मैंने इसी साल 12 वीं पास की थी और आगे पढ़ना चाहती थी। एक दिन मेरे मामा ने मेरे लिए एक रिश्ता लेकर आए। लड़का दिल्ली में किसी शॉपिंग मॉल में मैनेजर के पोस्ट पर नौकरी करता था। पापा ने तो साफ इस रिश्ते के लिए मना कर दिया था कि अभी हमारी बेटी की उम्र ही क्या हुई है अभी ग्रेजुएशन कर लेगी तब जाकर इसकी शादी के बारे में सोचेंगे। लेकिन मामा बीच में ही बोल पड़े कि साले साहब ऐसा रिश्ता बार बार नहीं मिलता है और इस रिश्ते में दहेज के नाम पर आपको सिर्फ एक लाख देना है।
तभी मां बोल पड़ी कि लड़का दिल्ली में मैनेजर है फिर भी एक लाख रुपये दहेज में शादी करने को तैयार हैं पापा बोले, “यह कैसे हो सकता है!” तभी मामा बोले याद है आपको शर्मा जी की शादी में आप सब लोग गए हुए थे उस शादी मे लड़के की मां भी आई हुई थी और हमारी गुड़िया निशा को उन्होंने वहीं पर देखा था और लड़के की मां को निशा बहुत पसंद है। इसलिए दहेज की बात ही नहीं है उन्हें तो बस निशा चाहिए। पापा बोले, “दहेज की वजह से क्या हम अपनी बेटी को इतनी जल्दी ही शादी कर दें। अभी उम्र ही क्या हुई है इसकी।
अभी तो इसने सही से दुनिया भी नहीं देखी, मां, पापा को समझाने लगी, “देखो जी कभी ना कभी तो आखिर बेटी की शादी करनी ही है और फिर इतना अच्छा रिश्ता खुद से चलकर हमारे घर आया है हम इसे कैसे मना कर सकते हैं।”
पापा भी मां की बातों को टाल न सके और उन्होंने भी हां कर दिया। मुझसे मां आ कर पूछ रही थी “निशा तुम बताओ क्या तुम्हारी शादी कर दे।” मैं क्या बोलती मैंने तो सिर्फ इतना ही कहा “माँ आप लोगों को जो अच्छा लगता है करो आप जो भी करोगे मेरे खुशी के लिए ही करोगे।”
अगले एक सप्ताह बाद लड़के और लड़के की मां यानी मेरी सासू माँ देखने आने वाले थे घर में काफी चहल-पहल था डर जैसी कोई बात नहीं थी क्योंकि सब को यह बात पता था की सासु माँ ऑलरेडी मुझे पसंद कर चुकी है तो बस एक रस्म निभाना था।
देखते देखते वह दिन भी आ गया और सासु मां और उनका लड़का यानी कि मेरा होने वाले पति राजेश जिसे एक नजर में ही देख कर मैं उनकी दीवानी हो गई देखने मे इतने सुंदर थे कि कोई भी लड़की एक बार देख ले तो उनके दीवानी हो जाए।
उसी दिन हमारी शादी की डेट भी फाइनल हो गई और दिसंबर में शादी होना तय हो गया। उस दिन के बाद से तो मेरी और राजेश से पूरे दिन में मोबाइल पर कम से कम 4 से 5 घंटे बाद होती थी। सासु मां भी रोजाना एक बार मुझे फोन कर ही लेती थी उनसे भी आधा एक घंटा बात हो ही जाती थी।
सासु मां इतने प्यार से मुझसे बातें करती थी कि मैं तो यही सोचती थी कि जो लोग सास के बारे में इतनी नकारात्मक बातें फैला रखी है वह सब ढकोसला है मेरी सास कितनी अच्छी है भगवान करे सबको ऐसे ही सास मिले। दिसंबर आया मेरी शादी हो गई और मैं ससुराल विदा हो गई जब तक रिश्तेदार थे तब तक तक तो सब कुछ नॉर्मल रहा। लेकिन जैसे ही सारे रिश्तेदार गए सासू मां धीरे-धीरे अपने रंग में रंगने शुरू हो गई थी।
