सुमन हर कार्य में निपुण लड़की थी। वह सुन्दर एवं सुशील थी। वह खेती से लेकर रसोई तक का सारा काम करना जानती थी। उसे बचपन से ही ऊँचे ख्वाव देखना पसन्द था, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वह
उन्हें पूरा न कर सकी। उसकी उम्र अब 19 वर्ष की हो गई थी। घरवालों ने उसकी शादी एक अमीर परिवार में की। सुमन को भी यह रिश्ता पसन्द था। उसने सोचा कि अमीर परिवार है और घर में इतने सारे नौकर हैं तो
शादी के बाद मुझे वहाँ जरा भी काम नहीं करना पड़ेगा और मैं अपनी आगे की पढ़ाई अच्छे से कर सकुँगी। सुमन जब विदा होकर अपने ससुराल जा रही थी तो उसके पिता ने सुमन को गले से लगाया और फूट-फूट कर
रोने लगे। पिता ने अपने आँसू पोंछकर बेटी की सांस से कहा- समधन जी! यह हमारी इकलौती बेटी है जिसे हम अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं। ये अब हम आपके हवाले करते हैं। शायद जो खुशियाँ इसे हम नहीं दे
पाए वो आप से मिले। इस पर समधन जी ने कहा अरे आप फिक्र न करें, जैसी आपकी बेटी वैसे ही हमारी बेटी।
शादी के बाद जब सुमन ससुराल आई तो वहाँ करीब एक हफ्ते तक उसकी खूब अच्छे से खातिरदारी हुई। पति के नौकरी पर जाने के बाद सास ने किसी न किसी बहाने से सारे नौकरों को नौकरी से निकाल दिया और
अब घर के सारे काम का दबाव सुमन पर आ गया। सुमन चाह कर भी यह बात अपने पिता को न बता सकी और न हीं उसने ये बात अपने पति को बतायी। क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसके कारण रिश्तों में दरार पड़े।
इसलिए वह यह सब अकेले ही सहती रही। जब भी वह पढ़ने बैठती तो उसकी सास उसे किसी न किसी काम में लगा देतीं। एक बार जब सुमन टीचर की परीक्षा देने गई तो उसमें वह मात्र 2 नम्बर से रह गई। तब उसकी
सास ने ताने मारते हुए कहा कि तुमने हमारे पैसे मुफ्त के समझ रखें हैं करता? मैंने तो पहले ही कहा था कि ये नौकरी तुम्हारे बस की बात नहीं है। तुम सिर्फ घर के काम-काज देखो वही तुम्हारे लिए सही है। तो इस पर
सुमन ने गुस्से में आकर कहा- ये सब कुछ आपकी वजह से हुआ है। सासू माँ आप मुझे बेटी बनाकर लायी थी लेकिन बहू का हक भी नहीं दिया, सिर्फ एक नौकरानी की तरह व्यवहार किया है आपने मेरे साथ।
सुमन की बातें सुनकर उसका पति दंग रह गया और उसने फ़ैसला किया कि वह सुमन को अपने साथ जयपुर ले जाएगा जहाँ वह एक कंपनी में काम किया करता था। सुमन भी तुरंत उसकी बातों से सहमत हो गई। सासू
माँ के कई बार रोकने पर भी सुमन वहाँ न रुकी। अब घर का सारा काम सुमन की सासू माँ पर ही आ गया। नौकरों को बीच में ही नौकरी से निकाल देने के कारण नौकरों ने भी दोबारा वहाँ काम पर आने से मना कर
दिया। अब सुमन की सासू माँ को अपनी गलती का एहसास हो गया और अब वह पछतावा करने लगी।
स्वरचित मौलिक रचना
लेखिका-
खुशी प्रजापति
आगरा, उत्तरप्रदेश