नन्ही मुन्नी, प्यारी चांद जैसी गुड़िया को अपनी गोद में शांति से सोते हुए देखकर, सोनाली की आंखों में खुशी के आंसू भर आए और उसने गुड़िया को अपने हृदय से लगा लिया। उसे ही ह्रदय से लगाकर उसे किसी की याद आ गई और मन पश्चाताप से भर उठा।
सोनाली गुड़िया को गोद में लिए लिए पुरानी यादों के घने जंगल में चली गई। ये यादों का जंगल इतना घना था कि इससे बाहर कब निकल पाएगी, उसे खुद पता नहीं था और कुछ यादें तो उसके जन्म से भी पहले की थी, जो कि उसकी दादी ने उसे बताई थी।
(कुछ वर्ष पूर्व)
आशा देवी यानी कि सोनाली की दादी छाती पीट-पीटकर रो रही है।
आशा देवी-“हे भगवान! यह तुमने बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया। मेरी बहू खुशी-खुशी बच्चा जनने अस्पताल गई थी तुमने उसे अपने पास क्यों बुला लिया? अब उसकी दुधमुंही लाडो को कौन पालेगा? कौन उसकी देखभाल अच्छी तरह करेगा, बहुत ही अच्छी थी मेरी बहू अरुणा। शायद लोग सच ही कहते हैं कि अच्छे लोगों की जरूरत भगवान को भी होती है। पर आपको उस नवजात कोमल कली पर तो दया करनी चाहिए थी। मां के बिना कैसे जिएगी, इतनी छोटी बच्ची।”
अरुणा का पति अखिलेश भी बदहवास सा इधर उधर देख रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि बच्ची को संभालूं या अपनी मां को और फिर उसका स्वयं का दुख भी तो कुछ कम नहीं था। जीवन साथी का साथ छूटना कोई छोटी बात तो नहीं। पर ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की चली है भला।
धीरे-धीरे अपना दुख जता पर सभी मेहमान चले गए और आशा देवी ने गुड़िया को संभाला। कुछ नाते रिश्तेदार जाते-जाते अखिल के दूसरे विवाह की सलाह भी दे गए।
आशा देवी ने अखिल से कहा-“इसमें बुराई भी क्या है? अभी तुम्हारा पूरा जीवन पड़ा है। मुझसे अब उतना काम भी नहीं होता।”
अखिल ने दूसरे विवाह के लिए साफ मना कर दिया। धीरे-धीरे समय बितता रहा और गुड़िया 2 साल की हो गई। आशा देवी और अखिलेश का जीवन जैसे तैसे बीत ही रहा था की अखिल के लिए उसके स्वर्गीय पिता जी के एक पुराने परिचित ने अपनी बेटी ओरी का रिश्ता उसके लिए भिजवाया।
आशा देवी को पता था कि अखिल विवाह के लिए नहीं मानेगा इसीलिए उन्होंने उसे अपनी कसम देकर मना लिया और विवाह तुरंत ही हो गया।
अपनी गुड़िया का नाम अर्पिता रखा था। गौरी ने अर्पिता को भरपूर मां का प्यार दिया। अर्पिता भी उसके बिना एक क्षण नहीं रहती थी। कुछ समय बाद गौरी गर्भवती हुई और उसने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया यानी कि सोनाली।
अखिल गौरी, अर्पिता सोनाली और आशा देवी एक सुखी परिवार। चार साल की अर्पिता और एक साल की सोनाली।
अर्पिता और सोनाली आपस में खूब खेलती। अर्पिता सोनाली से बहुत प्यार करती थी। आशा देवी दोनों पोतियों का बचपन देखकर फूली न समाती।
अर्पिता अब स्कूल जाने लगी थी। वह पढ़ाई में बहुत अच्छी थी हर बार कक्षा में प्रथम या द्वितीय स्थान रहता था उसका और खेलकूद में भी बहुत इनाम मिलते रहते थे।
सोनाली अभी छोटी थी लेकिन साधारण विद्यार्थी ही थी। थोड़ी बड़ी होने पर भी कक्षा में उसके साधारण अंक ही आते थे। बस, यहीं से ऐसी शुरुआत हुई कि अर्पिता का जीवन बदलने लगा।
गौरी को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि अर्पिता उसकी बेटी सोनाली से आगे बढ़ती रहे। अर्पिता जब भी प्रथम आती या कोई पुरस्कार लाती तो उसे लगता कि मां प्यार करेगी, शाबाशी देगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता था और उसे सिर्फ नफरत मिलती थी।
अखिल अपनी पत्नी गौरी को समझाता था कि दोनों बच्चियों में भेद मत करो। हर बच्चे की अपनी एक विशेषता होती है और वह अपनी क्षमता के अनुसार ही कार्य करते हैं। लेकिन गौरी कि नफरत और उसकी बातें दोनों बहनों के बीच ईर्ष्या का बीज बो रही थी।
