Moral stories in hindi : अरुण बहुत बेचैन अपने घर की छत पे बैठ सिगरेट पी रहा था । तभी उसके पापा जी ऊपर आए उन्हें देख उसने सिगरेट नीचे फेंक दी । क्या हुआ बरखुरदार ??? नीचे क्यों फेंक दी, मेरे सामने पीने में शर्म काहे की पियो । नही पापा जी ! ये हमारी नही है । ये तो हमें मुन्ने ने दी थी , बोला एक बार पी के देखो सब तनाव दूर हो जाएगा । बस हम तो देख रहे थे कि तनाव कम होता है या नहीं ??
तो फिर क्या लगा बेटा ???? बेकार है पापा ऐसे थोड़ी ना होता है , वरना सारी तनाव दूर करने वाली दवाईया बंद ना हो जाती । वाह बेटा वाह बहुत खूब ! इस धुएँ की तरह ही हमारा नाम रोशन करना । अगर आज तुम हमारे बराबर ना होते , तो एक लप्पड़ ज़रूर रसीद करते । अब हम कोई छोटे बच्चे नहीं है , तेईस के है ! अच्छा श्रीमान अरुण जी ! थोड़ा शर्म करो कुछ दिनों में तुम्हारी शादी है ! अब तो थोड़ा इंसान बन जाओ । ये सब बोल शर्मा जी नीचे चले गए । वैसे तो हम मम्मी को बहुत प्यारे थे । लेकिन इन्होंने हमें कभी मम्मी की कमी महसूस नही होने दी । पर जब भी मौक़ा मिलता हर बात पे , हर हालात में बस ये हमें कोसते ही रहते थे ।
कुछ ही दिनों में अरुण की अपनी पसंद प्रिया से शादी है । उसकी ये बात भी इन्हें अच्छी नहीं लगी , क्योंकि प्रिया एक डिवोसी थी । शादी की तैयारी खूब जोरो पे थी । लेकिन आज माँ बहुत याद आ रही थी काश वो आज होती तो घर , घर जैसा होता । प्रिया के ससुराल में उसका स्वागत अरुण की चाची , मामी ने किया ।
उसकी बहने सब अपने नेग माँग रही थी । हर तरफ़ हंसी ठिठोली चल रही थी । ये सब देख शर्मा जी मंद-मंद मुस्कुरा के अपना दर्द छुपा रहे थे । अगर आज शारदा होती , तो कुछ और ही रंग होता । उसे अपनी बहू का कितना चाव था । बस सारे चाव दिल में लिए चली गई । तभी अरुण और प्रिया ने आकर उनके पैर छुए । शर्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया । ये देख अरुण की चाची बोली “ भाई साहब अब आप अपनी सारी ज़िम्मेदारी प्रिया को दे निश्चिंत हो जाओ” ।
क्यों ? अभी तो शादी हुई ही है ….और तुम
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चाची प्रिया को चुटकी मारते हुए …. बहू रानी ज़रा संभल के तुम्हारी सास नहीं है ! पर ये ससुर सास से कम भी नहीं है । सब रिश्ते दार धीरें धीरे अपने घर चले गए । घर में शांति पा शर्मा जी ने अरुण को बुलाया और कहा बहू को सब समझा देना क्या क्या करना है और कैसे । क्या पापा जी , अभी तो दो दिन ही हुए है और आप !
मेरी छोड़ो ये बताओ बहू का कन्यादान उसके माँ बाप की जगह उसके सास-ससुर ने क्यों किया था ।
पापा वो उनकी भी बेटी है ….
कमाल के लोग है जो तलाक़ के बाद भी लड़की से रिश्ता जोड़े रखे हैं । लिख लो ये लड़की ठीक नही हैं !
आप क्या कह रहे है ??? पापा जी ! कमी उसके पति में थी । वो तो एक संस्कारी बहू है । ठीक हैं , देखते है तुम्हारी संस्कारी बीवी को ।
कुछ दिनो में प्रिया बहू बन अपने ससुराल के रंग में रंग गयी । सुबह जल्दी उठना घर के काम कर ऑफ़िस जाना ।सब ज़िम्मेदारी प्रिया ने बखूबी संभल ली थी । लेकिन शर्मा जी खुश नही थे ! ये सब देख प्रिया यही सोचती रहती कि आख़िर कहाँ कमी रह गयी । जो पापा जी खुश नहीं होते । क्या प्रिया ??? ज़्यादा ना सोचो मेरे पापा को आज तक मै नही समझ पाया ?? तो तुम क्या ?? सो जाओं सुबह ऑफ़िस भी जाना हैं ।
कुछ दिन तक ऐसे ही चलता रहा । एक दिन जब प्रिया ऑफिस नहीं गई , तो शर्मा जी ने पूछा “ क्या हुआ आज ऑफिस की छुट्टी है क्या “ ???
