ससुराल गेंदा फूल – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

जैसे ही बेटी पाखी विदा हुई उसकी माँ कंचन अपनी सासू माँ के गले लग बिलख पड़ी।

“माँ मुझे पाखी की बहुत फिक्र हो रही है।”

“कंचन बेटा फिक्र करने की कोई बात नहीं है पाखी अपने ससुराल में बहुत खुश रहेगी।”

“कैसी रहेगी? आपने देखा नहीं जब फेरों के वक्त हड़बड़ाहट के मारे पाखी ने दाएं हाथ के बजाए गलती से बायॉ॑ हाथ बढ़ा दिया था तो उसकी बुआ सास कैसे भड़क उठी थी-“अरे! क्या कर रही हो? इतना भी नहीं पता दाँया हाथ आगे रखते हैं। चल दाँया हाथ आगे कर। कोई सऊर ही नहीं है।” मुझे तो बहुत डर लग रहा है।

“तुझे बुआ सास का गुस्सा करना तो दिख गया लेकिन उसकी सासू माँ की फिक्र नहीं दिखी। याद है ना क्या कहा था उन्होंने पाखी के बचाव में-“गलती से हो गया होगा जीजी, बच्ची है सीख जाएगी।”

मैं अभी भी यही कहूॅ॑गी कि तू पाखी की चिंता मत कर। रही बात उसकी तबीयत की तो हमने उसके पति महेंद्र को बता तो दिया है

कि बिना खाए-पिए पाखी की तबीयत गड़बड़ा जाती है। ज्यादा देर भूखा रहना उसकी सेहत के लिए सही नहीं है।डॉक्टर ने भी उसे ज्यादा देर तक भूखे प्यासे रहने से मना किया है। इसीलिए चिंता की कोई बात नहीं है। अब तू भी रोना बंद कर इतना शुभ कार्य करके रोना-धोना नहीं करते। जा दो कप चाय बना कर ला। हम दोनों बैठकर पियेंगे।”

“जी मां अभी लाई।”

वहीं, दूसरी ओर पाखी के ससुराल पहुॅ॑चते ही राधा ने अपनी प्यारी बहू पाखी की आरती उतारी और उसे घर के अंदर ले चली।

तभी बुआ सास की कड़कती हुई आवाज़ गूंजी “अरे कहॉ॑ चली दोनों सास-बहू की जोड़ी! दरवाजे पर स्वास्तिक क्या मैं बनाऊॅ॑गी? इतनी बड़ी हो गई। कोई सऊर ही नहीं है |”

“नहीं जीजी, अभी बनवाती हूॅ॑। भूल हो गई।”

पहले से ही थकी-हारी और घबराई पाखी इन सबसे और घबरा गई | कल के नेगचार और 5 घंटे के सफर के कारण वह बहुत थक गई थी |लेकिन यहां के नेगचार तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे |

घर में आते ही कुल देवता की पूजा के बाद उसके पति महेंद्र को तो तुरंत चाय नाश्ता करा कर आराम करने भेज दिया गया था | लेकिन उसे किसी ने एक कप चाय के लिए भी नहीं बोला | कल की दिनभर की थकान और लंबे सफर के कारण पाखी का सिर दर्द से फटा जा रहा था | आखिर, उसने धीरे से अपने बड़े ननद  से कहा “दीदी, प्लीज मुझे एक कप चाय दे दीजिए ना |”

यह सुनते ही बुआ सास भड़क गई “क्यूँ री भाभी, तेरी बहू को इतना भी नहीं पता कि सुहागथाल की रस्म के पहले कुछ खाते-पीते नहीं हैं | बड़ी ही नाजुक कली खोज लाई है| अब तो इस घर के राम ही मालिक है|  नियम धर्म तो गए खड्डे में |”

“ऐसा कुछ नहीं है जीजी नई-नई  है | धीरे-धीरे सारे नियम कायदे सीख जाएगी | राधा धीरे से बोली |

तब तक सिरदर्द और कुछ ना खाने पीने से पाखी को उल्टियाँ शुरू हो गई|

“जीजी, यदि आप कहें तो मैं इसे कमरे में छोड़ आती हूँ | थोड़ा आराम कर लेगी | सुहाग थाल  में तो अभी समय है |”

“ठीक है जब अपनी प्यारी बहू की सेवा-टहल से फुर्सत मिल जाए तो हमारा भी खाना परोस देना | दुपहरी होने आई है | पाखी की बुआ सास ने  मुँह बनाते हुए कहा |

“जीजी मैं पहले परोस देती हूँ | मीनल भाभी को कमरे में ले जाओ |” राधा ने अपनी बड़ी बेटी से कहा |

मीनल पाखी को कमरे में ले आई | उसके दुपट्टे को सिर से हटाकर उसे आराम से बैठा दिया| कमरे में आकर पाखी बहुत रिलेक्स फील कर रही थी | ए.सी. की ठंडक से उसे बहुत आराम मिल रहा था | तभी उसकी छोटी ननद सोनल कमरे में आई और झट कमरे का दरवाजा बंद कर दिया |

“भाभी यह समोसे और चाय माँ ने आपके लिए भेजे हैं | खाकर बर्त्तन बेड के नीचे खिसका देना और दरवाजा लॉक करके ही खाना | बुआजी को पता नहीं चलना चाहिए | अब हम चलते हैं | यह बोल सोनल और मीनल चली गई |

पाखी ने तुरंत कमरा लॉक किया और नाश्ता करने के बाद बर्त्तन बेड के नीचे खिसका दिए | अब उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था |

थोड़ी देर बाद फिर बुआजी की आवाज गूँजी “भाभी जाकर देख तेरी बहू तैयार हुई कि नहीं | मोहल्ले की औरतों के आने का समय हो गया है|”

“जी जीजी |”

“पाखी बेटा तैयार हो गई |”

“हाँ,माँ |”

“कितनी प्यारी लग रही है | किसी की नजर ना लगे |”काला टीका लगाते हुए सासू माँ  ने कहा |

” माँ,एक बात पूँछू, बाहर बुआ जी तो कह रही थी कि सुहागथाल  से पहले कुछ खाना नहीं है| फिर आपने नाश्ता कैसे भिजवाया ?”

“देख बेटा, मेरे लिए रीति- रिवाज से ज्यादा जरूरी तू है। महेंद्र ने मुझे बता दिया था ज्यादा देर भूखा रहना तुम्हारी सेहत के लिए सही नहीं।कुछ ना खाने पीने के कारण तुम्हारी तबीयत बिगड़ रही थी, तो ऐसे रीति रिवाज जिससे किसी को तकलीफ हो उन्हें तोड़ देना ही बेहतर है |आखिर मैं तेरी माँ हूं | मैं तुझे नहीं समझूंगी तो कौन समझेगा?”

यह सुनते ही पाखी दौड़ कर अपने सासू माँ के गले लग गई और बोल पड़ी “माँ आप बहुत प्यारी हो और मैं बहुत किस्मत वाली हूॅ॑ जो मुझे आप मिली।”

“नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं।”

“नहीं माँ ऐसी बात है। आप ही बताइए ‘मैं क्यों ना करूं अपनी किस्मत पर नाज।’ जब हो आप जैसी सासू माँ का साथ।” कहते हुए पाखी अपनी सासू माँ के गले लग गई राधा ने भी उसे अपने सीने से चिपका लिया।

आपकी क्या राय है पाखी की सासू माँ ने जो किया वो सही है या गलत ?

श्वेता अग्रवाल

#”क्यूॅ॑ ना करूं अपनी किस्मत पर नाज।”

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