अखिल सोनाली को समझाता था-“देखो बेटा, बड़ी बहन मां समान ही होती है। अर्पिता तुमसे बहुत प्यार करती है। तुम उस से लड़ा मत करो, उसका सम्मान करो।”
लेकिन सोनाली धीरे-धीरे अपनी बहन को अपना बैरी मानने लगी थी। सोनाली ड्राइंग बहुत अच्छी बनाती थी। एक दिन उसने ड्राइंग बनाकर रखी और खेलने चली गई। उसकी मां ने उसकी ड्राइंग पर स्केच पेन से लकीरें खींच दी और नाम अर्पिता का लगा दिया।
अर्पिता ने कुछ कहना चाहा लेकिन सोनाली ने गुस्से में थी कि उसने उसकी बात नहीं सुनी। अर्पिता बहुत समझदार थी। वो कभी भी सोनाली के लिए नाराजगी का भाव अपने मन में नहीं रखती थी बल्कि स्कूल में भी उसका पूरा ध्यान रखती थी।
एक बार सोनाली का लंच बॉक्स हाथ से छूट पर खुल गया और जमीन पर गिर गया। तब अर्पिता ने उसे अपना खाना खिला दिया क्योंकि उसे पता था कि सोनाली से भूख बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती है। कई बार सोनाली होमवर्क लिखते लिखते जब थक जाती थी तब भी अर्पिता उसकी बहुत मदद करती थी।
धीरे-धीरे समय बीत गया और अर्पिता का रिश्ता तय हो गया। सोनाली अपनी दीदी की शादी में खूब नाचना और खुशी मनाना चाहती थी लेकिन वहां भी गौरी ने जलन को हवा दे दी।
अर्पिता विदा होकर रोती रोती ससुराल चली गई। उसके ससुराल में सिर्फ उसकी सास और उसका पति देव ही थे। विवाह के 5 सालों के भीतर बहुत कुछ घटित हुआ। अर्पिता एक बेटे की मां बनी और उसकी सास का देहांत भी हो गया।
इसी वक्त सोनाली का विवाह भी था। अर्पिता सास की मृत्यु होने के कारण उसके विवाह में आ न सकी।
अब तो सोनाली के विवाह को भी 5 वर्ष बीत चुके थे। अर्पिता का बेटा आठ वर्ष का हो चुका था। अर्पिता दूसरी बार गर्भवती थी और सोनाली को अभी तक कोई संतान नहीं थी। डॉक्टर ने सोनाली को साफ-साफ बता दिया था कि तुम कभी भी मां नहीं बन सकती हो। इधर उसकी सास में भी सवाल उठाना शुरू कर दिया था।
सोनाली अर्पिता की दूसरी गुड न्यूज़ सुनकर मन ही मन चिढ़ रही थी।
अर्पिता आज अस्पताल में है। किसी भी समय बेबी हो सकता है।
देव ने अर्पिता से कहा-“मैं अभी 10 मिनट में स्कूटर पर राहुल को स्कूल से लेकर आता हूं।”
अर्पिता ने उसे मना किया और कहा-“किसी पड़ोसी से या पापा जी से कह दो।”देव नहीं माना और चला गया।
वापसी में एक ट्रक ने उसके स्कूटर को टक्कर मारकर रौंद डाला। देव और राहुल ने एक साथ वहीं पर प्राण त्याग दिए।
अर्पिता के पापा, गौरी, सोनाली और उसका पति सब दौड़े अस्पताल चले आए। डॉक्टर ने यह बुरी खबर अर्पिता को अचानक बताने से मना किया था।
लेकिन अर्पिता की मां गौरी हमेशा उससे नफरत ही करती थी इसीलिए उसने जानबूझकर यह खबर रो-रो कर अर्पिता को बता दी।
इतनी बुरी खबर सुनते ही अर्पिता बहुत घबरा गई और उसकी तबीयत बहुत बिगड़ गई। डॉक्टर उसे तुरंत ऑपरेशन थिएटर ले गए। थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने कहा-“बेटी हुई है, बच्ची तो स्वस्थ है लेकिन अर्पिता के पास बहुत कम समय बचा है। वह सिर्फ सोनाली से मिलना चाहती है।”
सोनाली को अपनी दीदी की हालत देखकर रोना आ गया। अर्पिता-“सोनाली, मेरे पास बहुत कम समय है। मेरा राहुल और देव तो चले गए। मैं जानती हूं कि तुम मुझे सौतेली मानती है पर मुझे यह भी पता है कि तू मुझसे बहुत प्यार करती है। सोनाली मेरी बच्ची की देखभाल तुम ही करना। अब तू ही इसकी मां है और आखरी हिचकी लेकर कहा-मैं सौतेली नहीं।”
सोनाली जो गुड़िया को गोद में लेकर बैठी थी, गुड़िया के जोर जोर से रोने पर मानो जाग गई। उसे गुड़िया में और पिता की छवि दिखाई दे रही थी।
सोनाली-“अर्पिता दीदी, आपने जो अपने नाम के अनुरूप सब कुछ अर्पण कर दिया। अपना स्नेह, आशीर्वाद , परवाह और अब अपनी बेटी भी। मुझे माफ करना दीदी। तुम कहां सौतेली थी, सौतेली तो मैं बन बैठी, और रोते-रोते उसने गुड़िया को”मेरी बच्ची”कहकर गले से लगा लिया।
मौलिक, काल्पनिक
गीता वाधवानी दिल्ली