Moral stories in hindi : “विधि, जरा जल्दी से उठ जा और रसोई में आकर मेरी मदद कर रेणुका जी ने रसोई से आवाज लगाते हुए कहा।
विधि आधी नींद में हो रही थी, उसकी आंखें ही नहीं खुल रही थी, वो कोशिश कर रही थी पर कैसे उठती?
रात को एक बजे सोई थी और सुबह छह बजे कैसे नींद खुल जाती पर मम्मी की आवाज पर आवाज आ रही थी।
“सोने दो बच्ची को, रात को देर से सोई है”, पापा उमेश जी अखबार पलटते हुए बोले।
“हां, लाड़ लड़ा लो अब ससुराल जाने वाली है, वहां भी ऐसे सोयेगी तो घर कौन संभालेगा? वहां तो सासू मां को बस काम ही चाहिए होगा ”
बहू ऐसे सोती रहेगी तो पूरा घर भूखा ही रह जायेगा, दो महीने बाद शादी है, पहले तो आप दोनों ने अपनी बहुत मनमानी कर ली, पर अब मै एक ना सूनूंगी, ऐसे ही सोती रहेगी तो इसकी जल्दी उठने की आदत ही नहीं पड़ेगी और इसकी सास मुझे तानें मारेंगी, रेणुका जी गुस्से से फिर चिल्लाई,”विधि जल्दी उठकर आ, छह बज गए हैं “।
इस बार आवाज सुनकर विधि नीचे उतरकर आ गई, “क्या मम्मी आपने तो एक ही लगा दी है, रात को इतनी देर से सोई थी तो सुबह जल्दी नींद कैसे खुलेगी? नींद आ रही है, और रोज तो बिस्तर पर चाय देती हो, आज नहीं दोगी क्या? वो अंगड़ाई लेते हुए बोली।
“नहीं, आज से तू रोज सबके लिए चाय बनायेगी, अब तू ससुराल जाने वाली है तो मुझे तुझे इन दो महीनों में बहुत कुछ सिखाना है, नहीं तो वहां एडजस्ट नहीं हो पायेगी, तुझे नहीं पता है कि ससुराल क्या होता है?
चल, सबके लिए चाय चढ़ा दें, रेणुका जी ने कहा।
“आप भी कमाल करती हो मम्मी, मै दो महीने बाद ससुराल जाने वाली हूं तो आपको मेरे लाड़ करने चाहिए और आप तो मुझसे काम करवा रही हो”?
“हां बेटी लाड़ तो मै तेरे बहुत करूंगी, तू तो फिर उड़ जायेगी, मेरे आंगन को सूना कर जायेंगी, पर मै तुझे पक्का करके भेजूंगी,ताकि तुझे वहां कोई दिक्कत नहीं आयें, तेरा लाड़ करूंगी, पर काम का लाड़ नहीं करूंगी,
विधि ये सुनकर चाय बनाने में लग गई, चाय बनाकर वो बाहर आ गई, “मम्मी और क्या करना है? मुझे अपने कमरे में जाना है, ऑफिस का काम है, रात को पूरा नहीं हो पाया था, और मम्मी अब जमाना बदल गया है,आपकी बेटी वर्किंग है, कमाती है फिर आप क्यों डरती हो? ससुराल को हौवा बना रखा है, मेरा घर है और मुझे वहां पर जाना है, चली जाऊंगी, आप ज्यादा ही चिंता करती हो विधि ने गर्दन में बांहें डालते हुए कहा।
“अब बेटा थोड़े दिनों के लिए ऑफिस के काम के साथ घर के काम पर भी ध्यान दें, ताकि वहां परेशानी नहीं होगी” रेणुका जी समझाया।
“क्या मम्मी आपने एक ही लगा रखा है, अब मै ऑफिस का काम करूंगी या रसोई में बेलन चलाऊंगी, हद है इतनी मेहनत से पढ़ाई करी है, इतनी अच्छी कंपनी में नौकरी लगी है, और आप कह रही हो रसोई में काम करूं!! अभय का परिवार ऐसा नहीं है, वो पढ़ा-लिखा परिवार है, ऐसा जरूरी नहीं है, जो आपको ससुराल में सहना पड़ा था वो मुझे भी सहना पड़ेगा। मै आत्मनिर्भर हूं आज के जमाने की लड़की हूं, मेरे साथ वो सब नहीं होगा, आप फ्रिक मत करें, और कुछ होगा तो मेरी जिंदगी है मै देख लूंगी, आप सबको परेशान नहीं करूंगी,ये कहकर विधि पैर पटकते हुए चली गई।
“आपने देख लिया कैसी मुंहफट है, कमाने क्या लग गई! मुझे जवाब देती है, अभी ये अपने ही सपने में उड़ रही है, इसको पता नहीं है ससुराल क्या होता हैं? जब ससुराल वालों से सामना होगा तब अक्ल ठिकाने आयेगी।
