सासु माँ आप मुझे बेटी बनाकर लाई थीं लेकिन बहू का दर्जा भी नहीं दिया – के कामेश्वरी Moral Stories in Hindi

गौरीशंकर जी बैठक में बैठकर पेपर पढ़ रहे थे कि पत्नी सुगुणा चाय लेकर आई और उनके पास बैठकर कहने लगी कि देखिए ना कहने को तो दो बहुएँ हैं परंतु सारे काम मुझ अकेली को ही करने पड़ते हैं ।

छोटी बहू विद्या तो शादी होते ही अलग शहर में विजय की नौकरी के कारण चली गई थी । बड़ी बहू सोनल यहीं रहती थी हमारे साथ ही मेरे बेटे को पट्टी पढ़ा कर बच्चों की पढ़ाई का बहाना बनाकर यहाँ से चली गई है।

गौरीशंकर— वाहहह रे!!! सुगुणा जब तक वह यहाँ थी तुमने उसे जीने नहीं दिया था ।  उसके माता-पिता नहीं थे तो तुमने कहा कि मेरे लिए तुम बेटी हो लेकिन यहाँ आने के बाद उसे बेटी तो क्या बहू का दर्जा भी नहीं दिया था । उसे अपने आप कोई भी काम नहीं करने देती थी।

तुम्हें लगता था कि तुम्हारे हाथ से सत्ता छूट जाएगी बहू तुम्हें नचाएगी इसलिए हर काम यहाँ तक की खाने में कौनसी सब्ज़ी बनेगी बाज़ार से क्या सामान आएगा । सब सब कुछ तुमने अपने हाथों में रखा । बिचारी अपने बच्चों की फ़रमाइश पर अगर कुछ बना भी देती थी तो तुम उसे आड़े हाथों ले लिया करती थी । आज वह नहीं है तो भी तुम उसे ही दोषी बता रही हो ।

सुगुणा- ( ग़ुस्सा दिखाते हुए) मुझे बाहर के दुश्मनों की ज़रूरत नहीं है । आप मेरे लिए दुश्मन से भी अधिक हैं । हमेशा मुझे कुछ न कुछ कहते रहते हैं ।

यह बातें छोड़िए मैं सोच रही थी कि त्योहार आ रहा है बच्चे भी साथ होते तो अच्छा था घर में रौनक हो जाती थी।

गौरीशंकर ने कहा कि हाँ भाग्यवान बच्चे आ रहे हैं। उन्होंने मुझे फोन पर बता दिया है ।

 

 सुगुणा- देखा ना आपने बच्चों को भी आप ही पसंद हो मुझे तो बताया भी नहीं है कि हम आ रहे हैं ।

अभी इनकी बातें चल रही थी कि बड़ा बेटा अजय बहू सोनल पोता पोती कार से उतरे । वे इन दोनों का हाल-चाल पूछने लगे थे ।

पिता ने कहा कि हम बहुत अच्छे हैं । सुगुणा ने कहा कि कहाँ अच्छे हैं मेरे तो घुटनों में इतना दर्द हो रहा है कि ठीक से चला भी नहीं जा रहा है ।

सोनल अंदर से सबके लिए पानी लाने गई । बच्चे दादा दादी के गले लग गए थे और बहुत सारी बातें सुनाने लगे थे।

उसी समय विजय का परिवार भी आ गया सब कुशल मंगल पूछने लगे तो गौरीशंकर ने कहा मैं ठीक हूँ तुम्हारी माँ के घुटनों में दर्द थोड़ी देर पहले ही शुरू हुआ है ।

सब हँसने लगे थे क्योंकि सब को माँ के बारे में जानकारी थी ।

सबके चाय पीने के बाद छोटी बहू ने कहा दीदी खाने में क्या बनाएँगे । उसने कहा सासु माँ को पूछ लो जो वह बनाने के लिए बोलेंगी वही बना देंगे । सोनल यहाँ रह चुकी थीं इसलिए उसे सास के बारे में मालूम था ।

