सौतेला कौन ? – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

माही की नजर बार बार घड़ी की और जाती वो बेचैनी से दरवाजे तक जाती फिर वापिस सोफे पर आ बैठ जाती। उसके  बेटे उज्जवल को कॉलेज से आने में देर जो हो गई थी तो एक मां का बैचैन होना स्वभाविक था। तभी उज्जवल आता दिखा और उसकी जान में जान आई…!

” बेटा इतनी देर कहां लग गई मैं परेशान हो गई थी !” माही उससे बोली।

” क्यों …?” उज्जवल सपाट लहजे में बोला।

” क्यों क्या रोज तुम तीन बजे तक आ जाते हो आज पांच बज गए तो चिंता होना लाजमी है !” माही हैरानी से बोली।

” देखिए आपको मेरी फिक्र का नाटक करने की जरूरत नहीं है अब तो पापा भी नहीं हैं जिनके सामने आपका ये नाटक चल जाता था !” ये बोल उज्जवल अपने कमरे में चला गया।

आप सोच रहे होंगे एक बेटा अपनी मां से कैसे बात कर रहा है ये…क्या कोई बेटा इतना बदतमीज हो सकता है ? तो मेरा जवाब होगा जब मां दूसरी हो तो ऐसा हो सकता है भले वो दूसरी मां सगी मां से ज्यादा प्यार करती हो पर कई बार बच्चों को वो प्यार दिखावा लगने लगता है। माही उज्जवल के पिता नीतीश की दूसरी पत्नी है जब उज्जवल 10 साल का था तभी उसकी मां की मृत्यु हो गई थी और दो साल बाद नीतीश ने सबके समझाने पर विधवा माही से शादी कर ली थी

माही ने शादी के बाद उज्जवल को बहुत प्यार दिया यहां तक कि उज्जवल का प्यार बंट ना जाएं ये सोच नीतीश ने माही से दूसरा बच्चा ना करने की बात की जिसे माही ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पर दो साल पहले नीतीश की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद आस पास के लोगों और रिश्तेदारों ने उज्जवल के मन में माही को ले नकरात्मक बाते भर दी थी जिससे उज्जवल उसका तिरस्कार करता था माही सब सह जाती क्योंकि उसने नीतीश के आखिरी वक़्त में उससे उज्जवल का हमेशा ध्यान रखने का वादा किया था। माही नीतीश के छोटे से कपड़े के व्यवसाय को भी खुद संभालती थी।

वक़्त अपनी रफ्तार से गुजरता रहा पर उज्जवल की नफ़रत भी वक़्त के साथ बढ़ती रही माही जितना उसका ध्यान रखती उज्जवल उतना ही उसका तिरस्कार करता। अब तो वो पढ़लिख कर नौकरी भी करने लगा था। अब माही को अफ़सोस भी होता उसने क्यो नितीश की बात मान दूसरा बच्चा नही किया। कम से कम उससे तिरस्कार तो ना सहना पड़ता । फिर ये सोच खुद को समझाती की नसीब मे जब सुख ना हो औलाद का तो क्या सगा क्या सौतेला।

” बेटा ये क्या तुमने शादी कर ली ?” एक दिन अचानक उज्जवल को एक लड़की के साथ आया देख माही हैरान रह गई क्योंकि दोनों के गले में जयमाला पड़ी थी।

” हां तो ये मेरी जिंदगी है मैं जो भी करो मेरी मर्जी तुम कौन होती हो मुझसे सवाल करने वाली !” उज्जवल उखड़े अंदाज में बोला और उस लड़की जिसका नाम सिद्धि था उसे ले अपने कमरे में चला गया।

माही स्तब्ध रह गई …वो नीतीश की तस्वीर के सामने खड़ी हो आंसू बहाने लगी ” नीतीश आप मुझे कैसे धर्म संकट में छोड़ गए हो हर वक़्त का तिरस्कार अब सहन नहीं होता !” माही आंसू बहाते हुए बोली।

” बहू चाय लाई हूं दरवाजा खोलो !” अगले दिन वो उज्जवल के कमरे का दरवाजा खटखटाती हुई बोली।

