ससुराल के नियम – डॉ. पारुल अग्रवाल

सिया प्यारी सी जिंदगी से भरपूर सबका मन मोहने वाली लड़की थी। उसके बुआ के बेटे को शादी थी, जिसमें वो अपने मम्मी पापा के साथ आई हुई थी। आते ही उसने अपनी बुआ के घर सारे काम संभाल लिए थे। इधर उधर घूमकर वो हर किसी की एक आवाज़ पर उनको कभी चाय तो कभी नाश्ता पकड़ा रही थी। इसी शादी में तरुण जो की सिया की बुआ के बेटे का खास दोस्त था वो भी आया हुआ था। सिया को पहली नज़र देखते ही उसका दिल कहीं खो सा गया था ऊपर से सिया की बेबाकी,मासूमियत और हर किसी का ध्यान रखने के व्यवहार ने उसका दिल जीत लिया था। अब उसने सोच लिया था कि शादी करेगा तो सिर्फ सिया से, वैसे भी घर में उसकी भी शादी की बात चल रही थी। पर यहां एक समस्या भी थी वैसे तो तरुण का परिवार काफी समृद्ध था पर पुराने विचारों वाला था,इसलिए तरुण को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वो घर पर सिया के बारे में बात करेगा।

पर कहते हैं ना कि अगर सच्चे दिल से कुछ चाहो तो भगवान भी सुनते हैं यहां भी कुछ ऐसा हुआ, जब तरुण जी भी रिश्ते आते उन्हें मना कर देता तो घर वालों को लगा कुछ तो बात है, जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि मैं तो शादी करूंगा तो सिर्फ सिया से। इस तरह तरुण का रिश्ता सिया के लिए आया। 

सिया के घर में सब बहुत खुश थे कि उनकी बेटी इतने अच्छे घर में जायेगी। सिया वैसे अभी आगे भी पढ़ना चाहती थी, उसने बीबीए किया हुआ था,आगे एमबीए और जॉब करना चाहती थी पर घर वालों के आगे उसकी एक ना चली, वैसे भी जैसे घर वाले कह देते हैं कि आगे की पढ़ाई तो तुम ससुराल जाकर भी कर सकती हो, ऐसा ही उसको भी कहकर शादी कर दी गई।




अब सिया अपनी ससुराल में आ गई। बिल्कुल नया माहौल, जहां उसके घर में सब खुले विचारों के थे, यहां काफी रूढ़िवादी थे। उसकी सास के मन में तो वैसे भी उसके लिए थोड़ा सा रोष था क्योंकि उनके लड़के ने उनकी बताई हुई सभी लड़कियों को ठुकराकर अपनी पसंद से शादी की थी।

अब सिया की असली परीक्षा शुरू हुई। सारे मेहमान के जाने के बाद सिया एक दिन अपने सास ससुर के सामने सूट पहनकर आ गई क्योंकि वो तो सास ससुर को भी अपने मम्मी पापा की तरह मान चुकी थी। पर जैसे ही सिया की सास ने उसको देखा तो कितनी ही बातें अच्छे घरों की बहु के मर्यादित पहनावे और व्यवहार पर सुना दी। ये भी कहा कि अब तुम ससुराल में हो, अपने घर में नहीं। अब तुम्हें यहां के ही नियम मानने पड़ेंगे। हमारे घर की बहु, घर के बड़ों के सामने सर ढकती हैं और ससुर और घर के बड़े आदमी लोगों से कोई बात नहीं करती हैं। आगे से उसको ऐसा कुछ नहीं पहनना और बोलना जिससे इस घर की मर्यादा पर प्रश्न लगे।

सिया सर झुका कर चुपचाप सुनती रही,अपनी सास का इस तरह कहना और टोकना उसका दिल दुखा गया।उसने तरुण से भी बोला कि वो तो आगे भी पढ़ना चाहती थी पर जब तरुण ने भी अपने माता-पिता से बोला तो उन्होंने ये कहकर कि ये सब चोंचले हमारे घर नहीं चलेंगे उसको भी चुप करा दिया। वक्त ऐसे ही आगे बढ़ रहा था। एक दिन तरुण व्यापार के काम से बाहर था, सिया की सास भी किसी रिश्तेदार के यहां गई थी।ससुर फैक्ट्री में थे पर तबीयत ठीक ना लगने पर अचानक घर आ गए थे। घर आकर उन्होंने पानी के लिए आवाज़ दी अब चूंकि घर पर कोई नहीं था इसलिए सिया ही उनको पानी देने आ गई। जैसे ही वो उनके कमरे में आई तो देखती है कि ससुर जी बेहोश होकर गिर गए हैं। पहले तो उसे एक पल को अपनी सास की ससुर के और घर के बड़ों के सामने परदा और उनसे कोई बात न करने की बात याद आई पर फिर उसे लगा कि ज्यादा सोचने समझने का टाइम नहीं है। उसने जल्दी से एंबुलेंस को फोन किया। साथ साथ ससुर जी को प्राथमिक चिकित्सा दी। एंबुलेंस में ससुर जी को बहुत ही आराम से साथ में लेकर हॉस्पिटल पहुंची,एडमिट करवाया,डॉक्टर ने जब उनकी हालत खतरे से बाहर बताई तब सास और तरुण को भी हॉस्पिटल का पता और कमरा नंबर सब बताते हुए फोन किया।




आज उसके ससुर की आंखों में उसके लिए एक पिता और अपनेपन वाले भाव थे। जब उसकी सास वहां पहुंची तब सिया ने उनसे माफी मांगते हुए कहा की मम्मी जी मैं आपकी बातों का मान नहीं रख पाई, उस समय हालात ही ऐसे ही गए थे। तभी डॉक्टर ने भी आकर कहा कि आज आपके पति को समय से हॉस्पिटल ना लाया जाता तो उनकी जान भी जा सकती थी। सास ने सिया के सर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा मैं गलत थी, असली मर्यादा तो अपनों की देखभाल और उनके साथ अच्छा व्यवहार से बनी रहती है, ना की सर ढकने से और घर के बड़ों से दूरी बनाकर रखने से। वैसे भी पता नहीं क्यों हम मर्यादा के नाम पर घर की बहू पर बंदिशें लगाने की कोशिश करते हैं। आज से तेरा जो मन करे वो पहनना, तेरे को कोई नहीं रोकेगा। ससुर जी ने भी कहा अगर उसका आगे पढ़ाई करने का मन है तो वो कर सकती है और बाद में चाहे तो घर का बिज़नेस में भी हाथ बंटा सकती है। तरुण भी दूर खड़ा मन ही मन सिया का धन्यवाद दे रहा था।

दोस्तों मर्यादा का मतलब ये नहीं कि घर की बहू को दबा कर रखा जाए, उसे अपने मन की भी ना करने दी जाए बल्कि मर्यादा का मतलब है हम अपना बोलचाल और कर्तव्य ठीक तरह से निभाएं। रिश्तों में कभी भी ऐसी कोई बात ना बोलें जो उस रिश्ते की मर्यादा के विपरीत हो।

आप लोगों को मेरी कहानी कैसी लगी, कृपा अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।

#मर्यादा

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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