गौरीशंकर ने नौकर से सामान मँगाने के लिए बुलाया तो सुगुणा ने पूरा लिस्ट अपने हिसाब से दिया । गौरीशंकर ने सुगुणा को चेताया कि सामान बहुओं को भी दिखा दो । उन्हें अपनी मर्ज़ी से खाना बनाने के लिए बोलो तो उन्हें भी अच्छा लगेगा । तुम वहाँ जाकर उन्हें कुछ कहो इसके पहले ही मैं तुम्हें बता दे रहा हूँ ।

पति की बात सुनकर सुगुणा ने सामान के आते ही  बहुओं को बुलाया और कहा आज आप दोनों अपनी मर्ज़ी से खाना बना दो ।

सलोनी को बहुत आश्चर्य और खुशी भी हुई । दोनों बहुओं ने मिलकर खाना बनाया । उस दिन का खाना इतना अच्छा बना कि सब उनकी तारीफ़ करते हुए थक नहीं रहे थे । दोनों बेटों और बहुओं तथा बच्चों ने दो दिन तक यहाँ रहकर त्योहार मनाया ।

छोटे ने कहा क्या बात है माँ आप कुछ नहीं कह रही हैं पापा ने आपको मना किया है क्या?

गौरीशंकर ने कहा अरे मेरी इतनी हिम्मत कहाँ जो उसे कुछ कहने के लिए मना करता । मुझमें हिम्मत होती तो इतने दिन सलोनी को तुम्हारे माँ की तानाशाही सहना नहीं पड़ता था ।

सलोनी ने कहा परंतु पापा आपके कहने पर ही हम यहाँ से गए थे । सुगुणा और दूसरे लोगों ने आश्चर्य से गौरीशंकर की तरफ़ देखा । सुगुणा ने कहा कि सोनल तुमने मुझे बताना ज़रूरी नहीं समझा है तुम सब मिले हुए हो और मुझे अलग कर दिया है ।

सलोनी ने आँखों में आँसू भरकर कहा माँ मेरी माँ नहीं है मैंने आपको दिल से माँ समझ लिया था । मुझमें आपको क्या कमी दिखाई दी थी नहीं पता आप मुझे बेटी बनाकर लाई थीं लेकिन बहू का दर्जा भी नहीं दिया ।

सुगुणा बिना कुछ कहे चुप रह गई थी उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था ।

गौरीशंकर ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि कुछ नहीं बेटा तुम्हारे माँ की तानाशाही के कारण सलोनी तंग हो जाती थी ।  बच्चों को पढ़ने के लिए सही वातावरण नहीं मिल रहा था इसीलिए मैंने इनसे कहा कि तुम लोग अपने बच्चों के साथ अलग रहो । आज सब खुश हैं!!!

सुगुणा ने कहा कि अब आ जाओ मैं किसी को भी कुछ नहीं कहूँगी । मुझे मेरी गलती का एहसास हो गया है । बच्चे कुछ कहते उसके पहले ही गौरीशंकर ने कहा कि नहीं सब जहाँ हो वहीं रहो सुगुणा की तरफ़ मुड़कर कहा आज तुम ठीक हो पर तुम्हारे अंदर का तानाशाही प्रवृत्ति है ना वह कभी भी फिर से बाहर आ सकती है ।

मेरे ख़याल से जब त्योहार होंगे तब बच्चे आएँगे या हम उनसे मिलने जा सकते हैं । हमारा रिश्ता ऐसे रहे तो ही अच्छा खुशहाल रहेगा । सबने हाँ में हाँ मिलाई और अपने हाय बॉय बोलते हुए फिर मिलने का वादा करते हुए अपने अपने घर चले गए ।

के कामेश्वरी

2 thoughts on “सासु माँ आप मुझे बेटी बनाकर लाई थीं लेकिन बहू का दर्जा भी नहीं दिया – के कामेश्वरी Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!