नहीं पापा जी, थोड़ी तबियत सही नहीं है !
डॉक्टर को दिखाया …..
जी पापा जी , वायरल हैं !
ठीक है , बोल शर्मा जी रसोई में गए और दो प्याली चाय बना के प्रिया के पास लाए और बोले क्या मैं तुम्हारे साथ बैठ चाय पी सकता हूँ ????
हाँ-हाँ पापा जी , आइए ….
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चाय की घूँट पीते पीते शर्मा जी बोले बेटा ये लो पैसे , दो दिन बाद हरियाली तीज है । जो तुम्हें पसंद आए ले आना , अगर तुम्हारी सास होती तो वो तुम्हें ये सब बताती , कितना कुछ दिलाती । पर मैं तुम्हारा ससुर भी हूँ और सास भी तो तुम्हें व्रत रखना है ,हाथों में मेहंदी लगा अच्छे से तैयार होना है । मैं चाहता हूँ कोई कमी ना रहे ।
ठीक है पापा जी ! आप जैसा चाहते है वैसा ही होगा ।
ये सुन शर्मा जी की आँखों में ख़ुशी के आंसू बह चले …..
क्या हुआ पापा जी आप
कुछ नहीं बेटा ! आज तक अरुण ने भी मेरी बातो को इतना महत्व नहीं दिया जितना तुम देती हो ।
आप मेरे पिता समान है पापा जी !
जीती रहो !!
ये सुन प्रिया बहुत खुश हुई और बोली पापा जी क्या आप मुझसे नाराज़ है जो उखड़े उखड़े रहते है
नहीं बेटी ! बस गलती हो गई , दरसल शारदा के जाने के बाद सब ज़िम्मेदारी मुझ पे आ गई थी । मैं शारदा की जगह किसी को नहीं देना चाहता था । इसलिए दूसरी शादी भी नहीं की । क्या करूँ कुछ समझ नहीं पा रहा था बस धीरे धीरे काम और ज़िम्मेवारियों की वजह से मेरे अंदर चिड़चिड़ापन आ गया और लोगो को मेरी बाते बुरी लगने लगी । जब तुम आयी तो मुझे लगा कि तुम मेरी शारदा की जगह ले लोगी ।
और जानती हो तुम भी अपने ससुराल उसी दिन आयी , जिस दिन मेरी शारदा ने अपना पहला कदम अपने ससुराल में रखा था ।
ये तो बहुत अच्छी बात है पापा जी !
हाँ , पर मैं बफ़क़ूफ ये समझता रहा कि जैसे मेरी शारदा ने इस घर को सम्भाला , हर ज़रूरत का ध्यान रखा , वैसा कोई भी नही रख सकता । मैं यही सोचता था कि इतनी पढ़ी लिखी , आत्मनिर्भर लड़की कैसे मेरे घर को संभालेगी लेकिन बेटी आज तुमने मेरी सोच को ग़लत साबित कर दिया है ।
तभी अरुण घर आता है और दोनों की आँखें में नमी देख बोलता है क्या हुआ???? मुझे भी तो बताओ क्या बात है ???
कुछ नहीं बहू का ध्यान रखो और इसे जो भी चाहिए लाकर देना । तुम्हारे पास पैसे ना हो तो मुझ से ले लेना । ये सुन ! अरुण प्रिया से बोला क्या हुआ आज इतनी मेहरबानी ???
तुम ना हमेशा से ग़लत बोलते थे ….. पापा जी तो बहुत अच्छे है । ऐसा ससुराल क़िस्मत से मिलता है जहाँ ससुर सास की पदवी लेते है । अरुण कुछ समझ नहीं पाया पर इस हरियाली तीज पे सब एक साथ थे । कोई गिला नहीं कोई शिकवा नहीं । सच कहूँ तो ये घर आज सही मायने में घर लग रहा था ।
#ससुराल
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति