सेवा नहीं समर्पण – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi:  श्रुति…श्रुति…ओ श्रुति…..!  ऐसे अनसुना मत करो यार!

आकाश के कई बार आवाज लगाने के बावजूद भी वह भीड़ में घुसी जा रही थी।

श्रुति को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था । हाथ में चार -पांच सामान से भरा थैला लिये पसीने से लथपथ वह रिक्शे की तलाश में बढ़ती जा रही थी। बाजार की भीड़- भाड़ और रास्ते पर ट्रैफिक के कारण  उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। उसे तो जैसे भी हो बस जल्दी से जल्दी घर पहुंचना था।

अचानक से उसके आगे एक मर्सिडीज आकर खड़ी हो गई। श्रुति एकदम से घबड़ा गई। उसे बहुत गुस्सा आया। खुद को संयत करते -करते अखिरकार उसकी जुबान से कुछ अपशब्द निकल ही गया -” अंधे हो क्या ?”

“बदतमीज गाड़ी क्यों रोका रास्ते में? टकरा जाती तो? ”

“गाड़ी के ड्राइविंग सीट से सिर निकाल कर किसी  की आवाज आयी-” काश! तुम ने ऐसा ही किया होता!”

श्रुति ने अपने तमतमाते चेहरे को उस आवाज की दिशा में घुमाया और झल्लाकर बोली -” तुम्हारी हिम्मत कैसे……….इतना ही बोल पाई थी कि आकाश पर नजर पड़ी…!”

“आकाश ….!”

“तुम यहां”  ……तुम यहां!

आकाश अपना हाथ माथे पर रखते हुए बोला-” जी हाँ… श्रुति जी… मैं यहां……. तुम जहां मैं वहाँ. . ..!

श्रुति हड़बड़ाहट में भूल गई कि उसके हाथ में भारी सामान से भरा थैला है। आकाश से हाथ मिलाने के लिए जैसे ही बढ़ाया थैले हाथों से सरककर नीचे गिर पड़े। आकाश झट से गाड़ी का गेट खोल बाहर निकला और गिरे हुए थैलों को उठाने लगा।

रास्ते से गुजरने वाले आसपास लोग वहां इकट्ठे होकर झल्लाने लगे।

एक आदमी ने झिड़की देते हुए कहा-” ओ मिस्टर सड़क आपकी जमींदारी में है क्या जो बीच में गाड़ी खड़ी कर अपनी हैसियत दिखा रहे हो!”

दूसरे ने टिप्पणी की-” अरे भाई पैसे वाले कुछ भी करें कौन टोक देगा!”

तीसरे ने कहा-” एक तो महँगी गाड़ी ऊपर से साथ में सुंदर बीबी  दिखाएगें कैसे नहीं ! सो रोक दिया बीच रास्ते में!”

लोगों की इस टिप्पणी ने श्रुति को झकझोर दिया वह जल्दी -जल्दी अपने थैले को समेट कर आगे बढ़ने लगी। तभी आकाश ने उसके हाथों से थैले को लगभग खींचते हुए कहा-” श्रुति लोगों की बातों पर ध्यान मत दो और तुम मेरे साथ गाड़ी में बैठो ।आगे पार्किंग में चलते हैं वहां से तुम्हें जहां भी जाना होगा मैं छोड़ दूँगा। वहीं हाल समाचार पूछेंगे एक दूसरे का।”

श्रुति ना चाहते हुए भी गाड़ी में बैठ गई क्योंकि वह लोगों की टीका टिप्पणी से थोड़ी नर्वस हो गई थी।

आकाश ने आगे चलकर एक रेस्टोरेंट के पास गाड़ी रोक दी और बोला-” चलो श्रुति आज बहुत दिनों बाद तुम्हारे साथ बैठकर कॉफ़ी पीते हैं। ”

श्रुति एकदम से गंभीर लहजे में बोलीं -” नहीं नहीं आकाश मेरे पास समय नहीं है। मुझे घर पहुंचना है मेरे पति मेरा इंतजार कर रहे होंगे। उन्हें चाय पानी देनी है ।फिर दवा देने का समय भी निकला जा रहा है। ”

आकाश की भृकुटी थोड़ी टेढ़ी हो गई वह श्रुति को गौर से देखते हुए बोला-”  तुम वही श्रुति हो ना आकाश की दोस्त या फिर मैं किसी और को लेकर घूम रहा हूँ। ”

श्रुति खिसियानी सुरत बना कर बोली-”  मैं वही हूँ आकाश पर वक्त्त बदल गया है। मेरी जिम्मेदारी भी बदल गई है। निभानी तो पड़ेगी ना!”

आकाश गहरी सांस लेते हुए बोला-”  हाँ  तुम ठीक कह रही हो वक़्त वाकई बदल गया है। जो श्रुति मुझे देखे बिन एक दिन नहीं रह पाती थी । वह अब किसी दूसरे के लिए मुझे अनदेखा कर रही है। ”

आकाश अनदेखी नहीं कर रही हूँ मैं…श्रुति  समझाने  की कोशिश करने लगी। फिर पता नहीं उसके दिमाग में क्या आया बोली-” आकाश किसी दूसरे नहीं पति के लिए ….

