सौभाग्यवती भवः – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“नहीं, वह नहीं लगवायेगी।आप जाइए।” यह कहकर जैसे ही रूद्र दरवाजा बंद करके घर के अंदर आया, उसके कानों में गौरी की आवाज आई। वह बेहद ही धीमे और कमजोर स्वर में पूछ रही थी “ऐ जी, कौन आया था?”

“मेहंदी लगाने वाली दीदी आई थी। मैंने मना कर दिया है। तुम आराम करो।”

“अरे,यह क्या किया आपने! कल तीज है। मुझे मेहंदी लगवानी थी और आपने उसे वापस भेज दिया।अब क्या बिना हाथों में मेहंदी सजाये मैं तीज का व्रत रखूॅंगी?” गौरी ने गुस्साते हुए कहा।

“गौरी, शांत हो जाओ। अपनी हालत तो देखो। आज ही हॉस्पिटल से आई हो। कितनी कमजोर हो गई हो तुम। ऐसी हालत में तीज का व्रत कैसे रखोगी?

दरअसल गौरी को डेंगू हो गया था।उसके प्लेटलेट्स भी काफी कम हो गए थे। करीब 15 दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद वह आज ही घर वापस आई थी। इसीलिए रूद्र उसे व्रत रखने से मना कर रहा था।

“आप भी गजब करते हैं। तीज का व्रत रखना तो हर ‘सौभाग्यवती’ स्त्री का धर्म होता है। आप मुझे अपने इस धर्म का पालन करने से नहीं रोक सकते।” गोरी ने रोते हुए कहा।

“अच्छा, पहले तुम शांत हो जाओ और बताओ यदि तुम निर्जला व्रत रखोगी तो दवाई कैसे लोगी? और यदि टाइम पर दवाई नहीं लोगी तो तुम्हारी तबीयत खराब हो जाएगी। इसीलिए मैं तुम्हें यह व्रत रखने की परमिशन नहीं दे सकता।”

“प्लीज,प्लीज मान जाइए ना। मुझे व्रत रखने दीजिए। मुझे कुछ नहीं होगा।” गौरी बच्चों की तरह जिद करने लगी।

“ठीक है। मैं तुम्हें एक शर्त पर व्रत रखने दूॅंगा। तुम निर्जला उपवास नहीं करोगी और फल, दूध के साथ समय पर अपनी दवाई लोगी।”

“पर, मैं व्रत में फल और दूध कैसे ले सकती हूॅं!”

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“सोच लो, यदि मंजूर हो तो कल फलाहार के साथ तीज का व्रत रख लेना। नहीं तो भूल जाओ। कोई व्रत नहीं रखना, समझी।” रूद्र ने कड़क आवाज में कहा।

कुछ देर सोचने के बाद गौरी ने हाॅं कर दी। “लेकिन मेहंदी वाली तो गई। अब बिना मेहंदी लगाए मैं तीज की पूजा कैसे करूॅंगी।”

“अरे! तुम चिंता क्यों करती हो? मैं हूॅं ना। बस थोड़ी देर रुको, मैं अभी आया।” यह कहकर रूद्र दौड़कर घर के बाहर चला गया। जब वह लौट कर आया तो उसके हाथों में मेहंदी का कोण था। उसने अपने हाथों से गोरी की हथेलियों पर आड़ी-तिरछी रेखाओं से अपना और उसका नाम सजा दिया ‘रूद्र-गौरी’। फिर उसने गौरी की ऑंंखों में ऑंखें डालकर पूछा “कैसी लगी मेहंदी?”

“बहुत सुंदर। ऐसी सुंदर मेहंदी तो आज तक मेरे हाथों में नहीं सजी। अब से हर तीज पर आप ही मुझे मेहंदी लगाऍंगे।” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

“बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे। लेकिन बातों से पेट नहीं भरता। मैं अभी तुम्हारे लिए गरमा-गरम खिचड़ी लाता हूॅं।”

दूसरे दिन रुद्र की मदद से गौरी तैयार हुई। फिर दोनों ने साथ में शिव-पार्वती की पूजा की। पूजा के बाद रूद्र ने गौरी को फलाहार कराके दवाई दी और कहा “अब तुम आराम करो। थक गई होगी। मैं अभी नुक्कड़ वाली दवाई दुकान से दवाई लेकर आता हूॅं।”

“चलिए,मैं दरवाजा लगा लेती हूॅं।”

“नहीं, तुम आराम करो। मैं चाबी लेकर जा रहा हूॅं।”

“सुनिए जी, जल्दी आइयेगा।”

“बस यूॅं गया और यूॅं आया। तुम आराम करो।”यह बोलकर रूद्र चला गया और गौरी सो गई।

तकरीबन दो घंटे बाद गौरी की नींद खुली। रूद्र को अपने पास ना देख कर उसने रूद्र को आवाज़ लगाई “ऐ जी! कहाॅं हो आप?”