विधि ने अपने मम्मी की एक बात नहीं सुनी, और अपने ऑफिस और शादी की शॉपिंग में व्यस्त रही, शादी के
दिन भी विधि बहुत खुश थी, और आने वाले जीवन के सुनहरे सपने सजाने में लगी हुई थी। जब विदाई की घड़ी आई तो रेणुका जी फूट-फूट कर रोने लगी।
“मम्मी, आप तो ऐसे रो रही हो, जैसे वहां मुझे सब मार डालेंगे, आपकी बेटी बहुत मजबूत है, आपकी बेटी आत्मनिर्भर है, और विधि हंसते मुस्कुराते हुए चली गई।
विधि और अभय एक ही ऑफिस में काम करते थे, दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे और घरवालों की सहमति से दोनों ने शादी करने का फैसला किया। विधि एकल परिवार में पली-बढ़ी खुले विचारों की लड़की थी और अभय संयुक्त परिवार में पला बढ़ा था, पर दोनों के बीच में प्यार हुआ और दोनों ने साथ जीने-मरने का फैसला किया।
अभय के घर में उसकी दादी, मम्मी-पापा, ताईजी-ताऊजी, एक छोटा भाई और एक बहन थी।
विधि ससुराल में पहुंची तो उसका भव्य स्वागत हुआ, अगले दिन चौका पूजन की रस्म थी, उसने सोचा था वो यूट्यूब से देखकर हलवा बना लेगी पर व़ो ढंग से बना नहीं पाई, सास ने तो कुछ नहीं कहा पर दादी सास और ताईसास ने मुंह बना लिया, “बहू को केवल कमाना ही आता है या कुछ बनाना भी आता है”? ये सुनकर विधि को बहुत बुरा लगा।
रात को कमरे में वो अभय को बोली,” हलवा इतना बुरा भी नहीं था, दादी जी ने तो मुझे आज ताना दे मारा, मै एक आत्मनिर्भर लड़की हूं, रोज-रोज के तानें नहीं सूनूंगी, अभय ने उसे समझाया कि,”दादी पुराने जमाने की लड़की है” फिर ससुराल में तो सबको सुनना ही पड़ता है।
तुम्हारा क्या मतलब है? ससुराल में सबको सुनना ही पड़ता है? मै कमजोर नहीं हूं जो सबके तानें सुन लूंगी, मुझे जवाब देना आता है।
अभय विधि को शांत कराता है, फिर कहता है,” सोने से पहले अलार्म लगा लेना, तुम्हें जल्दी उठना होगा, नहीं तो दादी और ताईजी गुस्सा हो जायेगी।
ये सुनते ही विधि भड़क उठती है, “कल तो संडे है और
हमें ऑफिस भी नहीं जाना है तो मै जल्दी उठकर क्या करूंगी?
“विधि, मुझे तो मम्मी ने कहा था, मैंने तुम्हें कह दिया, आगे मुझे पता नहीं, तब विधि को अपनी मम्मी की बात याद आई कि ससुराल में जल्दी उठना पड़ता है, उसने बेमन से अलार्म लगाया और सो गई।
सुबह बड़ी मुश्किल से उठी और कमरे से बाहर आ गई, तभी ताईसास बोली, “बहू जल्दी से नहाकर आजा और रसोई संभाल लें, सबके लिए चाय-नाश्ते की तैयारी कर ले, और बाथरूम का दरवाजा जरा धीरे से खोलना, अभय की नींद खराब नहीं होनी चाहिए।
ये सुनकर विधि स्तब्ध रह गई, अभय और वो दोनों ही एक साथ सोये थे, एक ही ऑफिस में काम करते हैं, फिर भी अभय की नींद खराब नहीं होनी चाहिए और उसकी नींद का क्या??
विधि तैयार होकर आ जाती है तभी रसोई में सास आती है और कहती हैं,”नाशते में इडली-सांभर बना लो, अभय को बहुत पसंद है, और दादी जी के लिए दलिया बना देना, तुम्हारे ताऊजी के लिए थोड़ा सा उपमा बना देना और देवर विजय के लिए प्रोटीन शेक और ननद टीना के लिए वेजिटेबल ओट्स बना देना, तुम तैयारी में लग जाओ, और कुछ सामान चाहिए तो बताना, मै मंदिर जा रही हूं, सबसे पहले सबके लिए चाय चढ़ा दो।
विधि की बात सुने बिना ही उसकी सास चली गई, थोड़ी देर बाद ताईसास आती है, ” बहू अभी तक भी चाय नहीं बनी”?
