अरे…. देखिए ना जी…. वो हरा पत्ता कितना प्यारा लग रहा है …..वाह … इसका हल्का हरापन कितना प्यारा है….. सैवी ने बागान में टहलते हुए सुशांत को एक नन्हे पौधे की पत्ती दिखाते हुए कहा….।
काश… इस कलर की साड़ी मेरे पास होती….. सुनिए ना सुशांत… मेरे लिए खरीद देंगे… ये वाली हरे रंग की साड़ी……! सावन में हरे रंग की साड़ी पहनने का अलग ही मजा है… सैवी ने इतराते हुए सुशांत से अपनी इच्छा जाहिर की….।
सुशांत भी मजाक के मूड में थे…. बगल वाले पौधे की पत्ती गाढ़े हरे रंग का दिखा कर बोले ….अरे ये भी बहुत प्यारा है इस गाढ़े हरे रंग की साड़ी भी बहुत अच्छी लगेगी….।
पर सैवी…एक बात बताओ.. सावन के महीने में हरे रंग की साड़ी तुम मुझसे क्यों लोगी ….?? दो दो भाई है ….एक से हल्के हरे रंग की लेना ….और दूसरे से गाढ़े हरे रंग की…. रक्षाबंधन का त्यौहार जो आ रहा है…।
सुशांत सोच रहा था …सैवी को तो उसने छेड़ दिया है … अब चिढ़कर वो नोकझोंक करेगी …. !
पर ये क्या…. सैवी तो एकदम खामोश हो गई ….उसने जवाब में कुछ कहा ही नहीं…।
सुशांत को समझते देर न लगी ….पहले सावन आते ही सैवी का चहकना … रक्षाबंधन की तैयारी पूरे महीने भर करती…. साल भर इंतजार के बाद …..रक्षाबंधन का सबसे प्यारा त्यौहार सैवी के लिए आता …. जिसे वह पूरे हर्षोल्लास के साथ भाइयों के कलाइयों पर राखी बांधकर पूरा करती….!
और दोनों भाई भी सैवी के पसंद की साड़ी गिफ्ट में देते ….जिसे पहन कर सैवी इतराती इठलाती और मायके (भाई भाभी ) की प्रशंसा करते नहीं थकती ….शायद यही कारण था कि सैवी के लिए सभी त्योहारों से ज्यादा प्यारा रक्षाबंधन का त्यौहार ही होता था….!
परंतु पिछले दो वर्षों से ना जाने ऐसा क्या हुआ कि ….भाई भाभीयों ने रक्षाबंधन के त्यौहार को महत्व देना ही बंद कर दिया ……! पहले रक्षाबंधन के एक-दो सप्ताह पहले से ही फोन आ जाता था कि… कब आ रही है …जल्दी आइए …वगैरह-वगैरह…!
पर अब फोन आना तो दूर….. ना जाने पर …कोई पूछने वाला भी नहीं कि राखी में सैवी आई क्यों नहीं….? शायद भाभीयाँ भी यही चाहती थी… क्योंकि उनकी खुद की बेटियां दूर होने की वजह से हर वर्ष रक्षाबंधन पर नहीं आ पातीं थी …..! पर सैवी तो पास में थी ….अतः वो हर वर्ष रक्षाबंधन पर पहुंच कर…. भाइयों की कलाइयों में ….खुद राखी बांध कर…. दूर बैठी बहन भतीजियों को मुंह चिढ़ा कर ठेंगा दिखाती…..।
अरे सैवी क्या बात है ….?? तुमने कुछ कहा नहीं…. भाई भाभी की बात हो …और तुम पीछे रहो….. ये कैसा आश्चर्य मैं देख रहा हूं….??
सैवी का चेहरा अपने हाथों से ऊपर उठाते हुए सुशांत ने एक बार फिर मजाक कर छेड़ने की कोशिश की….।
अरे तुम्हारे आंखों में आंसू….?? ओह पगली…. मैं तो मजाक कर रहा था… तुम्हें कितनी और कौन-कौन से रंग की साड़ियां चाहिए बताओ …..मैं तुम्हें लाकर दूंगा ….तुम खामख्वाह दुखी हो रही हो …..सुशांत ने प्यार से सैवी का हाथ पकड़ते हुए कहा…।
नहीं सुशांत बात साड़ी कि नहीं है…… बात मान सम्मान और प्यार की है….. भैया भाभी की न जाने कौन सी ऐसी मजबूरी है ……जिसने उन्हें बहनों से इतना दूर कर दिया है…. मन में चल रहे उथल-पुथल को सैवी ने सुशांत के समक्ष रख दिया…।
कोई बात नहीं सैवी…. भाई बहन का त्यौहार है रक्षाबंधन …..उस दिन तो बहनें ही जाकर राखी बांधती है…. तुम रक्षाबंधन के दिन बिन बुलाए स्वयं चली जाना और भाई के हाथों में राखी बांधकर आ जाना…..! तुम्हारी मायके जाने की इच्छा और खुशी सब पूरी हो जाएगी ….एक बार फिर सुशांत ने सैवी को खुश करने की कोशिश की….।
बिल्कुल यही सोचकर पिछले साल मैं गई थी….. तुम्हें तो पता ही है ना सुशांत…. वहां मेरी कितनी उपेक्षा हुई थी….. अब वो पल दोबारा याद कर मैं दुखी नहीं होना चाहती….. और रक्षाबंधन के नाम पर कितना …..कितना…. सुशांत…..!
पूरे एक साल हो गए ….इतने पास होते हुए भी मेरे मोबाइल में भैया भाभी का एक कॉल भी कभी नहीं आया ….और ना ही कभी मुझसे मिलने आए….!
अब तो ऐसा लगता है जैसे… भैया भाभी भी सोचने लगे हैं … बड़ी ढीठ है… लालची है सैवी…. रक्षाबंधन के बहाने यहां आने का बहाना ढूंढती रहती है….।
रक्षाबंधन तो भाई बहन दोनों पक्षों का त्यौहार है ना सुशांत…
और सिर्फ साल में एक दिन राखी बांध देने से ही भाई बहन के प्यार का सर्टिफिकेट मिल जाता है…. बाकी के दिनों में बहनों से कोई मतलब नहीं…!
रिश्ते तो दोनों तरफ से निभाए जाते हैं ना सुशांत…. अब बोलो मुझे क्या अब भी वहां जाना चाहिए…।
सुशांत सैवी के प्रश्न पर वाकई गंभीर हो गया था…. सही ही तो कह रही है सैवी… सिर्फ एक ..रक्षाबंधन के दिन…. वो भी बहनों द्वारा ही रिश्ता बरकरार रखने का दायित्व रहता है क्या….??
आत्मसम्मान नाम की भी कोई चीज है…या नहीं….!
शाम को ऑफिस से लौटते ही सुशांत ने पैकेट पकड़ाते हुए बड़े प्यार से सैवी से कहा …… इसमें दो साड़ियां हैं…. हल्के हरे रंग की साड़ी आज पहनना …तुम पर बहुत प्यारी लगेगी…. हम घूमने चलेंगे ……पर आज तो रिमझिम बारिश हो रही है सुशांत……सैवी ने बाहर की तरफ इशारा करते हुए कहा … ! अरे पगली , सावन है तो पानी बरसेगा ही ना…… चलो तैयार हो जाओ…..!
साड़ी तो सैवी को मिल गई….. पर रक्षाबंधन और भाई के घर जाना सैवी के सामने अभी भी प्रश्न चिन्ह बना हुआ था ….. !
सुशांत ने सैवी को खुद से खुश करने की भरपूर कोशिश की….!
पर इस बार सैवी के साथ-साथ सुशांत ने भी आत्मसम्मान के साथ समझौता करने की सलाह नहीं दी..!
साथियों , ये सच है कोई भी बहन बेटी कभी भी मायके से रिश्ता खत्म करना नहीं चाहती… अंतिम सांस तक मायके के प्रति एक जुड़ाव मन में रहता ही है ..चाहे उम्र कोई भी हो …यदि मायके से रिश्ते मधुर है , तो मायके की याद आते ही होठों पर प्यारी सी मुस्कान आ जाती है …और यदि बदकिस्मती से थोड़ी खटास है तो दिल में कहीं ना कहीं एक कसक सी उठती है ….
और दुनिया की कोई भी बहनें एक भी मौका नहीं गंवाना चाहती मायके या भाई भाभी से जुड़ने का …!
भगवान करें सारे भाई बहनों के इस प्यारे रिश्ते को किसी की नजर ना लगे..!
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)
संध्या त्रिपाठी