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रूद्र ने कोई जवाब ना दिया। “शायद हाॅल में होंगे। मैं जाकर देखती हूॅं।” लेकिन रूद्र हाॅल में नहीं था। गौरी ने धीरे-धीरे पूरा घर छान मारा लेकिन, रुद्र का कोई अता-पता नहीं था।

“हद है! कहाॅं चले गए? अभी पूछती हूॅं।” यह सोचते हुए उसने रुद्र के मोबाइल पर कॉल लगाया। लेकिन,उसका मोबाइल तो बंद रहा था। “रुद्र का फोन तो कभी बंद नहीं रहता। तुरंत आने का बोलकर गए थे और तीन घंटा होने आए।” घबराहट के मारे उसे चक्कर आने लगे। किसी तरह चेयर का सहारा लेकर वह उसपर बैठी और खुद को शांत कर रुद्र के दोस्तों को फोन लगाकर पूछने लगी। लेकिन, किसी को कुछ पता नहीं था।

अब तो गोरी की डर के मारे हालत खराब होने लगी। उसके मन में बुरे-बुरे ख्याल आने लगे। कहीं रुद्र के साथ कुछ गलत तो नहीं हो गया। वह खुद को कोसने लगी।”यह सब कुछ मेरे कारण हो रहा है। मैंने सही तरीके से तीज का व्रत नहीं रखा, इसीलिए यह सब हो रहा है। हे भगवान, मेरे रूद्र को सही सलामत भेज दे। मैं आगे से कभी भी ऐसा नहीं करुॅंगी।” वह लगातार रोते हुए भगवान से प्रार्थना किया जा रही थी।

चार घंटे हो गए थे लेकिन, रुद्र का कोई अता-पता नहीं था। आखिरकार, गौरी ने हिम्मत करके नुक्कड़ वाली दवाई दुकान तक जाने का फैसला किया। अपने शरीर की सारी ताकत इकट्ठा कर वह उठने की कोशिश कर ही रही थी कि तभी दरवाजे के खुलने की आवाज आई। रूद्र अपने हाथों में फल और दवाई की थैली लिए अंदर आ रहा था। सामने चेयर पर पसीने से लथपथ बदहवास सी गौरी को देखकर वह एकदम घबरा उठा और दौड़कर उसके पास आया “क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना? तुम्हें इतना पसीना क्यों आ रहा है?”

रूद्र को देखते ही गौरी उसके सीने से लिपट गई और जोर-जोर से रोने लगी “आप ठीक है ना? कहाॅं रह गए थे? तुरंत आने का बोल कर गए थे और चार घंटे हो गए। ऊपर से आपका फोन भी बंद आ रहा था। पता है मैं कितना डर गई थी।”

“शांत हो जाओ गौरी। मैं एकदम ठीक हूॅं। मैं दवाइयाॅं लेकर दुकान से निकल ही रहा था कि ठीक उसी समय मंगेश दवाई दुकान पर आ गया।”

“कौन मंगेश?”

“अरे, मेरा स्कूल का दोस्त जो कश्मीरी गेट के पास रहता है।”

“हाॅं…हाॅं।”

“वह काफी परेशान था. उसकी माॅं हॉस्पिटल में एडमिट है। उन्हें अर्जेंट ब्लड की जरूरत थी। लेकिन, उनका मैचिंग ब्लड ग्रुप मिल नहीं रहा था।अब तुम्हें तो पता ही है कि मेरा ब्लड ग्रुप ‘ओ नेगेटिव’ है और मैं किसी भी ‘ब्लड ग्रुप’ वाले को ब्लड दे सकता हूॅं। इसलिए मैं मंगेश के साथ उसकी माॅं को ब्लड देने चला गया। मेरे फोन की बैटरी भी खत्म हो गई थी इसलिए मैं तुम्हें खबर नहीं कर पाया। सॉरी, मेरी वजह से तुम इतना परेशान हुई।”

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“अरे, आप क्यों सॉरी बोल रहे हैं। आप तो इतना पुण्य का काम करके आए हैं। मैं ही बहुत जल्दी घबरा जाती हूॅं।”

“अच्छा यह सब छोड़ो। देखो, मैं तुम्हारे फेवरेट संतरे लाया हूॅं। अस्पताल के बाहर मिल रहे थे तो ले आया। लो खाओ।” संतरे की फाॅंक गौरी की ओर बढ़ाते हुए रूद्र बोला।

“आप भी खाइए। मुझे पता है आपने सुबह से कुछ नहीं खाया।” रुद्र के मुंह में संतरे की फाॅंक देते हुए गौरी बोली।

दोनों मुस्कुराते हुए एकदूसरे को संतरा खिलाने लगे और मन ही मन तीज माता से यह प्रार्थना करने लगे कि उनका साथ यूॅं ही जन्म-जन्मांतर तक बना रहे।

धन्यवाद

लेखिका-श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक विषय कहानी प्रतियोगिता-#सौभाग्यवती

शीर्षक-सौभाग्यवती भवः 

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