नेहा पढ़ी लिखी और सुंदर थी।पहली नजर में ही वो सबको पसंद आ जाती थी पर जब मुंह खोलती तो इतना कड़वा बोलती कि उसके सारे गुणों पे पानी फिर जाता।उसने इंजीनियरिंग के साथ साथ एम.बीए.भी किया था। उसे बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई थी।ऑफिस में भी रोज किसी न किसी के साथ उसका झगड़ा हो जाता था।
वजह उसकी कठोर वाणी होती थी।घर आकर वो अपनी माँ को सब बताती तो उसकी माँ उसे बहुत समझाती,कि तू अपनी बोली को सुधार ले तो सारे झगड़े खत्म हो जाएंगे।नेहा की वाणी में तो कोई सुधार नहीं हुआ पर अपनी काबिलियत के बलबूते पर वो बड़े पद पर पहुँच गई।उसने दूसरी कंपनी ज्वॉइन कर ली।
वहीं उसकी मुलाकात रोहित से हुई।रोहित बहुत हैंडसम था और नेहा से एक पोजिशन ऊपर था।कुछ ही मुलाकातों बाद रोहित और नेहा एक दूसरे को पसंद करने लगे। दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया।हालांकि रोहित को कभी कभी नेहा की कड़वी बोली अखर जाती थी पर वो यही सोचता कि शादी के बाद धीरे धीरे नेहा का व्यवहार ठीक हो जाएगा।
रोहित के घर वाले बहुत सीधे थे उन्होंने भी बेटे की पसंद पर अपनी मोहर लगा दी।नेहा और रोहित की शादी हो गई।बिदाई के समय नेहा की माँ ने उसे यही सीख दी थी,कि ससुराल में जाकर सबसे अच्छे से बात करना कभी भी किसी से बुरा नहीं बोलना क्योंकि उसे नेहा की बोली की ही चिंता थी उसने राहुल से भी हाथ जोड़कर कहा -“बेटा,नेहा कभी कुछ बुरा बोल दे तो इसे प्यार से समझा देना अब ये तुम्हारी अमानत है।”
“माँ,आप बिल्कुल चिंता न करें मैं सब संभाल लूंगा।”रोहित ने नेहा की माँ को भरोसा दिलाया।
घर में बहु आ जाने से रोहित के माता-पिता बहुत खुश थे।वो नेहा के बहुत लाड मनाते थे।रोहित की एक बहन थी उसकी शहर में शादी हुई थी।वो अक्सर संडे को मायके आती थी।नेहा के लिए कभी कोई गिफ्ट या मन पसंद खाने की चीज लेकर आती थी।कुछ समय तक तो नेहा नंद को बर्दाश्त करती रही
फिर एक दिन उसने अपना जहर उगल ही दिया।नंद से बोली-” दीदी,बुरा नहीं मानना आप हर संडे मायके आती हो कभी कभी कहीं और भी चली जाया करो।क्योंकि मुझे और रोहित को एक ही दिन मिलता आराम करने के लिए।” रोहित नेहा को चुप रहने का इशारा कर रहा था पर उस पर कोई असर नहीं पड़ा।
उसने जो कहना था वो कह दिया।रोहित की माँ को बुरा लगा पर वो कुछ नहीं बोली।बहन के जाने के बाद रोहित ने नेहा को प्यार से समझाया,कि दीदी बड़ी हैं उनसे ऐसे नहीं बोलना चाहिए था वो नाराज हो जाएंगी।नेहा तुनककर बोली-“हो जाएं तो हो जाएं मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।मेरी भी अपनी लाइफ है मुझे भी अपने हिसाब से जीना है।”
रोहित ने नेहा से बहस करना उचित नहीं समझा वो अपने कमरे में जाकर लेट गया।अच्छा भला माहौल खराब हो गया।रोहित की बहन ने उस दिन के बाद से मायके आना कम कर दिया।
जैसे तैसे सब ठीक चल रहा था।क्योंकि रोहित नेहा की बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं देता था।उसकी गलतियों पे पर्दा डाल देता था।इसका नतीजा ये हुआ कि अब तो नेहा सास ससुर से भी अच्छे से बात नहीं करती थी।वो बेचारे बेटे का मुंह देखकर चुप हो जाते थे।
संडे का दिन था नेहा ने रोहित के साथ शाम को मूवी देखने का प्रोग्राम बनाया था और उसके बाद बाहर ही खाना खाने का प्रोग्राम था।
रोहित की माँ सुबह से बिस्तर पर ही लेटी थी और कुछ खा पी भी नहीं रही थी तो रोहित के पिता को चिंता होने लगी वो रोहित से बोले -“बेटा,देख लग रहा है तेरी माँ की तबियत ठीक नहीं है इसने सुबह से एक दाना भी मुंह में नहीं डाला।”
