सप्तपदी – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज सुमित के बेटे अनिरुद्ध का विवाह था उसकी ही पसंद की लड़की प्यारी और मासूम सी ऋचा के साथ। आज सुमित के लिए बहुत ही खुशी का दिन था। ये उसकी ज़िंदगी का एक बहुप्रतीक्षित पल था। वैसे तो हर माता-पिता के लिए अपनी संतान का विवाह एक खुली आंखों से देखा खूबसूरत स्वपन होता है

पर जिन संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में सुमित ने अनिरुद्ध के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियों को निभाया था वो हमारे पुरुषप्रधान समाज में लोगों की सोच से काफ़ी इतर थी। अनिरुद्ध के विवाह की सारी रस्में अच्छे से निबट गई थी।

 अब केवल सबसे महत्पूर्ण सप्तपदी अर्थात् सात फेरों की रस्म रह गई थी। इस रस्म ने सुमित के गृहस्थ जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। जैसे ही आज अनिरुद्ध की शादी में ये रस्म शुरू हुई और पंडितों का मंत्रोच्चार ने प्रारंभ किया वैसे ही सुमित अपने अतीत के यादों के गलियारे में पहुंच गया। बात शुरू होती है

जब सुमित की पढ़ाई-लिखाई पूरी हो चुकी थी और उसने टेक्सटाइल इंजीनियरिंग करके रेडीमेड गारमेंट्स की फैक्ट्री लगाई थी। अब उसके विवाह के लिए रिश्तें आने शुरू हो गए थे। सुमित देखने में खूबसूरत और काफी सुलझा हुआ नौजवान था। बिरादरी के काफ़ी लोग उसको अपनी कन्या के वर के रूप में देखने के इच्छुक थे। इसी सिलसिले में प्रतिदिन उसके घर लोगों की आवाजाही लगी रहती थी। जैसा कि कहते ही हैं कि जोड़ी और संजोग सब ऊपर से बनकर आते हैं, ऐसा ही कुछ सुमित के साथ हुआ था। 

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एक से एक समृद्ध और संपन्न परिवारों की सुंदर और पढ़ी लिखी कन्याओं के रिश्तें सुमित के लिए आ रहे थे पर सुमित के माता-पिता को उसके मामा-मामी द्वारा सुझाया रिश्ता सबसे अधिक पसंद आया। लड़की का नाम आराधना था और वो सुमित की मामी की सगी भतीजी थी। सुमित के माता-पिता भी परिवार को जानते थे। कई बार पारिवारिक आयोजन में मिलना जुलना भी हो जाता था। लड़की को भी देखा हुआ था। सुमित के माता-पिता को लगा कि किसी अनजान लड़की को बहु बनाने से अच्छा है कि किसी देखी भाली लड़की से ही सुमित का विवाह कर दिया जाए। ये सब सोचकर उन्होंने अंतिम निर्णय सुमित पर छोड़कर अपनी तरफ से इस रिश्ते के लिए हां कर दी।

सुमित ने तो वैसे भी अपनी शादी का सारा ज़िम्मा अपने माता पिता को दिया हुआ था तो उसकी तो ना का सवाल ही नहीं था। उसने इस रिश्ते के लिए बिना कुछ सोचे समझे ही स्वीकृति दे दी थी। इस तरह सुमित का रिश्ता आराधना के साथ तय हो गया। विवाह का शुभ अवसर भी आ गया । खूब धूमधाम से विवाह हुआ । उस दिन विवाह में गूंजते सात फेरों के सात वचनों को आत्मसात कर सुमित ने अपने गृहस्थ जीवन की आधारशिला रखी । विवाह के सारे आयोजन सुचारू रूप से पूर्ण हो गए थे। आराधना का गृहप्रवेश करवाया गया। गृहप्रवेश के समय से ही वो कुछ अनमनी सी प्रतीत हो रही थी। गृहप्रवेश होते ही वो कुछ कुछ बुदबुदाने लगी और बेहोशी की अवस्था में चली गई। उसकी ऐसी हालत देखकर सबको लगा शायद थकान और गर्मी की वजह से ये सब हुआ है। सबने किसी तरह से उसको अपने कमरे में पहुंचा दिया। उस दिन के सारे कार्यक्रम,जो भी छोटी-छोटी रस्में नववधू के आगमन पर होती हैं उनको अगले दिन पर टाल कर आराधना को सबने विश्राम करने दिया। रात्रि में जब सुमित अपने कमरे में पहुंचा तब उसने भी आराधना की ऐसी हालत देखते हुए उससे कुछ भी कहना-पूछना मुनासिब नहीं समझा।

