सेवा का मेवा – उषा गुप्ता

“अरे ,कोई तो सुन लो ,बड़की …मझली …छोटी ,कोई तो आ जाओ।सारे कपड़े गीले हो गए हैं।बदल दो रे।” बिस्तर पर लेटे हुए सासु माँ का बोलना बराबर चालू था।

जब कोई नहीं आया तो व्हीलचेयर को घसीटते हुए राजेश बाबू अंदर आए और बोले,

“रमा बेटा “

” पापा ,बच्चों का स्कूल का समय हो गया है।मैं उन्हें छोड़ने जा रही हूँ।” बड़ी बहू ने उनकी बात को काटते हुए कहा।

“सुधा बेटी ..” अब मझली की बारी थी।

” पापा , इनके आफिस का वक्त है।मुझे टिफिन तैयार करना है।अभी तो बिल्कुल नहीं पापा।”

” मैं जाती हूँ पापा, आप बस यहाँ,मुन्नी के पास रुके रहें, ज़रा रो रही है और पलंग से कहीं गिर ना जाए।” कहते-कहते दूध की बोतल मुन्नी के मुंह से हटाते हुए और पापा का ज़वाब सुने बिना नैना दौड़ पड़ी सासू माँ के कमरे की ओर।

राजेश बाबू के लिए यह कोई नई बात नहीं थी।एक दुर्घटना वश वे व्हीलचेयर पर और उनकी पत्नी बिस्तर पर आ गई।तब से घर की सारी बहुओं का रवैया बदल गया है।कोई न कोई बहाना हर एक के पास होता है।उन दोनों के काम के लिए किसी के पास समय नहीं होता, बस नैना को छोड़कर।

राजेश बाबू खुद का तो जैसे तैसे कर लेते हैं पर पत्नी का करने में लाचार हैं।वे यह भी देखते रहते हैं कि नैना खाली बिल्कुल नहीं होती।बच्चे का ,रसोई का ,घर का और उन दोनों का भी ख्याल रखती है।माथे पर जरा भी शिकन नहीं लाती।हँसते-हँसते काम करती रहती है। राजेश बाबू के दिल से नैना के लिए दुआएँ निकलती रहती है।

साल भर से यही क्रम चल रहा है।तीनों बेटे भी देख कर अनदेखा और सुनकर अनसुना कर देते हैं।बस देखती और सुनती है तो वह है अकेली नैना।

यह सब देखकर आज उनके मन में कुछ विचार आया।अपने वकील को फ़ोन करके कुछ बताया और कागज़ तैयार करके लाने के लिए कहा।

दूसरे दिन सुबह-सुबह उन्होंने सभी बहू -बेटों को एकत्रित करके अपनी वसीयत पढ़कर सुनाई। जिसमें लिखा था कि उन दोनों पति-पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी सारी चल व अचल संपत्ति पर सिर्फ और सिर्फ नैना का अधिकार होगा।

स्वरचित

उषा गुप्ता

इंदौर

 

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