ससुराल में उपहारों से नहीं, प्यार  से सम्मान मिलता हैं.. – -संगीता त्रिपाठी

    ” मम्मी आप इतनी कम मिठाइयाँ भेज रही हो,मेरी ससुराल वाले क्या कहेँगे ड्राई फ्रूट्स भी कम हैं।शुभ अवसरों पर मेरी देवरानी के घर से इक्कीस किलो से कम मिठाई आती ही नहीं। आपने मेरी सासु माँ की सोने की जंजीर भी हल्की खरीदी जबकि प्रिया के घर से तो पूरा सेट आया था सासु माँ के लिये…।

“बेटा तुम्हारी देवरानी के मायके वाले बिजनेस करते हैं।उनके पास धन ज्यादा हैं वे दे सकते हैं, पर तुम्हारे पिता तो सरकारी कर्मचारी हैं पर उन्होंने कभी गलत तरीके से पैसा नहीं कमाया।सब तुम्हारी और अनुज की पढ़ाई -लिखाई में खर्च हो गये। तुम्हारे पापा का कहना था, भले ही एक समय सूखी रोती खा लेंगे पर बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देंगे। हर बार हम तुम्हे इतना उपहार नहीं दे सकते।

“क्या बात करती हो मम्मी आप, ससुराल में मेरा मान -सम्मान कम हो जायेगा, नाराज हो कर निया ने कहा

“बेटा, सम्मान उपहारों से नहीं बल्कि प्रेम और मान देने से मिलता हैं। तुम जो मान -सम्मान दूसरों को दोगी, वही तुमको मिलेगा। रिश्ते प्रेम से पल्लवित होते हैं,ना कि उपहार से।”निर्मला जी ने निया को समझाने कि कोशिश की। निया कुछ समझने को तैयार नहीं।उसके दिमाग में अपनी देवरानी प्रिया से  आगे रहने की होड़ थी। उसके ससुराल में सब लोग प्रिया की तारीफ करते तो निया को लगता कि प्रिया के लाये उपहारों से उसकी तारीफ होती। जबकि प्रिया भले ही पैसे वाले घर की थी पर दिल की बहुत अच्छी थी।

      निया, अपनी माँ निर्मला जी और पिता सतीश जी की लाड़ली छोटी बेटी हैं। दो साल पहले उन्होंने रवि के साथ निया का विवाह  धूमधाम से किया था।पिता ने अपनी हैसियत से बढ़ कर सब किया। जो निया नेर फरमाइश किया, उन्होंने सब पूरा किया।यहीं शायद उनसे चूक हो गई। बेटी के प्यार में वो भूल गये,थोड़ा अनुशासन भी जरुरी है।


   निया जब भी मायके आती, फरमाइश कर के अपने और ससुराल वालों के लिये महंगे उपहार ले जाती।उसके पिता कभी उधार ले कर उसकी डिमांड पूरी करते, अब कभी -कभी उनको बुरा भी लगता पर ये सोच कर बेटी खुश हैं तो कोई बात नहीं, मन को समझा लेते।

 निया की मम्मी को अब अपनी सासु माँ की बात शिद्दत से याद आने लगी, जब वे निया को फरमाइश करने पर रोक लगाती थी तब निया की मम्मी बेटी के समर्थन में सास से लड़ लेती थी, जिसका फायदा निया उठाने लगी थी।

  अत्यधिक मानसिक दबाव में सतीश जी ने निया की फरमाइश पूरी तो कर दिये पर बीमार हो गये। आर्थिक स्रोत बंद होते ही, निया और बौखला गई।निया के मम्मी -पापा भी अब निया से दूरी बनाने लगे, क्योंकि निया उन्हें सिर्फ अपनी फरमाइश पूरी करने का स्त्रोत समझने लगी। माँ -पापा की उपेक्षा ने धीरे -धीरे निया को अपनी गलती समझाने में सफल हुई। निया ने अपने व्यवहार को सुधारा।निया के मधुर व्यवहार ने उसे ससुराल में ही नहीं बल्कि परिचितों में भी लोकप्रिय बना दिया।

      कई बार माँ -बाप शादी में वाह -वाही में ज्यादा पैसे खर्च कर देते हैं, बाद में झूठी शान के लिये उनको परेशान होना पड़ता हैं। बेटियां समझदार हैं तो ठीक, नहीं तो हर समय उनकी फरमाइश की लिस्ट तैयार रहती हैं। बच्चों की परवरिश करते समय बड़े -बुजुर्गों की नसीहत को सम्मान दें, बच्चों को कम में जीना भी सिखाये, जिससे वे हर परिस्थिति में रह सके, ना की निया की. तरह उपहारों में अपना सम्मान ढूढ़े।

                         #  —संगीता त्रिपाठी

                             गाजियाबाद 

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