“मम्मी, मुझसे ये रोज-रोज साड़ी नहीं बंधती है, पर मम्मी जी की जिद है कि जब तक दादी जी गांव नहीं चली जाती, मुझे साड़ी पहननी है, ये भी कोई बात हुई, मम्मी जी भी ना कितने पुराने विचारों की है, मुझे तो लगा था कि मुझे मॉर्डन सास मिली है, नव्या शिकायती लहजे में तनुजा जी से बोली।
तनुजा जी समझदार और स्वभाव से अच्छी थी, उन्होंने बेटी को विदा करते समय काफी कुछ सिखाया था, लेकिन नव्या थोड़ी स्वभाव की उग्र थी, अपने मुताबिक कोई काम नहीं हुआ तो जल्दी से गुस्सा हो जाती है, और फिर कुछ भी कहने लगती है, तनुजा जी उसके स्वभाव से परिचित थी, इसलिए उन्होंने नव्या की बात को ध्यान से सुना और फिर पूछा।
“तुझे साड़ी पहनकर क्या रसोई में खाना बनाना पड़ रहा है, या घर के काम करने पड़ रहे हैं?
नहीं, मम्मी जी ने बस एक दिन हलवा बनवाया था, फिर रसोई में लगाया नहीं क्योंकि बहुत गर्मी है, अभी तो दोनों समय वो ही खाना बनाती है, और गांव से जो मेरी चाची सास आई है, वो मदद कर देती है, मै तो एक गिलास पानी भी लेकर नहीं पीती हूं, वो खुशी से बोली।
तो क्या साड़ी पहनकर तुझे गर्मी में दिन भर रहना होता है, या झाड़ू-पोछा बर्तन करना पड़ता है? तनुजा जी ने फिर से पूछा।
मम्मी, यहां तो सभी काम के लिए मेड लगी है, तो भला मै झाड़ू-पोछा बर्तन क्यों करूंगी? नव्या हैरानी से बोली।
अच्छा, तो साड़ी पहनकर तुझे दिनभर पंखे में बैठना पड़ता होगा, इसीलिए तुझे साड़ी पहनने से दिक्कत हो रही है? तनुजा का सवाल खत्म होने से पहले ही नव्या बोल पड़ी।
अरे!! मम्मी पूरे घर में एसी लगा हुआ है, भला मै पंखे में क्यों रहूंगी? मस्त एसी की हवा खाती हूं, मुझे कोई परेशानी नहीं है।”
अच्छा!! तो तुझे दिनभर घुंघट में रहना पड़ता होगा, तभी साडी से इतनी परेशानी हो रही है?
नहीं, मम्मी मै तो सिर पर पल्लू तक नहीं रखती हूं, और आप घुंघट की बात कर रहे हो? नव्या तुरंत ही बोली।
तनुजा जी ने फिर समझाने के लिहाज से कहा कि, जब कोई दिक्कत ही नहीं है, तो कुछ दिन साड़ी पहनने से क्या दिक्कत है ? तेरी सास तेरा भी ख्याल रख रही है और अपनी सास का भी, वो तुझे साड़ी पहनाकर कोई काम नहीं करने दे रही है, और अपनी सास की सोच का मान रख रही है, तेरी सास मॉर्डन है, पर संस्कारी भी है।
जब तेरी सास अपनी सास का मान रख रही है तो तू भी अपनी सास का मान रख लें, उनके कहने से कुछ दिन साड़ी पहन लेगी तो उसमें क्या परेशानी है? मॉर्डन होने का ये मतलब नहीं है कि बस हर रिवाज या प्रथा का बस विरोध ही करना है, कई बार बड़े बुजुर्गो का मान रखने के लिए भी कुछ चीजें करनी पड़ती है, ताकि उनकी भावनाएं आहत नही हो, और उनका भी सम्मान बना रहें।
“आप भी मेरी सास की ही तरफ बोल रही है! मेरी परेशानी नहीं समझ रही है, मैंने अपनी सभी सहेलियों को बोला था कि मै मॉर्डन घर में शादी करके जा रही हूं, और जब वो स्टेट्स में मेरी फोटो देखती है, तो मुझ पल हंसती है, और कहती हैं तू तो पूरी भारतीय सौभाग्यवती नारी है, सुहाग के सारे चिह्न पहन रखे हैं, अब साड़ी के साथ दिन भर चुडियां, सिंदूर, पायल, बिछिया, बिंदी, मंगलसूत्र ये सब भी तो धारण करना होता है, नव्या नाराजगी व्यक्त करते हुए बोली।
नव्या सदा सौभाग्यवती बनी रहो, ये शादी कोई खेल नहीं है, तू भगवान को धन्यवाद कह कि तुझे ये सब सुहाग चिह्न धारण करने का अवसर मिला है, कितनी ऐसी लड़कियां हैं जो तरस कर रह जाती है, ये ससुराल ये सुहाग, और सास का प्यार ऐसे ही नसीब नहीं होता है।
तू आज इन सबसे चिढ़ रही है, ये तुझे सब बोझ लग रहे हैं, पर इसे खुशी-खुशी धारण करेंगी, तो जीवन स्वर्ग बन जाएगा, वरना नर्क बनते देर नहीं लगेगी।
फिर कुछ दिनों की बात है, ससुराल में सबकी भावनाओं का ध्यान रखना, और सबके दिल में उतरना बहुत जरूरी है। सबका आशीर्वाद मिलेंगा, सजी-धजी नई बहू घर की लक्ष्मी होती है, घर में सकारात्मकता का माहौल रहता है, उसै देखकर सबकी आंखों में ख़ुशी छा जाती है।
माना आजकल ये सब कोई नहीं मानती, पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा बहूएं इन सबको बोझ मानती है, पर घर में जब बुजुर्ग हो तो उनकी खुशी के लिए ये सब पहन लेने में बुराई तो नहीं है। फिर थोड़े दिनों की बात है, दादी जी खुश होकर दिल से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देगी, बड़े बुजुर्गो को थोड़ा मान-सम्मान ही चाहिए होता है, तनुजा जी की बात नव्या को समझ में आ गई, उसने अपनी मां से बहुत बड़ी सीख ली, और उस पर चलने का प्रण लिया।
जब दादी सास ने देखा कि नव्या तो उनकी हर बात मानती है, और किसी चीज का विरोध ही नहीं करती है तो वो बड़ी खुश हुई, और उसे दिल से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देकर अपने गांव चली गई।
तब नव्या की सास ने आकर कहा, “बहू अब तुम्हारी मर्जी हो जो पहनो, हम लोगों ने तो अपनी नई पीढ़ी के हिसाब से चलना सीख लिया है, पर हमसे बड़े बुजुर्गो से ये नहीं हो पायेगा, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हमसे उनके विचार मेल नहीं खाते हैं तो हम उनका मान-सम्मान ही करना छोड़ दें।
नव्या ने अपनी सास की बात में हामी मिलाई, और वो ये सोचकर मुस्कराने लगी कि उसकी मम्मी ने उसे सही राह दिखाई और उसकी सास ने उसे संस्कारों की राह पर चलना सिखाया।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
VM