है तो उसका हाथ पकड़ कर वहीं बैठा लेता है और कहता है देखो वैदेही मैंने आज तक तुम्हारे सिवा किसी को नहीं चाहा है। वैदेही सब कुछ भूल कर उसके गले लग जाती है
अगले दिन राघव के ऑफिस से सेक्रेटरी का फोन आता है कि आज सर ऑफिस क्यों नहीं आए हैं। किसी अनहोनी की आशंका से वैदेही घबरा जाती है
लेकिन 10 मिनट बाद ही सेक्रेटरी का दोबारा फोन आता है और वह बताता है कि साहब किसी काम से आयशा मैडम के साथ गए थे अभी-अभी आए हैं आप चिंता मत कीजिए। वैदेही गुस्से से तमतमा जाती है। शाम को ऑफिस से आने पर राघव उसे देखकर पूछता है क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तब वैदेही कहती है जी नहीं मेरी तबीयत को कुछ नहीं हुआ है। राघव को लगता है कि अगर और कुछ पूछा तो ज्वालामुखी फट जाएगा इसलिए चुप ही रहता है। लेकिन वैदेही बोल पड़ती है । मैं पागल हूं ना जो तुम्हारी चिकनी चुपड़ी बातों में आ जाती हूं मर्द सब एक जैसे होते हैं।
हर रोज ही किसी न किसी को कहते होंगे तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है। यह औरतें ही है जो किसी को दिल में बसा लिया तो उम्र भर उसके अलावा किसी और को नहीं सोचती। यूं ही करवट बदल कर दोनों सो जाते हैं। अगले दिन संडे होने की वजह से दोनों को सोते हुए काफी देर हो गई थी। डोरबेल बजती है वैदेही दरवाजा खोलती है तो सामने आयशा के साथ एक आदमी को देखकर चौंक जाती है और सोचती है।
अच्छा मैडम मेरे घर तक भी आने लगी, इससे पहले। वैदेही कुछ कहती है आयशा बोल पड़ती है- राघव आपकी जितनी तारीफ करता है आप उससे कहीं ज्यादा सुंदर हो मैं राघव का शुक्रिया करने आई हूं जिसने मेरी टूटती हुई गृहस्थी को बचा लिया ये मेरे पति हैं और राघव के दोस्त भी। हम दोनों एक साल से एक दूसरे से अलग रह रहे थे , इन्हीं की कोशिशें का नतीजा है कि आज हम साथ खड़े हैं।
किसी न किसी बहाने से इन्होंने हम दोनों को कितनी बार मिलवाया है ताकि हम अपने रिश्ते में आई गलतफहमियां दूर कर सके। आज हमारी शादी की तीसरी वर्षगांठ है इसीलिए हम तुम्हें निमंत्रण देने आए हैं कहते कहते उसकी रुलाई फूट जाती है। अब वैदेही को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी। वे दोनों यह कहकर तुरंत वहां से चले जाते हैं कि हमें शाम की पार्टी का इंतजाम भी करना है। वैदेही राघव से माफी मांगती है और राघव उसके आंसू पोछता हुआ कहता है अरे यही तो मैं समझाने की कोशिश कर रहा था मगर तुम समझना नहीं चाह रही थी। राघव वैदेही के सिवा किसी का हो सकता है क्या?
हम दोनों पर ही सिर्फ एक दूसरे का अधिकार है। कोई तीसरा हमारे बीच में कभी नहीं आ सकता। बस एक दूसरे पर हमारा भरोसा यूं ही बना रहे।
पूजा शर्मा
स्वरचित।
दोस्तों आपको मेरी रचना कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं।