Moral stories in hindi : किरण अपनी विदाई के समय अपने माता-पिता के गले लग कर फफक कर रो पड़ी, दिल में एक अजीब सा खालीपन हो रहा था मानो सब कुछ पीछे छूट रहा हो रोते हुए माता-पिता ने उसे अपने सीने से अलग किया और गाड़ी में बैठा कर ससुराल वालों से हाथ जोड़ते हुए कहा कि अगर किरण से कभी कोई गलती हो जाए तो उसे बच्ची समझ कर माफ कर दीजिएगा।
गाड़ी में बैठ कर भी वह दूर तक अपने माता-पिता को देखती रही और धीरे-धीरे वह अपनी बचपन की स्मृतियों में खो गई जब अक्सर ससुराल के बारे में बातें होती थी, पिताजी ज्यादा प्यार करते हैं तो दादी को अक्सर कहते सुना था, ज्यादा सिर पर मत चढ़ाओ लड़की है पराए घर जाना है इसको।
तो कभी भाई भी लड़ाई होती तो कह देता मुझसे लड़ाई करेगी तो”ससुराल से लेने नहीं आऊंगा”
एक मां ही थी जो बेपनाह प्यार करती थी क्योंकि उन्हें भी शायद इस बात का एहसास था की वह कभी ना कभी उस ममता के आंचल से निकलकर ससुराल चली जाएगी।
तभी गाड़ी से एकदम से रुकी तो वह अतीत से निकलकर वर्तमान में आई तो देखा कि सामने ससुराल आ गया है।
देवर ने हंसते हुए कहा! चलो भाभी आपका ससुराल आ गया है, राजीव ने गाड़ी से निकलने में मेरी मदद की।
ससुराल इसके बारे में बचपन से सुना था आज आखिरकार उस से रूबरू होने का वक्त था
गृह प्रवेश के समय लगा मानो नया घर नए लोग नई जिम्मेदारियां मानो एक नया जन्म लिया हो
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ससुराल में बहू के प्रवेश के साथ ही उसके जीवन का नया सफर शुरू हो जाता है उसके उठने बैठने खाने-पीने हर तौर तरीके पर कड़ी नजर रखी जाती है, ज़रा सी गलती और बात माता-पिता के संस्कारों तक पहुंचाती है शायद इसी का नाम ससुराल है
किरण फिर भी ससुराल वालों के रंग में रंगने की पूरी कोशिश कर रही थी वह हर प्रयास करती जिससे वह ससुराल वालों के दिल में अपनी जगह बना सके ससुराल वाले भी उसे अपना मानने लगे थे पर फिर भी कभी ना कभी किसी ने किसी बात पर सुनने को मिल ही जाता इसे क्या पता यह तो पराए घर से आई है।
कुछ महीनों बाद किरण गर्भवती हुई और उसने एक सुंदर लड़की को जन्म दिया सभी घर के सदस्य बहुत खुश थे कोई उसे गृह लक्ष्मी कह रहा था तो कोई पराया धन।
किरण ने जब अपनी बेटी को सीने से लगाया तो उसे लगा मानो जीवन में सब कुछ मिल गया हो और अगले ही पल उसे लगा कि उसे भी एक ना एक दिन ससुराल जाना पड़ेगा और यह सोच कर उसकी आंखों से ना रुकने वाली अश्रु धारा बहने लगी।
स्वरचित रचना
मनीषा गुप्ता