शादी का फैसला – अमिता कुचया : Moral stories in hindi

आज मां के चेहरे की चिंता देखते हुए नीना ने मां से कहा -” मां मेरी शादी की इतनी चिंता क्यों??? लोगों का काम ही है ,दस बातें करें और सुनाए , आप सुनती ही क्यों हो ? क्या आप कह नहीं सकती, मेरी बेटी की जिंदगी का सवाल है, जब तक मेरी बेटी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती, तब तक हम शादी नहीं करेंगे।ये बातें मां बेटी की बीच चल ही रही थी तभी दादी कहने लगती- ” नीना बिट्टू लड़की की शादी सही उम्र पर हो जाए तो दुनिया उंगली नहीं उठाती।बस हम लोग तो यही चाहते हैं तेरे हाथ कब पीले हो जाए।

ये सुनते ही नीना दादी से कहती- वाह दादी आपको दुनिया की चिंता है, पर मेरी नहीं!!!कि मैं क्या चाहती हूं। दादी और मम्मी आप लोग सुन लो, मैं साफ- साफ कह रही हूं।मैं अपनी जिंदगी का अहम् फैसला खुद करना चाहूंगी।कि मेरी शादी कब हो। “

 खैर….

 बातें यही खत्म नहीं हुई….हर दो चार दिन में यही बात होती ,तब भी नीना यही कहती मुझे अभी शादी नहीं करनी ,यह स्पष्ट करके नीना कह चुकी थीं। फिर भी समाज के डर से परिवार के सभी लोग उस पर दबाव बना रहे थे। उन्हें लगता था कि समय से  शादी नहीं हुई तो अच्छे रिश्ते नहीं मिलेंगे।

जब भी कोई रिश्तेदार आता तो पूछता कि बिटिया की शादी बात चल रही है क्या?कहां बात चल रही है?

कभी कोई पूछता नीना की कितनी उम्र  हो गई है? इस तरह   घर आते- जाते लोग कोई भी यहीं बातें करने लगता।अब तो 

नीना की मां भी शादी या सामाजिक कार्यक्रम में भी जाने से कतराने लगी। सब पूछते कि बिटिया की शादी कब कर रही हो? मंजुला बहन ….

ऐसे  में नीना ने कहा -” मम्मी आप

 लोगों के सवाल के डर से जीना थोड़े ही छोड़ देंगी। कहीं आना जाना छोड़ देंगी,आप लोगों से क्यों नहीं कहती कि हमें अपनी बेटी की शादी जब करना होगी कर देंगे। ऐसा क्यों नहीं कहती ,क्या मैं आप पर बोझ हूं?

आप क्या चाहती है ये बताइए ?

पापा की तरफ से कोई चिंता नहीं है।तो आप अपनी सोच क्यों नहीं बदलती है।आपकी बेटी ससुराल में अपने आप समर्थ तो रहेगी ना•••मैं जहां चाहूं जैसे खर्च करु,कम से कम हाथ तो फैलाने नहीं पड़ेंगे। मौसी को देखो वो पढ़कर सर्विस करने लगी तो उनका अलग ही स्टेट्स है। और आप केवल घरेलू काम करने वाली ही रह गई। मैं आप की तरह अपने पति पर निर्भर नहीं रहना चाहती हूं।इतना सुनते ही मंजुला जी ने कहा- बेटा तू सही कह रही है।

अब बात साफ हो गयी थी, नीना की शादी वह उसकी नौकरी के बाद ही करेंगी। उसने पापा से भी कहा-‘ पापा मैं ऐसे लड़के से शादी करुंगी। जिसका अच्छा कैरेक्टर  होने के साथ ही नौकरी करने वाला हो ।और मैं पहले कैरियर पर फोकस करुंगी। जब मेरी नौकरी लग जायेगी तभी शादी के बारे में सोचूंगी।’

तब पापा ने कहा-” हां हां नीना तुम नौकरी के लिए तैयार हो जाओ ,जब तुम्हारी सर्विस लगेगी तब ही लड़के देखेंगे।”

पापा भी आधुनिक विचारों वाले थे। उन्हें नीना की सोच पर गर्व था ,वो चाहते थे। बिटिया अपने पैरों पर खड़ी हो जाये। ताकि भविष्य में उसे कभी भी जीवन में कोई परेशानी नहीं हो।

इस तरह पापा के कारण ही नीना आगे तक पढ़ पाई। और अब उसे केवल सरकारी नौकरी का इंतजार था कि कब कोई पोस्ट मिल जाए, वह नौकरी करने लगे ,बी.एड करके एम .फिल .कर रही थी।बस अच्छी पोस्ट के लिए इंटरव्यू भी दे चुकी थी।