समझ में आया! अच्छा छोड़ो गिले शिकवे आज जाने दो मुझे बहुत जरूरी है मैं तुमसे कल यहीं मिलती हूँ। ”

इतना कह कर वह अपने थैलों को गाड़ी से निकालने लगी ।आकाश आगे बढ़कर उसकी मदद करने लगा। श्रुति ने एक रिक्शे को रोका और उस पर बैठ कर जाने लगी। आकाश इंतजार करता रहा पर श्रुति ने एक बार भी पलटकर पीछे नहीं देखा। आकाश उसे तबतक देखता रहा जबतक कि वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गईं।

जैसे -तैसे आकाश ने आँखों -आंखों में रात काटी । वह रह रहकर इस विचार से बेचैन हो उठता था कि आखिर क्यों श्रुति ने उसके जैसे स्मार्ट और स्टेटस वाले लड़के को शादी के लिए मना कर दिया था। और  एक ऐसे लड़के को पसंद किया जिसे वह जानती तक नहीं थी । आकाश ने तो यह भी सुना था कि वह गरीब और अपाहिज था।

आकाश मन ही मन सोच रहा था चाहे जैसे भी हो वह जानकर ही रहेगा कि श्रुति जैसी तेज -तर्रार और सुंदर लड़की ने ऐसा निर्णय क्यूँ लिया।

दूसरे दिन सुबह से ही आकाश दिन के तीन  बजने का इंतजार करने लगा। जब वह नहीं आयी तो वह उसके बताये पते की और चल पड़ा।

गली -कूची वाले रास्ते को देख वह समझ गया था कि गाड़ी मुहल्ले के बाहर लगाना ही ठीक रहेगा। वह पैदल चलकर पड़ोसी के द्वारा बताए घर तक पहुँच गया। दरवाजा अंदर से बंद था। खटखटाने पर किसी मर्द की आवाज आई-” कौन है?”

आकाश थोड़ी देर के लिए हड़बड़ा गया फिर खुद को संभालते हुए बोला-” साहब पहले दरवाजा तो खोलीय

मैं श्रुति के ऑफिस से आया हूँ कुछ जरूरी काम है ।”

ओह अच्छा…भाई साहब मैं उठ नहीं सकता। दरवाजा बंद नहीं बस सटा हुआ है आप धक्का देकर अंदर आइये ।”

आकाश के थोड़ा धकेलते ही दरवाज़ा खुल गया। पूरे कमरे में सीलन था और दवा की बदबूद फैली हुई थी। उसने अपने पॉकेट से रूमाल निकाल कर मुँह पर रख लिया। कमरे के एक कोने में  व्हीलचेयर पर एक आदमी बैठा हुआ था। उसने आकाश को देखते ही हाथ जोड़कर प्रणाम किया और फिर सामने बेड पर बैठने का इशारा किया। शायद यही श्रुति के पति थे।

आकाश ने जल्दी में होने का बहाना बनाकर बैठने के आग्रह को टाल दिया। कमरे की दुर्गंध से उसे ऊबकाई  आने लगी थी । उसने श्रुति को जल्दी बुलाने का आग्रह किया।

भाई साहब आप थोड़ा इंतजार कीजिये वह आ जाएगी। इतने में श्रुति एक हाथ में पूजा की थाली और दूसरे हाथ में एक कटोरा दलिया लिए कमरे में आई। आकाश को देख थोड़ी नर्वस हुई पर संभलते हुए बोली-” आकाश ये मेरे पति हैं! उसने व्हीलचेयर की ओर इशारा किया…। और ये…हैं…

बीच में टोकते हुए उसके पति ने कहा-” मुझे पता है श्रुति ये तुम्हारे ऑफिस के बॉस हैं!”

श्रुति मन ही मन भगवान को लाख लाख धन्यावाद देने लगी। अच्छा हुआ उसने नहीं बताया कि वह उसका कॉलेज सहपाठी है वर्ना ये क्या सोचते कि वह यहां क्या कर रहा है। श्रुति घर के अंदर से एक कुर्सी उठाकर लाई और आकाश को बैठने के लिए कहा-” आइये सर बैठिए। ”

श्रुति के मुँह से आदर सूचक संबोधन सुनकर आकाश झेप गया। पीछे से श्रुति के पति ने टोका-” श्रुति, साहब किसी जरूरी काम से आए हैं तुम बाहर जाकर पूछ लो। मै खुद से दलिया खाने की कोशिश करता हूँ।

श्रुति आकाश को लेकर बाहर निकल आई और थोड़े गंभीर लहजे में बोलीं-” आकाश  मैंने तो कहा था न कि शाम को आऊंगी। फिर तुम क्यों चले आये। इन्हें पता चलता तो मैं इन्हें क्या बताती। ”

आकाश समझाने की कोशिश करते हुए बोला-” श्रुति तुम नहीं समझोगी-” अभी ही चलो मेरे साथ तुमसे कुछ बात पूछना है। ”

“ठीक है तुम यहीं रहो मैं उनको दलिया और दवा खिला कर आती हूँ।”

श्रुति अंदर चली गई और आकाश सोचने लगा कि कौन सा इन्द्रलोक का सुख देख श्रुति ने उसे ठुकराया था !

