सरपंच रामहित का पूरे गांव पर अच्छा खासा प्रभाव था। सरपंच होने के साथ साथ वो बहुत बड़ा जमीदार ओर दयालु इंसान भी था। जरूरत होने पर गांव वालों को कर्जा देकर अपने एहसान तले दबा लेता था। उसकी बात कोई नहीं टाल सकता था, कुछ लोग सम्मान की बजह से तो कुछ अहसानो की वजह से।
उसका राजनीति मे भी काफी दबदबा था। उसके एक इशारे पर गांव के सारे वोट एक पार्टी से दुसरी पार्टी को शिफ्ट हो जाते थे। सरपंच एकदम अनपढ़ था और उसकी दिली इच्छा थी कि उसका एकलौता बेटा गौरव, जिसे वो जी जान से चाहता था, अच्छा पढ जाये ओर गॉव में अपना रुतबा बड़ा सके। बिन मॉ के बेटे के लिये सरपंच की पूरी कोशिश रहती थीं
की वो हमेशा खुश रहे। साथ मे उसकी एक ओर कोशिश रहती थी कि गावँ का कोई भी लड़का/लड़की ज्यादा न पढ़ सके। इसके लिये उसने अपने राजनीतिक संबंध का पूरा फायदा उठाया। अपने गांव व आसपास के कई गांवो मे मिडिल स्कूल से आगे कोई स्कूल नहीं खुलने दिया, न अच्छी सड़कें बनने दी, ओर न ही कोई बस चलने दी ताकि कोई पढ़ने के लिए
आसानी से शहर न जा सके। गावँ के मिडिल स्कूल मास्टर की एक लड़की थी, सरस्वती, उसे पढ़ने का बहुत शौक था। गौरव भी उसी की क्लास में पढ़ता था। आठवीं क्लास पास करने के बाद गौरव ने शहर के स्कूल में एडमिशन ले लिया ओर उसके पापा ने उसे एक स्कूटी ले दी। सरस्वती के पिताजी ने भी उसका एडमिशन तो करा दिया पर साइकिल से रोज आना जाना मुश्किल हो रहा था,
ऊपर से बारिश, धूप वगैरह वगैरह, इसलिए बीच बीच में छुट्टी मार देती थी। उसके न आने से गौरव को अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उसने सरस्वती को अपनी स्कुटी पर ले जाना शुरू कर दिया। ये बात जब सरपंच को पता चली तो वो नाराज हो गए, पर गौरव ने ये कह कर शांत करा दिया कि लड़की ज़ात हैं, पढ लिख कर क्या कर लेगी, ओर तेल पानी का खर्चा भी निकल जाता हैं।
समय के साथ साथ दोनों के दिलों में प्यार पनपने लगा, पर दोनों ने कभी इज़हार नहीं किया, पढ़ाई आगे बढ़ती रही और दोनों की डिग्री पूरी हो गई। डिग्री के बाद गौरव खेती बाड़ी संभालने लगा और सरस्वती ने शहर जाकर बी. एड. करने का फैसला लिया। जब गौरव को पता चला कि सरस्वती पढ़ने के लिए शहर जा रही हैं
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तो उसने सरस्वती को प्रपोज कर दिया और खुद से दूर न जाने को कहा। सरस्वती मन ही मन बहुत खुश हुई, पर जाहिर नहीं होने दिया। फिर थोड़ा सोचा ओर बोली, मुझे टीचर बनना है, गाँव के बच्चों को पढ़ाना हैं और यहाँ मिडिल स्कूल से आगे कुछ नहीं है। हाँ, अगर 10वी, 12वी, तक यहाँ कोई स्कूल होता तो मैं सोचती, क्योंकि बी एड के बाद तो मुझे बडी क्लास को ही पढ़ाना है,
अगर मेरे बी.एड. करने तक कोई स्कूल बन गया, तो मुझे मंज़ूर है, वर्ना ना ही समझो। सरस्वती की “ना” ने गौरव को अंदर तक हिला दिया, वो मायूस होकर बोला, मैं अपने पिता जी से बात करता हूँ, शायद कुछ कर सके, ओर वहाँ से चला गया, और सरस्वती यही तो चाहती थी। गौरव घर जाकर अपने कमरे में चला गया
और सरस्वती के बारे में सोचते सोचते सो गया। अगले दिन पिताजी ने गौरव के उदास चेहरे को पढ़ लिया और उदासी का कारण पूछा। पिता ने गौरव के सर पर हाथ फेरा ही था कि उसकी आंखों से आँसू निकल गए। बेटे की आंखों में आंसू देख कर सरपंच घबरा गया ओर उसके दुःख का कारण पूछा। गौरव ने सब कुछ बता दिया और वादा लिया कि सरस्वती से ही मेरी शादी कराओगे। सरपंच न चाहते हुए भी बेटे की जिद के आगे झुक गया और बोला कि मैं कोशिश करूंगा।
सरपंच ने एक्सयूकेशन मिनिस्टर से बात करके, काफी दोड़ भाग के बाद गाँव के स्कूल को हाई स्कूल तक अपग्रेड करवा दिया और भरोसा दिलवाया की 2 साल बाद इंटर कॉलेज तक हो जायेगा। सरस्वती की बी एड पूरी हुई ओर उसने बच्चों को घर पर ही पढाना शुरू कर दिया।
कुछ समय बाद सरस्वती का सरकारी टीचर के लिए सलेक्शन हो गया और पोस्टिंग भी अपने ही गाँव मे हो गई। इसी दौरान सरपंच की हार्ट अटैक से मौत हो गई। कुछ समय बाद गौरव ने सरस्वती को उसका वायदा याद दिलाया ओर दोनो की धूम धाम से शादी हो गई। शादी के बाद गौरव भी गाँव की भलाई के लिए सरपंच बन गया और सारस्वती के साथ मिलकर गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगा।
आज सरस्वती के गांव मे डिग्री कॉलिज है और आसपास के गांव / शहर वाले अब उनके गांव मे पढ़ने आते हैं।
अब गाँव मे पक्की सड़के ओर बैंक भी बन गये है। लोकल बस सेवा भी चालू हो गई।
गाँव की तरक्की देखकर लोग गाँव का असली नाम भूलकर इसे “सरस्वती का गांव” कहने लगे।
ये सब सम्भव हुआ स्कूल मास्टर के संस्कार ओर सरस्वती की इच्छा शक्ति से।
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh )
स्वरचित, अप्रकाशित
16 Mar.25