सासु माँ ये साड़ियाँ तो आपकी हैं ना – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ सुनती हो चंदा के ससुराल से कुछ लोग आ रहे हैं, अब वो आएँगे तो जाते वक़्त विदाई भी तो देनी पड़ेगी… लाओ देखो कितने पैसे बचे हैं जाकर कुछ ले आता हूँ ।” मनोहर लाल ने पत्नी सरला से कहा

“ इतने पैसे कहाँ से आएँगे जी…अभी महीना भर पहले तो ब्याह किया है… सभी रिश्तेदारों को अपनी दम ख़म से जितना बन पड़ा तोहफ़ा भी दिया… अब ये लोग इतनी जल्दी ऐसे मिलने क्यों आ रहे?” सरला ने पूछा

” अरे समधी जी कह रहे थे ये लोग पास के गाँव में एक ब्याह में शामिल होने जा रहे कुछ औरतें कह रही थीं हम नई बहू से ठीक से मिले नहीं हैं तो मिलना हो जाएगा … अब बेटी के ससुराल वालों को मना तो कर नहीं सकते !” मनोहर भरे गले से बोले

“ सुनो जी कितने लोग होंगे कुछ तो बताया ही होगा ना… मैं देखती हूँ शादी में जो आए थे ना उनमें से कुछ कपड़े तो रखे ही होंगे.. और बाकी जो घटेगा वो ले आना।” सरला ने कहा

 बक्सा खोल कर देखा तो चार जोड़ी कपड़े तो मिल गए … आने वाले दो जोड़े के लिए कपड़े कम पड़ रहे थे…

“ अच्छा ये लो पैसे… और कुछ पैसे मैंने अम्मा की दवाओं के लिए सँभाल कर रखे थे वो भी ले लो… ।” भरे गले से सरला ने कहा

चंदा ये सब देख कर परेशान हो रही थी…माँ बापू की हालत पर तरस भी आ रहा था पर ये रीति रिवाज कैसे ना माने ये माँ हमेशा कहा करती थी ।

“ तू यहाँ क्या कर रही है माँ बापू के कमरे के बाहर… कुछ काम है तो अंदर चली जा..।” अपने कमरे से निकलकर आती दादी सुभद्रा जी ने चंदा से कहा

“ दादी धीरे बोलो…।” कहती चंदा दादी का मुँह बंद कर दी और खींच कर दूसरी ओर ले गई

“ क्या हुआ चंदा काहे इतनी परेशान है बिटिया…. ससुराल में सब ठीक व्यवहार करते हैं ना तेरे से।” नई नई शादी के बाद मायके में ये सवाल आम होता है जो उसकी दादी ने भी कर दिया

“ हाँ दादी वो सब तो ठीक है पर आप ये बताओ ना …लड़की के ससुराल वाले जब उसके घर आए उन्हें कपड़े या तोहफ़ा देना ज़रूरी होता है?” चंदा ने सवाल किया

“ हाँ बिटिया सालों से यही चला आ रहा जिसकी जितनी हैसियत देते ही है पर तू ये काहे पूछ रही है?” सुभद्रा जी ने पूछा

चंदा माँ बापू के बीच की सुनी सारी बातें दादी से बता दी

“ अच्छा चल तू मेरे साथ ।” कह सुभद्रा जी उसे अपने कमरे में ले गई

 कोने में रखे एक बक्से पर से ढका कपड़ा हटाया और अंदर से कुछ साड़ियाँ निकाल कर चंदा को दिखाते हुए बोली ,“ चल बता कौन सी सबसे अच्छी लग रही ?”

चंदा आश्चर्य से दादी को देख दो साड़ी किनारे कर दी।

“ दादी तुम्हारे पास इतनी नई साड़ियाँ कैसे ?” चंदा ने आश्चर्य से पूछा

“ कहते हैं ना बूँद बूँद से घड़ा भरता है बस वैसे ही ये साड़ियाँ भी बक्से में भर गई… अरे क्या है ना बिटिया जब तब कोई ना कोई साड़ियाँ दे देता मैं घर में कितना ही पहनूँगी बस सब बक्से में रखती जाती थी देख आज काम आने वाले हैं ना… फिर तेरी माँ ने भी तो यही किया.. अब चल मनोहर का तंग हाथ थोड़ा हल्का कर देते है।” सुभद्रा जी कहते हुए चंदा का हाथ पकड़कर मनोहर और सरला के कमरे के दरवाज़े को खटखटाया

“ आओ ना माँ … कुछ काम है?” मनोहर ने पूछा

“ पगले काम मुझे क्यों होने लगा … अच्छा वो जो चंदा के ससुराल वाले आने वाले है ना ये दो साड़ी पकड़ अब बस दो कुर्ता धोती नहीं तो शर्ट पैंट जो पहने बस वो ले आ ।” बिना किसी भूमिका के सुभद्रा जी ने कहा

“ पर सासु माँ ये सब ?” सरला आश्चर्य से पूछी

“ माँ मैंने आप दोनों की बातें सुन ली थी और आप दोनों को परेशान देख मुझे बुरा लग रहा था.. क्या बेटी के माता-पिता को बस देना ही होता है… ये तो गलत है ना ?” चंदा माँ के गले लग बोली

 “ बेटा ये तो रिवाज चले आ रहे जिनसे बन पड़ता कर देते नहीं तो हाथ जोड़ देते।” चंदा को समझाते हुए सरला ने कहा

“ पर माँ जी ये साड़ियाँ …ये तो आपके है ना ?सरला ने साड़ियाँ देखते सास सुभद्रा जी से पूछा

“ वही से जहाँ से तुने निकाले… बहू बक्से में रख रखे थे… आज काम आ रहे बस अब ज़्यादा ना सोच… पहली बार बेटी के ससुराल से लोग आ रहे हमारे घर जितना कर सकते मान सम्मान कर देंगे बाक़ी बाद की बाद में देखेंगे ।” सुभद्रा जी ने कहा

सरला सास को बहुत सम्मान से देखते हुए बोली,“ हाँ माँ आप है तो हमें क्या ही सोचना…।”

चंदा के ससुराल वाले लोग आए बहुत अच्छे से उनका मान सम्मान किया और विदाई भी दी गई ।

एक दिन चंदा ने दादी से कहा,“ दादी अब से मैं भी आपकी बात याद रखूँगी … जो चीज़ें प्रयोग ना करूँ उसे अच्छे से सँभाल कर रख दूँगी ताकि कभी ज़रूरत पड़ने पर वो काम आ सके… अब से मैं भी अपना घड़ा बूँद बूँद कर के भरती रहूँगी ।”

दोस्तों मैं ये नहीं कहती कि हमें जो तोहफ़े मिलते हैं वो हम किसी को भी उठा कर दे दे… ये तो उन रिश्तों पर निर्भर करता है कि किसे दिया जा रहा है … अब उनका ही तोहफ़ा हम उन्हें तो नहीं दे सकते जिन्होंने दिया है ….पर कई बार हम बहुत कुछ उपयोग में नहीं लाते ऐसे में अचानक से ज़रूरत पड़ने पर वो काम आ सकते हैं यदि उन्हें सँभाल कर रखा जाए।

आपके विचार मुझसे भिन्न हो सकते हैं…आपके विचार इस रचना पर क्या है ज़रूर बताएँ … जिनको रचना पसंद आए वो लाइक करें ,कमेंट्स करें  

रश्मि प्रकाश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!