सासू मां आपका बंटवारा नहीं हुआ है। – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

कमरा हंसी से गूंज रहा था, देवांशी अपनी सहेली से बात कर रही थी, “अरे! नहीं यार मै कौनसी अपनी सास की उम्र भर सेवा करने वाली हूं, अभी मेरे बच्चे छोटे हैं,और मेरी सास को खाना बनाकर खिलाने का शौक है तो मेरे खाना बनाने वाली के पैसे बच जाते हैं,

वरना इस सोसायटी में तो खाना बनाने वाली पांच हजार से कम नहीं लेती है, अगर मै घड़ियाली आंसू बहाकर सास को यहां नहीं ले आती तो वो मेरी जेठानी अपने यहां के सारे काम करवाती और महारानी खुद आराम करती।”

 “अब पापाजी तो रहे नहीं तो ये भी अच्छा हुआ, वरना दोनों यहां रहते तो मेरी सास तो उनकी ही सेवा में लगी रहती, अब अकेली है तो चुपचाप सारे घरवालों के लिए खाना बना देती है, सब्जियां साफ कर देती है, और भी छोटे-छोटे काम हो जाते हैं, मेरी तो मौज हो गई है।”

“किटी में आ रही हूं, बस उसी की तैयारी में लगी हुई हूं, अच्छा फोन रखती हूं, अभी तो बुढ़िया बाथरूम में नहाने गई है, आती ही होगी, ये कहकर देवांशी पीछे पलटी तो देखा उसकी सास खड़ी थी, उन्हें देखकर देवांशी शर्म से पानी-पानी हो गई, उसे कुछ कहते हुए नहीं बना।”

अब बारी सुषमा जी की थी, “बहू बाथरूम में वो गरम पानी की मशीन से पानी नहीं आ रहा था, और अच्छा हुआ जो नहीं आया, मै तुझसे मशीन के बारे में पूछने आई थी और इसी बहाने मुझे तेरी हकीकत पता चल गई कि तेरे मन में मेरे प्रति क्या भावना है, तू मुझे एक नौकरानी से ज्यादा कुछ भी नहीं समझती है, ये जानकर बहुत दुख हुआ कि मेरी औकात इस घर में सिर्फ खाना बनाने वाली बाई जितनी है, मुझे खाना बनाने का शौक है, यही बात तू हंसी खुशी से बोल देती कि मेरी सास बहुत अच्छा खाना बनाती है,

मुझे तो उनके आने से आराम हो जाता है, वो तो मां की तरह मेरी देखभाल करती है, सिर्फ दो प्यार भरे शब्द सुनकर तो कोई भी इंसान खुश हो जाता है, मुझे भी बस प्यार और सम्मान चाहिए, वरना खाना तो वृद्धाश्रम में भी मिल ही जाता है, ये जानकर बहुत दुख हुआ कि तुझे अपने ससुर जी की मौत का भी जरा दुख नहीं है।”

“बहू तेरी जेठानी इतने सालों से मेरी ही नहीं तेरे ससुर जी की भी देखभाल कर रही थी, पर उसने तो कभी ऐसे कड़वे वचन नहीं बोले, वो मुझे मां नहीं पर सास को जो आदर सम्मान मिलता है वो देती थी।

उसके तो अभी-अभी दो जुड़वां बच्चे हुए हैं , फिर भी उसने मुझे रोका नहीं उसने यही कहा कि, “मम्मी जी आप देवांशी के यहां जा आइये, आपका मन जहां करें, आप वहां रहिए, आपके दो बेटे हैं, दो-दो घर है, आप कहीं भी रह सकती है, सासू मां आपका बंटवारा तो नहीं हुआ है, आप तो दोनों बेटों की मां हो, अपनी मर्जी से किसी भी घर में कितने वक्त तक भी रहो।”

देवांशी, इतना अपमान होने के बाद, मै इस घर में नहीं रुक पाऊंगी, मेरे बेटे को कह देना कि अगर उसको मुझसे मिलना हो तो वो अपने बड़े भाई के घर में आकर मिल जाएं।

देवांशी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी, क्योंकि उसने अपनी सहेली के आगे अपनी सास का अपमान जो कर दिया था, सुषमा जी ने सामान बांधा और अपने बड़े बेटे के घर रहने चली गई।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

#पानी-पानी हो जाना

(मुहावरा)

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