साथ रहकर अलग होने से अच्छा है अलग रहकर साथ होना… – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

” बड़ी भाभी सुना है आपका नया मकान बस बनने को हीं है। अब तो जब अगली बार आऊंगी तो लगता है आपके पास अलग से हीं आना पड़ेगा । बुलाएं तो गीं ना मुझे ??? ,,

ममता अपनी बड़ी भाभी रीति से बोली लेकिन उनकी बोली में एक तंज था। या फिर शायद अपने मायके को बंटता हुआ देखने का रोष ।

लेकिन उनकी बातों से रीति को कोई फर्क नहीं पड़ा । क्योंकि जब से उसने और उसके पति अनिल ने घर बनाने की बात कही थी तब से ना जाने घर वालों और रिश्तेदारों से ऐसी कितनी हीं बातें रोजाना सुनने को मिल रही थीं ।

पच्चीस साल से रीति अपने संयुक्त ससुराल में ही रह रही थी । उससे दो छोटे देवर और थे । उन सबका परिवार इतने सालों से अपने पैतृक मकान में हीं रह रहे थे। सबका अपना अलग अलग काम था लेकिन एक घर में सभी साथ रहते थे…. लेकिन सभी के अपने अलग मत और अलग विचार। घर में तीन बहुएं आईं, वो भी अलग अलग परिवेश से…. बड़ी बहू रीति मध्यमवर्गीय परिवार से थी तो मंझली एक उच्च घराने से… छोटी थी तो साधारण परिवार से लेकिन नौकरी पेशा थी, सभी के बच्चे भी अब बड़े होने लगे थे तो उनके भी अब अलग अलग मत बन चुके थे। एक घर में रहकर भी एक दूसरे की तकलीफों से अंजान रहने लगे थे.. कुल मिलाकर रिश्तों की ऐसी खिचड़ी बन चुकी थी…. जिसमें अब स्वाद नहीं आता था।

 कभी खाने को लेकर बातें बनती तो कभी घर के काम को लेकर… रोज रोज की चिक चिक सास ससुर भी देख रहे थे लेकिन परिवार को बांधे रखने का अहम उन्हें ज्यादा प्यारा था। किसी एक को पहल तो करनी हीं थी इसलिए इतने सालों के बाद हीं सही लेकिन बड़ी बहू रीति ने कह दिया,

” अब इस घर में हम सबका गुजारा होना मुश्किल लगता है। मेरे बच्चे बड़े हो चुके हैं और चार पांच साल में उनकी शादी भी करनी है, इसलिए हमने सोंचा है कि हम एक नया घर बनाएंगे,”

इतना सुनते ही घर में सब का मुंह फूल गया… छोटी देवरानी बोली.. ” भाभी मुश्किल तो हमें भी होती है लेकिन हम यदि ये बात कहते तो सब कहते कि आते हीं घर को बांट दिया…”

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सास ससुर रोनी शक्ल बनाकर सबसे कहते कि हमें बड़े से ऐसी उम्मीद नहीं थी.. हमारे जीते जी हमें अपने बच्चों को अलग होते देखना पड़ रहा है।

देवरों को शक था कि बड़े भाई ने उनसे छिपा कर काफी पूंजी इकट्ठा कर रखी है तभी तो नया घर बनवाने की बात कही है…. लेकिन हकिकत तो सिर्फ रीति और उसके पति अनिकेत को पता थी.. घर खर्च और बच्चों को आज के हिसाब से पढ़ाने लिखाने में अच्छे अच्छों की कमर टूट जाती है। हाँ इतने सालों में कुछ पूंजी तो इकट्ठा की थी लेकिन बाकी के लिए रीति ने अपने जेवर गिरवी रखे और कुछ लोन उठाया गया था।

घर तैयार होने को था और आज बेमन से ही सही लेकिन सब नया घर देखने के लिए चल हीं पड़े…

 ” अरे भाभी,.. ये क्या… ये ऊपर नीचे दो फ्लैट जैसा घर क्यूँ बनवाया है … ऐसा लग रहा है जैसे दो लोगों का घर है… मानती हूँ आपके दो बेटे हैं लेकिन क्या अभी से दोनों बेटों को अलग अलग करने का विचार कर लिया है?? “

“दीदी , हम ना चाहें तो भी एक ना एक दिन बच्चे अलग हो ही जाते हैं… एक घर में रहकर मनमुटाव

लेखिका :

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