विधि चाय तो बना देती है, पर आगे कुछ काम नहीं करती, सबको चाय पकड़ा देती है, इतने में सास पूजा करके आ जाती है,” बहू नाशते की भी तैयारी साथ में कर लेती” अब बहू को इतनी फुर्ती तो रखनी चाहिए।
इतने में अभय उठकर आ जाता है, विधि भी चाय पी रही होती है तो दादी सास बोलती है, ” बहू पहले अभय को चाय दे देती, तू तो बाद में पी लेती”।।
विधि चुप रह जाती है, उसे अपनी मम्मी रेणुका की बात याद आती है, ससुराल में तो सबको सहना होता है, चाहें जमाना कितना ही बदल क्यों नहीं जायें!!
लेकिन विधि हिम्मत जुटाती है और सबके सामने बोल देती है,” मुझे खाना बनाना ज्यादा नहीं आता है, मै हमेशा ही पढ़ाई-लिखाई और नौकरी में व्यस्त रही हूं तो ये सब चीजे नहीं सीख पाई, मुझसे ये सब नहीं होगा, फिर मैं अपनी नौकरी करूंगी या रसोई संभालूंगी, रसोई पहले की तरह मम्मीजी और ताईजी ही संभाले, मुझसे ये सब नहीं हो पायेगा।
ये सुनते ही सब चौंक जाते हैं तभी दादी सास बोलती है,” बहू नौकरी करती है हमें भी पता है पर तेरी मां ने तुझे खाना बनाना नहीं सिखाया, ये तो हर लड़की को आना चाहिए, ये जरूरी भी है वरना अपने पति और बच्चों को क्या बनाकर खिलायेगी?
“दादी जी, मै कमाती हूं, अपने पैरों पर खड़ी हूं तो अपने परिवार का ध्यान रख लूंगी, पर मुझसे पुरानी बहूंएं जैसे करती थी, वैसी कोई उम्मीद नहीं करना “।
“अभय, तुमने भी मुझसे झूठ बोला, अपने परिवार के बारे में सच नहीं बताया, मुझे भरम में रखा, तुम्हें तो किसी घरेलू लड़की से शादी करनी चाहिए थी, जो तुम्हारा घर संभाल लेती। जो तुम्हारे आगे-पीछे घूमती रहती, मुझसे ये सब उम्मीद मत रखना, मै पहले की बहूओं की तरह सब-कुछ सहने नहीं वाली हूं, ससुराल को मै अपना घर समझकर आई थी, पर मुझे नहीं पता था यहां तो सब मुझसे इतनी अपेक्षा लगाकर बैठे हैं ,
मैने पढ़ाई-लिखाई करी, अपने पैरों पर खड़ी हुई, पर ये सब चाकरी करूंगी तो ऑफिस का काम कब करूंगी?
आप लोग एक खाना बनाने वाली रख लें, उसके पैसे मै दे दूंगी? पर चूल्हे -चौके में अपनी पढाई और करियर बर्बाद नहीं करूंगी”।
विधि अपनी बात कहकर कमरे में आ जाती है, और चुप बैठ जाती है, तभी अभय आता है,”विधि ये क्या तरीका है? सबसे बात करने का, ससुराल में हर लड़की को कुछ ना कुछ सहना पड़ता है, वो चाहें घरेलू हो या पढ़ी-लिखी नौकरीपेशा हो, थोड़े समझौते तो हर लड़की को करने होते हैं “।
“अभय तुम सही कह रहे हो, मै समझौते भी कर लेती, पर तुमने मुझसे शादी करने के लिए झूठ कहा था कि तुम्हारा परिवार खुले विचारों का है,पर इनकी सोच तो पुराने जमाने की है, ये मुझे रसोई में मदद करने को बोलते, वो बात अलग थी, मै मदद कराती और कुछ सीखती भी, पर ये तो मुझ पर सारा बोझ डाल रहे हैं, कल को कहेंगे कि नौकरी छोड़ दो, ऐसा थोडी होता है “।
अभय कुछ नहीं कह पाता है, क्यों कि उसे पता था कि उसने विधि से झूठ बोला और विधि ने उसका भरोसा किया।
अगले दिन ही विधि अपना सामान पैक कर लेती है,” अभय मै जा रही हूं, मै इस तरह के घुटन भरे माहौल में रह नहीं पाऊंगी, तुम भी मुझे नहीं समझते हो, मै तो तुम्हारे भरोसे ससुराल आई थी, जब पति ही पत्नी का साथ ना दे तो पत्नी कितनी अकेली रह जाती है।
एक पति का सहारा मिले तो पत्नी ससुराल में भी रह सकती है, सब कुछ सह सकती है, पर पति का सहयोग और सहारा जरूरी होता है, विजय भैया भी नौकरी करते हैं, वो भी तो शालिनी को पसंद करते हैं, वो भी कल को बहू बनकर इस घर में आयेगी तो वो ऐसे माहौल में कैसे रह पायेगी? जहां पढ़ाई और नौकरी से ज्यादा बहू को रसोई में क्या आता है और क्या नहीं?