अगले दिन सुबह सुबह चाय लेकर मैंने अपने पति राजेश और ससुर जी तथा सासु मां को चाय दिया और मैं भी चाय लेकर वहीं पर बैठ गई। तभी सासू माँ ने फरमान सुनाया। बहू तुम्हारे में थोड़ी सी भी शर्म बची हुई है या नहीं यहीं पर तुम्हारे ससुर बैठे हैं और तुम यहीं पर बैठ गई। जाओ अपने कमरे में जाकर चाय पियो। सासु मां के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मैं तो आश्चर्यचकित रह गई मैं तो सासू मां को कितना आधुनिक समझती थी। लेकिन अब समझ में आया कि हाथी के खाने के दांत और होते हैं और दिखाने के और होते हैं।
उस दिन के बाद से कोई ऐसा काम नहीं होता था जिस काम में सासु मां टोकती नहीं थी। अगर मैं साड़ी भी पहनती थी उसमें भी कोई ना कोई कमी निकाल देती थी कि साड़ी सही से पहनो तुम्हारा कमर दिख रहा है। जब मैं कहती थी कि ठीक है मम्मी जी मैं फिर सूट ही पहन लेती हूं अगर ऐसी बात है तो अब साड़ी में कमर तो दिखेगा ही। तो सासू मां कहती थी हमारे घर की बहूयेँ सलवार सूट नहीं पहनती हैं बल्कि साड़ी पहनती है। एक दिन तो हद ही हो गया मैं और राजेश किसी बात पर अपने कमरे में खूब ज़ोर के हंस रहे थे जैसे ही राजेश ऑफिस गए सासु मां बोली बहु इस घर के भी कुछ कायदे कानून हैं। बहू हो बहू की हद में रहो यह क्या लड़कियों की तरह हा हा हा हंस रही थी। पड़ोसी सुनेंगे तो क्या कहेंगे गुप्ता जी के घर का देख लो उनके घर भी दो बहुएं हैं लेकिन आज तक एक आवाज उनके घर से नहीं आती है। शादी से पहले मैंने क्या-क्या कल्पना किया था ऐसा ससुराल भगवान हर किसी को दे लेकिन शादी के बाद सब कुछ बदल गया जैसा सुना था ससुराल के बारे में कि ससुराल ऐसा होता है सब कुछ वैसा ही होने लगा। ऐसा लगता था मैं एक सोने की पिंजरे में बंद हो गई हूं क्योंकि सुख-सुविधा की कोई कमी नहीं थी जो मर्जी खाना है खाओ जो मर्जी पहनना है पहनो इतना बड़ा बंगला था। पर मेरा वक्त रसोई और हमारे खुद के कमरे में ही गुजरता था। अगर बाहर घूमने का मन भी हो तो मंदिर के अलावा कहीं नहीं जा सकते हैं कहने को तो हम दिल्ली शहर में रहते हैं और राजेश एक बड़े शॉपिंग मॉल का मैनेजर था लेकिन वहां हमारा जाना सासु मां को पसंद नहीं था उनका कहना था अच्छे घर की बहू को ऐसी जगह घूमना अच्छी बात नहीं है।
एक दिन मैं दिल्ली में झंडे वाले मंदिर के दर्शन करने गई थी वहीं पर मेरी बचपन की सहेली मीरा मिल गई। बातों बातों में पता चला कि वह भी दिल्ली की रोहिणी में रहती है। मीरा ने मुझे और राजेश को संडे के दिन खाने पर निमंत्रित किया। घर आकर हमने सासू मां से संडे को अपनी सहेली मीरा के घर जाने के लिए बोला तो सासू मां ने मना नहीं किया बल्कि उन्होंने बोला ठीक है जाओ घूम आओ तुम्हारा भी मन बदल जाएगा।
