ससुराल बेटी का नहीं बहू का घर होता है – : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

विधि एक सुंदर सुशील सी लड़की थी। पढ़ी लिखी भी काफी थी। मायके, ससुराल दोनों जगह पर वह सबकी दुलारी थी।

वह सब को पसंद करती थी। उसे भी सब लोग पसंद करते थे।

सिर्फ उसकी ननद गरिमा का हर छोटी-छोटी बात पर रोकना-टोकना उसे कतई पसंद नहीं था।

विधि पर, विधि की सास से अधिक हक उसकी ननद गरिमा जताती रहती थी।

यहाँ तक कि विधि को उसके पति  आकाश के साथ उठने-बैठने में भी गरिमा की नजर होती और वह हर बात पर भी कुछ ना कुछ समझाईस अवश्य देती थी।

इस बात पर विधि को चिढ़ सी होती थी।

विधि की सास  सरोजनी जी को भी अपनी बेटी गरिमा की यह आदत पसंद नहीं थी। वे भी उसे हमेशा समझाती रहती थीं लेकिन कोई भी बात  गरिमा के भेजे में घुसती ही नहीं थी।

वह एक कान से सुनती दूसरे से निकाल देती थी।

जैसे हर किसी के काम में अपनी टांग अड़ाना वह अपना मौलिक अधिकार समझती थी।

एक दिन कमरे में आकाश और विधि आपस में कोई बात कर रहे थे, तभी गरिमा वहाँ पहुँच गई और जोर-जोर से बोलने लगी,,, “क्या भाभी आप भैया से बहस करने में लगी हैं! मैं आपको कहाँ-कहाँ  नहीं ढूँढ आई!”

विधि ने जबाव में कुछ नहीं कहा, सिर्फ आकाश की ओर देखने लगी!

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तब आकाश ने कहा,,, “क्यों गरिमा तुम्हें हमारी आपस की बातें भी अब बहस लग रही हैं क्या? क्या कहना चाहती हो तुम हम दोनों एक साथ उठें-बैठें भी ना?”

“अरे नहीं भैया मेरा मतलब ये नहीं था, मैं तो बस ये कहना…!”

गरिमा की बात को बीच में ही काटते हुए, आकाश ने कहा,,, “तुम्हारा मतलब तुम ही जानो! और जाओ अब यहाँ से।”

गरिमा भी वहाँ से वापस चली आई फिर जब शाम को रसोई का वक्त हुआ तब खाने में अपना रंग दिखाने लगी।

भाभी ये क्या बनाया आपने? आप तो जानती हैं ये सब यहाँ कोई नहीं खाता। कम से कम माँ से या फिर मुझसे पूछ तो लिया होता कि किसकी क्या पसंद है?

वहीं पर गरिमा की माँ सरोजिनी जी ने तत्काल चखकर कहा,,, “वाह विधि ये तो तुमने लाजबाव डिश बनाई है। मुझे तो बहुत स्वादिष्ट लगी।”

“मुझे भी माँ, बहुत बढ़िया खाना बनाया है विधि ने। लेकिन शायद गरिमा को पसंद नहीं आया। इसके लिए दोपहर का कुछ खाना बचा हो तो  ला दो विधि।

बिना मन के जबरन क्यों खाना? जब कोई भोजन रुचिकर ना लगे।”

गरिमा अपने भाई आकाश और माँ सरोजनी देवी द्वारा, विधि के हाथ के बने खाने की तारीफ करने के बाद कुछ नहीं बोल सकी।

लेकिन अंदर ही अंदर काफी तिलमिला गई थी।

फिर सबके साथ उसने अनमने ढंग से ही सही, पर खाना खाया। उसके बाद वह अपने कमरे में चली गई।

कमरे में अपने बिस्तर पर लेटकर वह सबको बहुत देर तक भुनभुनाती रही थी।

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गरिमा, की गरिमा को ठेस इस बात की लगी थी कि आजकल विधि के आ जाने के बाद से, उसकी पूछ-परख घर में कम हो रही थी। जबकि वह हमेशा से टॉप पर बने रहना चाहती थी।

और आजकल उसकी इस मंशा पर पानी फिरता हुआ सा लग रहा था।

इसलिए वह अंदर ही अंदर तिलमिला रही थी जबकि ऐसा भी कुछ नहीं था। 

पहले वह अपनी माँ के साथ घर के कामों में हाथ बंटाती थी तो सब लोग उसे ही आवाज लगाते थे गरिमा ये, गरिमा वो!

अब जब विधि घर के काम-काज सम्हालती है, तब गरिमा दूर से तमाशा देख रही होती है।  ऐसी स्थिति में उसे आवाज लगाकर कोई कुछ नहीं पूछता। बस इसी बात को वह अलग नजरिए से देख रही है।

एक दिन सब को एक साथ  कहीं घूमने जाने की प्लानिंग बनी। आकाश, सरोजिनी जी, विधि एवम गरिमा चारों।

जैसे ही विधि तैयार होकर हॉल  में आई गरिमा ने झट से कहा,,, “ये क्या भाभी आपने क्या पहन लिया? बिल्कुल भी सूट नहीं कर रहा आपका ड्रेस! एकदम गंवारों जैसा दिख रहा है! आप पढ़ी-लिखी हो कम से कम ढंग के कपड़े तो पहन लिया करो।

आपको पता होना चाहिए आप हम सबके साथ जा रही हैं। हमारी भी सोसायटी में कोई इज्जत है! अपना नहीं तो कम से कम हमारा ही ध्यान रखा होता!”

विधि ने कुछ नहीं कहा, बस रुआंसी सी हो गई।

“इन कपड़ों में क्या बुराई है गरिमा? मुझे बताओगी क्या?” सरोजनी जी ने गुस्से से पूछा।

“माँ, बुराई तो कुछ नहीं है लेकिन ये रंग-बिरंगे से कपड़े गाँव वालों की तरह लगते हैं।”

“नई ब्याहता है तो रंग-बिरंगे कपड़े वही पहनेगी ना या मैं पहनूँगी?”

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“लेकिन माँ …..!”

“लेकिन, वेकिन  कुछ नहीं गरिमा। अब विधि क्या तुमसे पूछकर कपड़े भी पहनेगी?

जरा हम लोगों की बातों में टांग अड़ाना तुम बंद करो। मैं बहुत दिनों से देख रहा हूँ हमारे हर काम में टांग अड़ाती हो।

कुछ तो हमारी निजी जिंदगी बची रहने दो!” आकाश ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा 

“मैं भी तुम्हारी बात से सहमत हूँ आकाश।” सरोजनी जी ने कहा।

फिर गरिमा अपना सा मुँह लेकर चुपचाप रह गई।

#टांग अड़ाना

स्वरचित

©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश

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