थोड़ी देेर  बाद श्रुति बाहर आई और बोली-” चलो आकाश चलते हैं पर मैं जल्दी ही लौट आऊंगी इन्हें समय से दवा देना रहता है।

श्रुति बार- बार मना कर रही थी कि वह ज्यादा दूर नहीं  जा सकती है। पर आकाश की भी आज जिद थी कि उसे अपने साथ लॉन्ग ड्राइव पर ले ही जाना है। उसके लाख ना -नुकर के बावजूद आकाश ने मना लिया। घूमने की माहिर श्रुति को क्या हो गया था कि जाने से मना कर रही थी।

जो भी हो आकाश बहुत खुश था। पहली बार पति  से दूर श्रुति को लेकर जा रहा था। कहीं उसका मन न बदल जाये इसलिए आकाश आसमान में उड़ रहे बादलों की तरह गाड़ी की रफ्तार के साथ साथ उड़ने लगा था।

उसने कनखियों से बगल में बैठी श्रुति को देखा वह आसमान में घुमड़ते बादलों को निहार रही थी। उसकी आँखों की चमक देख कर लग रहा था कि वह भी बहुत खुश है। कुछ दूर जाने के बाद उसने देखा श्रुति को उल्टियां आनी शुरू हो गईं। उसने इशारे से गाड़ी रोकने के लिए कहा। आकाश ने घबड़ाते हुए इशारे से कारण पूछा-” श्रुति क्या हुआ? ”

“आकाश रुक जाओ मेरा मन घूम रहा है शायद गाड़ी में बैठने की वजह से उल्टी जैसा मन हो रहा है।”

क्या कहा तुम्हें गाड़ी में चक्कर आ रहे हैं!

“घोर आश्चर्य!”

आकाश ने अपना हाथ माथे पर रखते हुए कहा-” जिस श्रुति को मैं जानता हूँ वह तो चौबीसों घंटे हवा में तैरना चाहती थी। ”

“आकाश गाड़ी वापस लो मुझे चक्कर आ रहे हैं।”

आकाश गाड़ी घुमाकर एक रोड किनारे ढाबे पर लगा दिया। उसने ढाबे के मालिक से कहकर श्रुति के मनपसंद पनीर पकौड़े,और पता नहीं क्या-क्या बनाने का ऑर्डर दिया। श्रुति चटखारे ले लेकर खाये जा रही थी और आकाश बस उसे देखे जा रहा था। खाना खत्म होने पर श्रुति ने कहा-”  मजा आ गया आकाश बहुत दिनों बाद मैंने अपने पसंदीदा व्यंजन खाये हैं धन्यवाद तुम्हारा!

अब चलो मुझे घर तक छोड़ दो! दोनों गाड़ी में बैठे अपने कॉलेज के दिनों को याद कर खूब ठहाके लगा रहे थे।

अचानक आकाश गंभीर होते हुए बोला-”

श्रुति,तुम चाहो तो अभी भी अपना निर्णय ले सकती हो !”

“किस बात का निर्णय आकाश ।”

“मुझसे शादी करने का।”

“…आकाश ..”

” एक शादीशुदा औरत से तुम्हें शर्म नहीं आई यह कहते हुए!”

आकाश भृकुटी टेढ़ी करते हुए बोला-” तो क्या गलत कहा है मैंने अपनी आँखों से देखता रहूं तुम्हें उस अपाहिज की सेवा करते हुए !”

ख़बरदार…. कहते हुए श्रुति ने एक चांटा रसीद कर दिया आकाश के गाल पर ….ख़बरदार जो मेरे पति को अपाहिज कहा मुझसे बूरा कोई नहीं होगा!

और रही सेवा करने की बात तो वह सेवा नहीं मेरा समर्पण है अपने पति और सुहाग के प्रति!”

अपाहिज वो नहीं  हैं बल्कि तुम्हारा समाज है जो गरीबो को अपाहिज समझता है और उसी समझ ने तुम्हारे दरवाजे से मेरे पिताजी को वापस किया था जो मेरी जिद पर शादी का प्रस्ताव लेकर गये थे।

गाड़ी रोक दो वर्ना मैं कूद जाऊँगी ।आकाश ने हड़बड़ा कर बीच सड़क पर ही गाड़ी रोक दिया। श्रुति धड़धड़ाती हुई गाड़ी से उतरकर एक ऑटो पर बैठ कर चली गई। आज आकाश का प्यार श्रुति के अपने पति के प्रति समर्पण के आगे बौना दिखाई दे रहा था।

स्वरचित एंव मौलिक

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

 

 

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