संडे के दिन मैं और राजेश दोनों ही 1:00 बजे तक मीरा के घर पहुंच चुके थे हमने जैसे ही उसके दरवाजे का बेल बजाया दरवाजा मिरा ने खोला। तो देखा कि उसके घर के जितने भी सदस्य थे मीरा के ननंद, देवर और ससुर साथ में बैठकर आईपीएल मैच देख रहे थे। हम भी वहीं पर बैठ गए मीरा भी क्रिकेट में बहुत रुचि रखती थी इसलिए वह भी बीच में सब की बातों में कुछ ना कुछ इंटरफेयर कर ही देती थी। थोड़ी देर में मीरा की नौकरानी ठंडा पानी लेकर आई। पानी पीते-पीते मैं सोच रही थी एक मीरा का परिवार है
कितना प्यार से सब मिलकर क्रिकेट देख रहे हैं और हंसी ठिठोली हो रही है और एक मेरा परिवार है ऐसा लगता है सब के मुंह पर टेप चिपका हुआ हो कोई किसी से बात ही नहीं करता है। इतना बड़ा बंगला है फिर भी ऐसा लगता है कि एक चिड़िया की चहचहाने की भी आवाज नहीं आती थी।
थोड़ी देर बाद मीरा मुझे अपने कमरे में ले कर चली गई और हम दोनों ने बचपन की बातें याद कर करके खूब हंसे और ठिठोली किए। मैंने मीरा से कहा मीरा तुम कितनी खुश किस्मत हो जो तुम्हें ऐसे परिवार का साथ मिला।
मीरा ने कहा ” हां सही कह रही हो निशा इस मामले में तो मैं बहुत ही किस्मत वाली हूं मेरा परिवार बहुत ही मुझे सपोर्ट करता है हमारा दिन कब बीत जाता है हमें पता ही नहीं चलता है मेरी सासु मां भी मेरी मां से कम नहीं है हर चीज में मेरी सपोर्ट करती हैं। यहां तक कि मेरी शादी के वक्त मेरी सासू मां ने जबरदस्ती मुझे और तुम्हारे जीजा को हनीमून पर भेजा था। मीरा तुम बहुत ही लकी हो लेकिन सबके ससुराल ऐसा नहीं होता है हमारे यहां तो बिल्कुल ही ऐसा नहीं होता है आज मेरी शादी को 3 साल होने वाले हैं पर क्या मजाल कि आज भी मैं अपने पति के साथ बैठ जाऊं और वह भी सास-ससुर के सामने ऐसा तो हो ही नहीं सकता हमारा इतना बड़ा घर है पर मेरा वक्त सिर्फ किचन और हमारे खुद के रूम में ही बीत जाता है पर आज मैं तुमसे एक बात सीखकर जा रही हूं
जिंदगी में जो पल मैं नहीं जी पा रही हूं मैं अपने बेटे बहू को जरूर दूंगी मैं तुम्हारी सास की तरह बनूंगी अपने बेटे बहू की खुशी में ही अपनी खुशी ढूंढ लूंगी उनका अपने जीवन का प्रत्येक पल खुशनुमा और जिंदादिल हो ऐसा कोशिश करूंगी चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। तभी थोड़ी देर बाद मीरा की ननंद कमरे में आ गई और वह बोली दोनों सहेलियों में क्या गुपचुप गुपचुप बातें हो रही है हमें भी कुछ बताइए भाभी। मीरा ने अपने ननद का कान खींचते हुए बोली बस ऐसे ही बचपन की बातें याद कर कर हम दोनों हंस रहे थे।
मीरा की ननंद बोली भाभी चलिए आप लोग खाना लग गया है। कुछ देर बाद हम बाहर आए और खाने के टेबल पर बैठ गए। खाते वक्त मीरा के ससुर ने ऐसे ऐसे जोक सुनाए कि हंसते-हंसते लग रहा था कि खाना ही बाहर आ जाएगा। मीरा का परिवार बहुत ज्यादा अमीर तो नहीं था लेकिन परिवार में खुशियां इतनी ज्यादा थी कि इनसे अमीर कोई हो ही नहीं सकता। मीरा के सारे परिवार वालों से मिले बहुत अच्छा लगा। जाते वक्त मन में बस इतना ही ख्याल आया कि “ससुराल हो तो ऐसा”।