उसे लगता कि ऐसे ही मेरी मेहनत बेकार न जाए।उसे लगता ससुराल में केवल उनके हिसाब से  चलना ही न पड़ जाए ।दो साल से परीक्षा दे रही थी।पर अभी तक उसके हिसाब से नौकरी नहीं मिल रही थी।अभी भी रिश्तेदारों और पड़ोसियों के मुंह कहां बंद थे।खैर समय निकल रहा था।

एक दिन पड़ोस वाली भाभी अपने ननद के देवर का रिश्ता लेकर आई तब उसकी मां ने कहा – ” मेरी बेटी हम पर बोझ नहीं है, हमें अभी नीना बेटी की शादी एक साल‌ नहीं करनी है।” तब मंजुला जी से पड़ोस वाली पंडिताइन भाभी बोली-” अरे हम तो अपना समझ कर आए थे।पर आप लोग के भाव ही बढ़े हैं।हमारा ननद का देवर भी कम नहीं है। उसके लिए अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे हैं। हमने सोचा अपनी नीना उनके घर चली जाए।पर कोई बात नहीं है।”

ये मम्मी की मनाही सुनते ही नीना सोचने लगी अगर मैं बिना नौकरी के ही शादी करती हूं , तो मेरी सर्विस लग ही नहीं पाएगी,  वो जानती है कि ससुराल वाले चाहते  हैं ,तभी कोई शादी शुदा लड़की नौकरी कर पाती।बाकी  नौकरी के पहले ससुराल में दूसरे कर्तव्य महत्वपूर्ण हो जाते हैं। कभी सास ससुर की सेवा या  कभी घर के दूसरे दायित्व! इसलिए उसने निश्चय किया कि नौकरी लग जायेगी तो मेरी मेहनत बेकार नहीं जाएगी।

मैं इस लायक तो हूं ,पहले क्या करना है ये सोचूं!

पर दादी का‌ दवाब बना रहता कि नीना बिट्टू की शादी कब हो जाए।वो कहती बिट्टू तू चाहे कितना भी कमा ले पर घर आकर करना तो चौंका चूल्हा ही करना है‌।

तब उसकी मम्मी कहती – ” नीना बिट्टू तेरी नौकरी को लेकर जो सोच है, वह अच्छी है।पर काम की दोहरी जिम्मेदारी होगी। जैसे तेरी मौसी की है।” उसने कहा – ” मम्मी  ससुराल वाले अच्छे मिले तो सब मैनेज हो जाता है।

फिर भी वह मम्मी से पूछती -” मम्मी आप चाहती क्या हो! जो मैंने इतने सालों पढ़ाई पर मेहनत की, वो बेकार जाने दूं।पढाई पर पैसा लगा वो अलग बेकार जाने दूं?

तब मंजुला जी कहती -मैं तेरे से जबरदस्ती थोड़े ही कर रही हूं।पर लड़का देखने में समय तो लगता ही है।हम लोग को देखा सुनी तो करने दे।तब नीना कहती -” ठीक है मम्मी आप लोग देखना चालू करो पर शादी तभी करुंगी जब मेरी पसंद का लड़का होगा, कम से कम खुले विचारों वाला हो।

ठीक है ,पर मैं नौकरी लगने के बाद ही शादी करुंगी ,इस तरह वह मानसिक रूप से तैयार हो जाती है।

इस तरह जहां भी रिश्ते की बात करते हैं, तब यही कहते हम बिटिया को अपने पैरों पर खड़ी कर दे, तब शादी करेंगे।

अब शादी के रिश्ते की बात चलती है तो उसके परिवार वाले उसकी भावनाओं को समझते हुए नीना की शादी तभी करते हैं।जब उसकी नौकरी लग जाती है उसके अनुकूल परिवार और लड़का चुनते हैं,जहां वह अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए खुला जीवन जी रही है।वह खुश हैं कि उसने अपनी शादी के फैसले में जल्दबाजी नहीं की।

आज नीना नौकरी के कारण आत्मनिर्भर हैं।

दोस्तों -आज के समय पुरानी सोच काम नहीं करती , लड़की बड़ी हो जाये , तो शादी कर दो। बल्कि आत्मनिर्भर बनाना भी जरुरी हो गया। ताकि औरत को कभी किसी से कम न समझा जाए।चाहे परिस्थिति कैसी भी  हो। उसमें आत्मनिर्भरता होनी चाहिए।

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आपकी अपनी दोस्त 

अमिता कुचया

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