” जब आपने कोई बेटा जना ही नहीं तो मैं आपकी बहु कैसे हो गई …रही उज्जवल की बात उसके लिए अब मैं हूं । तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है , उज्ज्वल कह दो इस औरत से तुम पर बस मेरा अधिकार है !” सिद्धि बोली।

” सुन लिया तुमने या कुछ और सुनना बाकी है । जरा भी आत्मसम्मान है तुम मे तो चली क्यो नही जाती हमारी जिंदगी से !” उज्ज्वल चिल्लाया।

अब तक माही सब सह रही थी क्योंकि वो उसने कभी उज्जवल को पराया समझा ही नहीं पर सिद्धि के द्वारा किया अपमान उसके बर्दाश्त के बाहर होने लगा था।

” मेरे पापा की सारी जायदाद पर मेरा हक है बेहतर होगा आप उसे मेरे नाम कर दें वैसे भी आपके तो कोई औलाद है नहीं आप क्या करेंगी इन सबका!” कुछ दिन बाद उज्जवल माही से बोला।

” ठीक है बेटा अगले हफ्ते तुम्हे सारी जायदाद के कागज मिल जाएंगे !” माही बिना उसकी तरफ देखे बोली।

नीतीश की कोई जुड़ी जायदाद तो थी नहीं जो कुछ था माही ने उज्जवल की पढ़ाई में लगा दिया था इन सबमें माही के सिर पर थोड़ा कर्जा भी था जो उसने नीतीश के कपड़े की दुकान पर लिया था।

अगले हफ्ते माही एक चिट्ठी और कुछ पेपर्स छोड़ सिद्धि और उज्जवल के निकलने से पहले ही घर से निकल गई । उज्जवल जब उठ कर आया उसने चिट्ठी पढ़ी….

बेटा उज्जवल 

मां कभी सौतेली नहीं होती पर शायद दुनिया की नजर में वो कभी सगी बन ही नहीं सकती मैने अपना सब कुछ तुम्हे माना इसलिए तुम्हारे पापा के कहने पर अपनी संतान को भी जन्म नहीं दिया। सोचा था तुम तो हो मेरे बेटे पर मैं भूल गई थी मां भले सौतेली ना हो पर औलाद सौतेली बन जाती है इसलिए यहां से दूर जा रही हूं उन बच्चों के पास जिन्हें ममता की जरूरत है क्योंकि वो ना खुद सौतेले हैं ना किसी की ममता को सौतेला मानते है। बल्कि वो तो तरसते है ममता के लिए। रही जमीन जायदाद की बात दुकान पर तुम्हारी पढ़ाई का कर्ज चढ़ रहा है जिसके पेपर्स साथ में हैं उसे बेच कर मैने कर्ज चुका दिया अब बस ये घर है जो कल भी तुम्हारा था आज भी उसके कागज छोड़ रही हूं। अब तक हर तिरस्कार सहकर भी तुम्हारे साथ थी क्योंकि तुम्हारे पिता से वादा किया था तुम्हे कभी अकेला ना छोड़ने का। पर अब जब तुम अकेले नही रहे तो मैं भी अपने हर वादे से आज़ाद हो जाना चाहती हूं ।

तुम्हारी माँ जो कभी माँ नही बन सकी …..

माही ने इस एक हफ्ते में दुकान बेचने के साथ साथ दूसरे शहर में एक अनाथाश्रम में नौकरी की बात कर ली थी जहां वो सगे सौतेले से उपर उठ अपनी ममता को तृप्त कर सके।

दोस्तों ये सच है हमारी सोसायटी में दूसरी मां को सौतेली का टैग दे दिया गया है। फिर वो चाहे कितनी अपनी हो पर ये टैग उसके माथे से नहीं हटता भले वो अपना सर्वस्व अपनी औलाद पर न्योछावर कर दे तब भी। वो खुद सौतेली ना बने तो दुनिया उसके बच्चों को सौतेला बना देती है मन में जहर भरकर। 

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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