साथ निभाना साथिया – प्रीती सक्सेना

आज विषय आधारित कहानी लिखने बैठी हूं तो 37 साल 6 महीने का साथ आंखो के सामने घूम रहा है, अच्छा विषय दिया है, इसी बहाने इतना लंबा समय जो हमने साथ गुजारा है , सब दोबारा याद आ जाएगा, जिनकी स्मृतियां धूमिल हो चुकीं थीं।

19 नवंबर 1984 को हम एक दूसरे की जिंदगी में शामिल हुए, मेरे पापा इकलौते, हमारी सिंगल फैमिली, ये लोग पांच भाई टिपिकल बुंदेलखंडी परिवार, पर परिवार में शामिल होने की पूरी कोशिश की मैने। पति का मार्ग दर्शन हमेशा काम आया।

असली परीक्षा शुरु हुई, जब हम इंदौर आए, यहां आते ही इनका रूप बिल्कुल बदला, नई नवेली बीबी का मोह छोड़ा, अपने काम को लेकर, तैयार, सारा प्रोग्राम सैट करके बता दिया, इतने दिन बाहर रहूंगा, इतने बजे आऊंगा, इतने बजे जाऊंगा, घबरा गई मैं, जिंदगी में पूरा खाना तक नहीं बनाया था मैंने, नौकर चाकर की फौज रही हमेशा घर में, इतनी तनाव में रहने लगी मैं कि रात भर सो भी नहीं पाती, चिन्ता के कारण ।

पर ये बिल्कुल अपने काम को लेकर फोकस, रोने धोने का कोई असर नहीं, नो लव यू, नो सॉरी, न  ही व्यवहार में कोई नाटकीयता।

समय गुजरा पहले बेटा और फिर बेटी, परिवार में जुड़े, पति का एक नया रूप सामने आया, एक जबरदस्त केयरिंग फादर, पढाई, स्पोर्ट्स को बहुत बढ़ावा देना, जब भी टूर से आते, जनरल नॉलेज बढ़ाने वाली बुक्स, गेम्स लेकर आते, पर पढाई को लेकर बहुत कठोर रहते,


 धीरे धीरे उन्होने नोटिस किया, बच्चे उनसे बचने लगे हैं, कठोर पिता का आचरण, उन्हें अखरने लगा है, उस समय मैंने, एक धुरी का काम किया, जो ये न कह पाते वो मैं अपने शब्दों से बच्चों को कहती, बच्चे ताज्जुब करते, ऐसा पापा ने कहा?

बच्चो का बदलाव ये समझने लगे थे,

मुझे ताज्जुब तो तब हुआ, जब मैंने इनको पूरी तरह बदलते देखा, एक दोस्त की तरह व्यवहार शुरु किया बच्चो के साथ, एक शानदार बदलाव, जिसने घर के माहौल को पूरी तरह बदल दिया, आंखो आंखो में इनका मेरी तरफ़ देखना और भरपूर मुस्कान के साथ मेरा स्वीकारोक्ति में सहमती देना इनके प्रयास को और मजबूती दे गया।

बेटे को इंजीनियर, बेटी को डेंटल सर्जन बनाकर,

उनके जीवन साथियों को सौंप दिया, इन्दौर में मैं अकेली हो गई तो, पतिदेव के पास विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश, चली गई, जैसे ही घर पहुंची, दरवाजा खोला, भौंचक रह गई, सामने चावल से भरा कलश रखा था, मैने ताज्जुब से इनकी तरफ़ देखा, तो बोले, ये हमारी नई शुरुआत है, नए जीवन की नई शुरुआत करो , जहां से हमने शुरुआत की थी, देखो हम फिर दो रह गए अब हम साथ रहेंगे वरना बच्चो की पढाई के कारण २७ साल हम अलग अलग रहे, इनका एक ओर नया रूप मन को छू गया,

दो साल हुए इनके रिटायरमेंट को, लॉक डाउन में

हमने घर इतनी कुशलता से बगैर हाउस हेल्पर के चलाया, हर काम में इन्होने पूरी मदद की, एक कठोर दिखने वाले इंसान के अन्दर मोम जैसा दिल है, मैने ये जाना, हम दादा दादी, नाना नानी बन चुके हैं, चारों बच्चे इनसे ज्यादा खुश रहते हैं ।सारी जिम्मेदारियों को निभाकर एक अनोखा संतोष इनके  चेहरे पर दिखता है मुझे।

 एक जीवन में इतने ढेर सारे रूप देख लिए हैं पिया के, कि अब तो आदत हो गई है इनकी

यही कहूंगी ,अब तो साथ निभाना साथिया जन्मों जन्मों तक

प्रीती सक्सेना इंदौर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!