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चार दिन बीत चुके थे, उर्वशी को विदा कराने के लिए लखनऊ से उसका भाई रंजीत आया हुआ था। उर्वशी को अपने साथ ले जाने के लिए,जिसे देखकर उर्वशी को कोई प्रशनन्ता नहीं महसूस हो रही थी। सच्चाई तो यह थी कि वह अभी जाना ही नहीं चाहती थी। ससुराल में बिताए चार दिन में ही उसकी सोच समझ हाव भाव में औलोकिक परिवर्तन आ चुका था। गांव के प्रति उसकी गलत सोच का अंत हो चुका था, उसे तो यहा पर सुखमय और सुंदर संसार दिखाई पड़ रहा था, जिससे वह अब तक अंजान थी।
उर्वशी रंजीत के साथ जाने के लिए तैयार थी, गांव की महिलाएं, बेटियां,सभी भावुक होकर उसे विदा करने के लिए आए हुए थे। उर्वशी शांति देवी और पायल से गले लगकर भावुक हो गईं,उसकी आंखों से आंसू टपकने लगें, शांति देवी और पायल भी अपनी आंखों को नम होने से नहीं रोक सकी,सभी लोग खामोश होकर उर्वशी को जाते हुए देख रहे थे। “उर्वशी मैं भी दो दिन बाद आऊंगा” रवि उर्वशी को विदा करते हुए बोला। उर्वशी ने सिर हिला दिया, उर्वशी गाड़ी में बैठी जब तक अपने परिवार और गांव की महिलाओं को देखती रही जब तक वह उसकी आंखें उन्हें दूर से देख सकती थी।
घर पहुंचते ही कौशल्या देवी ने उर्वशी से उसके ससुराल के बारे में अनगिनत सवाल करने प्रारम्भ कर दिया,सास कैसी है,देवर कैसा है,ननद कैसी है, अन्य चीजों के बारे मे वह लगातार पूछें जा रही थी। “अरे अभी तो बेटी आई है, और तुमने उससे बेतुके सवाल पूछना शुरू कर दिया” राधेश्याम जी कौशल्या देवी को डांटते हुए बोले। उर्वशी चुपचाप अपनी भाभी कंचन के कमरे में चली गई वह कंचन से काफी देर तक अपने ससुराल की बातें करती रही।
“उर्वशी तुम बहुत खुशनसीब हो जो तुम्हें इस तरह का ससुराल मिला है,जहा सिर्फ चार दिन में ही बहू को इतना सम्मान दिया जाता है कि वह अपने मायके को भूलने लगती है,वरना आज के समय में ससुराल में कदम पड़ते ही बहू के लिए अनगिनत समस्याएं जन्म लेने लगती है” कहते हुए कंचन भावुक हो गईं। “भाभी तुम सच कह रही हो,शायद हर बहू को इस तरह का ससुराल मिलना संभव नहीं है” उर्वशी कंचन को दिलासा देते हुए बोली।
क्योंकि वह अच्छी तरह जानती थी कि कंचन को उसके घर पर कदम रखते ही विपदाओं का सामना करना पड़ा था, उसके पिता और उसके सिवा उसे समझने वाला कोई और नहीं था,जिसकी पीड़ा से वह अभी तक पीड़ित थी। “क्या बातें हो रही है ननद भौजाई में, हमें भी तो पता चले” कौशल्या देवी कमरे में आते हुए बोली। “कुछ नहीं मम्मी! कंचन कौशल्या देवी को देखकर सकपकाते हुए बोली।
“उर्वशी अब तुम बताओ अपने ससुराल के बारे में,तुम्हें तो गांव पसंद नहीं है,अब तुम वहा वापस मत जाना,यही रहना कालोनी में रवि के साथ ” कौशल्या देवी उर्वशी को समझाते हुए बोली।”मम्मी! अब मैं वहां पर रहूंगी जहा वो (रवि) मुझे रखेंगे,यहा कहेंगे तो यहा रहूंगी, गांव में कहेंगे, तो गांव में रहूंगी ” उर्वशी कौशल्या देवी की बातों को अनसुना करते हुए बोली। “तू कैसी बात कर रही है तू गांव में रहेगी,तेरा दिमाग सही है कि नहीं ” कौशल्या देवी हैरान होते हुए बोली।
“हा मम्मी!रह लूंगी क्योंकि इन चार दिनों में ही मुझे जिस अपनेपन का एहसास हुआ है शायद वह यहा कभी भी नहीं मिला है मुझे “कहकर उर्वशी खामोश हो गई। “तुझे ही तो गांव पसंद नहीं था,मैंने तो नहीं मना किया था” कौशल्या देवी उर्वशी को देखते हुए बोली। “मम्मी! मुझे कैसे पसंद होगा, क्योंकि आपने ही गांव के बारे में मुझे हरदम गलत बताया,जिस तरह भाभी को आप गांव से विदा करके ले तो आई मगर उन्हें आज तक सम्मान नहीं दिया है आपने” उर्वशी कौशल्या देवी की ओर देखते हुए बोली।
” तो तुम्हारे लिए तुम्हारी मम्मी गलत हो गई है इन चार दिनों में आगे सब सामने आ जाएगा” कौशल्या देवी झुंझलाते हुए बोली। “कुछ नहीं होगा मम्मी! मुझे इन चार दिनों में ही हर उस चीज का एहसास हो चुका है, जिससे आपने हमेशा गलत बताया,जब आप ही अपनी बेटी को उसके कर्तव्यों से विमुख करेंगी तो बेटी राह भटक ही जाएगी” उर्वशी कौशल्या देवी को आइना दिखाते हुए बोली।
कौशल्या देवी एकटक उर्वशी को देखती रही और कुछ नहीं बोली वह इस बात पर हैरान हो रही थी कि ससुराल में चार दिन गुजारने के बाद उसके स्वभाव में इतना परिवर्तन हो जाएगा जिसे वह सोच भी नहीं सकती थी। वह कंचन और उर्वशी को देखते हुए चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई।
ससुराल के चार दिन ( भाग -3)
ससुराल के चार दिन ( भाग -3)- माता प्रसाद दुबे : hindi Stories
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माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