“बाऊजी,मैं अभी थर्मामीटर लेकर आता हूं।”
रोहित ने माँ को थर्मामीटर लगाकर देखा तो उसे दो तक बुखार था।उसने पिता से कहा कि वो शाम को डॉक्टर के पास ले जाएगा।
नेहा अपने कमरे में आराम कर रही थी।रोहित ने आकर उसे माँ के बारे में बताया और मूवी का प्रोग्राम कैंसिल करने के लिए कहा क्योंकि डॉक्टर के पास जाना था।
रोहित की बात सुनकर नेहा भड़क गई।गुस्से से बोली -“तुम्हारी माँ से हमारी खुशी देखी नहीं जाती इसलिए आज बुखार का नाटक कर रहीं हैं ताकि हम मूवी ना जा सकें।पहले तुम्हारी बहन हमारा संडे खराब करती थी अब तुम्हारी माँ के नाटक चालू हो गए।”
नेहा की बात सुनकर रोहित के सब्र का बांध टूट गया।वो चिल्लाते हुए बोला -“कुछ तो शर्म करो।बोलने से पहले एक बार सोच तो लिया करो कि किस के लिए क्या बोल रही हो?अब तक मैं तुम्हारी बतमिजियां बर्दाश्त करता रहा ये सोचकर कि तुम सुधर जाओगी..पर तुम तो हद पार करती जा रही हो।बड़े छोटे का कोई लिहाज नहीं है।”
नेहा ने सोचा नहीं था कि रोहित कभी उससे ऐसे बात करेगा।सास का हाल चाल पूछने की बजाय भुनभुनाती हुई बोली -“तुमने मुझे बतमीज कहा…तुम करो अपने माँ बाप की चमचागिरी मैं जा रही हूं अपने घर।”गुस्से से पैर पटकते हुए नेहा ने बैग में कपड़े डाले और अपनी गाड़ी से माँ के घर चली गई।रोहित ने भी रोका नहीं,उसे लगा रात तक वापिस आ जाएगी।
नेहा अचानक से घर पहुंची तो उसकी माँ को चिंता हुई।उसे जिस बात का डर हमेशा सताता रहता था वही बात हो गई।नेहा पति से झगड़ा करके आई थी। माँ ने नेहा को बहुत समझाया कि रोहित से माफी मांग ले और अपने घर चली जाए।पर नेहा ने ना जाने की जैसे कसम खा रखी थी।उसने रोहित को फोन भी नहीं किया।रोहित बेचारे ने दो तीन बार फोन किया
तो उसे उल्टा सीधा जवाब दे दिया।फिर उसने भी बात करना बंद कर दिया।एक दो बार रोहित के माता पिता ने भी नेहा को फोन किया और घर वापिस आने के लिए कहा तो उनको भी बुरा भला कह दिया।
रोहित और नेहा की बातचीत बंद हुए एक साल हो गया।नेहा ने अपनी कंपनी भी बदल ली।नेहा की माँ बेचारी बेटी की चिंता करते करते स्वर्ग सिधार गई।अब नेहा बिल्कुल अकेली पड़ गई थी।मायके के लोगों से भी उसकी नहीं बनती थी कारण वही उसकी कड़वी जुबान थी।
दीपावली का दिन था।नेहा बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी।पूजा का समान लेने के लिए वो बाजार के लिए निकल पड़ी। कार चलाते चलाते उसकी आंखे नम हो गईं उसे माँ की बहुत याद आ रही थी।मन ही मन कहने लगी-“माँ तुम शुरू से मुझे बुरा बोलने से रोकती रहीं पर मैंने तुम्हारी एक बात नहीं
मानी बल्कि दिन प्रतिदिन और ज्यादा गुस्सैल बनकर अपनी वाणी पर नियंत्रण खोने लगी।तुमने कहा भी था…कि शब्दों को पुष्प ना बना सको तो तीर भी न बनने दो।काश !मैंने तुम्हारी बात मानी होती तो आज रिश्तों के मेले में यूँ तन्हा न होती।”
पश्चाताप की अग्नि में जल रही नेहा ने ये निश्चय कर लिया,कि वह अपनी इस बुराई का सदा के लिए दहन कर देगी।उसने कार रोकी और उतरकर मिठाई की दुकान से बर्फी के डिब्बे लिए और चलदी अपने ससुराल रिश्तों में मिठास घोलने।
रोहित और उसके घर वालों ने भी सारे मतभेद भुलाकर नेहा का दिल से स्वागत किया।नेहा ने अपने किए की सबसे माफी मांगी और फिर से रोहित के साथ अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत की।
कमलेश आहूजा
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