ये जरूरी समझा जाता है।
टीना भी तो नौकरी करती है, वो भी अपने लिए नौकरी वाला लडका ढूंढेंगी, कल को वो भी ससुराल जायेगी, तो वो ये सब सहन करेगी तो आप सबको बुरा लगेगा।
बेटी के लिए दर्द आयेगा तो वो ही दर्द बहू के लिए क्यों नहीं आ सकता है?
मै नहीं मानती कि ससुराल में लड़की को सब सहना होता है, पहले की लड़कियां उपेक्षित थी, कमजोर थी, आत्मनिर्भर नहीं थी, तो सब सहन करके चलती थी, ससुराल वालों के हाथों की वो कठपुतली बन जाती थी, जैसे कहा वैसे कर दिया, पर मै आजकल के जमाने की हूं, फिर मै भी यही सब दकियानूसी बातें सहन करूंगी तो मेरी पढ़ाई-लिखाई और आत्मनिर्भरता का क्या फायदा?
अभय और विधि की बातचीत सुनकर सभी आ जाते हैं, तभी विजय बोलता है,” मम्मी भाभी सही कह रही है, वो नौकरी करेगी कि सुबह-रात खाना बनाने में लगी रहेगी? मै भी शालिनी को पसंद करता हूं और उसी से शादी करूंगा, वो भी नौकरीपेशा है। कल को आप जो व्यवहार
भाभी के साथ कर रहे हो वही सब परिवार की छोटी बहू के साथ भी करोगे। बहूंएं केवल घर में खाना बनाने के लिए नहीं आती है, उनकी अपनी जिन्दगी भी होती है जो शादी होते ही ससुराल आते ही चूल्हे में झोंक दी जाती है”।
तभी ननद टीना भी बोलती है,” विजय भैया सही कह रहे हैं, मै भी ये सब बातें नहीं मानूंगी, मेरी अपनी जिंदगी होगी तो मै इस तरह से रसोईघर में बर्बाद नहीं करूंगी।
अभय की दादी, ताईजी और मम्मी कुछ नहीं कह पाते हैं और खाना बनाने वाली रखने के लिए मौन स्वीकृति दे देते हैं।
थोडी देर बाद रेणुका जी का फोन आता है,” विधि बेटा क्या हुआ? तू घर पर आ रही थी, कोई परेशानी थी क्या? तूने बताया भी नहीं”!!
“मम्मी, कोई परेशानी नहीं थी, सब कुछ ठीक है, आपसे मिलने का मन था, अब अगले रविवार को आऊंगी, मैंने सब संभाल लिया है, मै कमजोर नहीं हूं, आत्मनिर्भर सशक्त हूं, अपनी बात कहना जानती हूं, मम्मी ससुराल में सब सहना नहीं होता है बल्कि कहना भी होता है,और विधि मुस्करा दी।
पाठकों, पहले के जमाने और अब के जमाने में जहां हर चीज में बदलाव आया है तो बहूओं की बदलती स्थिति
को भी स्वीकार करना चाहिए।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
#ससुराल
(व)
nice story but not possible in real life . jahan moder family ho woh shayad samjhe baaki nai. esi wajah se to bache nuclear family mai jaate ja rahe hai
इस तरह अपने लिए बोलना ख जाए शुरू में ही साफ साफ बात की जाए तो शायद बदलाव आ जाय
बहुत सुंदर कहानी
Kai baar itna bolne se sanskar vihin ka tamga bhi phna Diya jata hai.. samajhane ki baat to bhut dur ki hai.. ladkon ko shadi se phle ladki ko apne pariwar ke bare me sach batana chahiye. Jhuth nhi bolna chahiye.
Problem humaari parwarish mai hai ladki naukri kare to use bhi Ghar ke kaam aana chahiye aur ladko ko hhi Ghar ke share kaam aane chahiye tabhi Ghar sahin se chalega
सच कहूं तो यही होता aaraha hai, jhuth bolkar ladki se शादी तो कर लेते है पर मम्मी से सामने बोलने की हिम्मत नही होती
ऐसी कहानियों से ही लड़कियों का दिमाग खराब होता है।