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अगली सुबह जब आराधना उठी तब वो पहले से ठीक लग रही थी, आज मुंह दिखाई की रस्म रखी गई थी। पास-पड़ोस की भी काफी महिलाएं आमंत्रित थी। सब ठीक चल रहा था। तभी कुछ महिलाएं एक दूसरे के साथ बैठकर हंसी ठिठोली कर रही थी, उनको देखकर आराधना खूब तेज़ आवाज़ में उल्टा-सीधा बोलकर पागलों जैसी हरकतें करने लगी। उसको एक तरह से उन्माद का दौरा सा पड़ गया था। अब सभी मेहमानों का ध्यान सिर्फ आराधना की तरफ ही था। घर की नई बहू के साथ इस तरह की हरकत किसी को भी अपेक्षित नहीं थी। उस समय किसी तरह से आराधना को संभाला गया। सुमित की माता जी ने तुरंत आराधना के घर फोन लगाया। पहले तो उन्होंने आराधना के अंदर किसी भी तरह की कोई कमी और दौरे पड़ने की बात से इंकार किया पर जब सुमित की माताजी ने थोड़ी सख्ती से बात की तो उन्होंने माना कि भीड़ को अपने निकट देखकर कभी-कभी आराधना अनियंत्रित हो जाती है और अजीबोगरीब हरकतें करने लगती है। 

ये सब बातें सुमित की माताजी के लिए हथौड़े के वार की तरह काम कर रही थी। जो आस-पड़ोस की महिलाएं और रिश्तेदार आए हुए थे वो भी दबी जबां में आराधना के व्यवहार की ही बात कर रहे थे। सब झूठी सहानभूति दिखाते हुए वहां से निकल लिए।कहां घर में शादी की रौनक थी, कहां अब सन्नाटा पसरा हुआ था। सुमित ने समय की गंभीरता को देखते हुए माहौल को थोड़ा हल्का बनाने की कोशिश की और अपने माता-पिता को समझाया कि शायद बहुत सारी भीड़ देखकर आज आराधना की ऐसी हालत हो गई। कल जब सिर्फ घर के ही लोग होंगे तो हो सकता है वो बिल्कुल ठीक रहे। वैसे भी अब तो विवाह हो ही चुका है। सुमित के माता- पिता कहीं ना कहीं जान पहचान में उसकी शादी करके पछता रहे थे। उधर सुमित ने आराधना के घर पर उसकी स्थिति के विषय में बात करने चाही तो उन्होंने ज्यादा कुछ न बताकर बस कुछ दवाई के नाम बताएं थे जो आराधना को ऐसी अवस्था में दी जाती थी। सुमित ने किसी तरह आराधना को वो दवाई देकर सुला दिया था। इस तरह कहीं ना कहीं उसके विवाह की सारी खुशी धूमिल होती नज़र आ रही थी। 

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अगले दिन आराधना पूरे दिन तो ठीक रही पर शाम होते-होते किसी बात पर अपने आस पास का सारा सामान उठाकर इधर-उधर पटकने लगी। उसका ये व्यवहार देखकर किसी भी घर के सदस्य की हिम्मत उसके पास जाने की नहीं हुई। उसकी ऐसी हालत देखकर आज सुमित को अपने परिवार के एक जानकर डॉक्टर को बुलाना पड़ा। आराधना की ऐसी अवस्था को देखते हुए उन्होंने किसी तरह उसको नींद का इंजेक्शन देकर सुला दिया लेकिन उन्होंने स्पष्ट शब्दों में ये भी कहा कि आज तो इंजेक्शन दे दिया पर ये समस्या का निदान नहीं है। आप लोगों को इसके घरवालों से इसकी बीमारी के विषय में जांच-पड़ताल करनी चाहिए थी। उन्होंने ये भी कहा कि आराधना की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है। पारिवारिक डॉक्टर की बात सुनकर सुमित के माता-पिता के पैरो तले ज़मीन खिसक गई। उनको सुमित के मामा-मामी के द्वारा किए गए इस छल का बहुत अफसोस था। उन्होंने आराधना के घर फोन करके उसको वापिस ले जाने के लिए कहा। 

आराधना के घर वाले और सुमित के मामा-मामी सब आए,अभी भी वो उसकी मानसिक अवस्था को ठीक ही बता रहे थे पर जब सुमित के माता-पिता ने उनसे आराधना और सुमित के संबंध विच्छेद की बात कही तब वो उनके पैरों में गिरकर अपने किए की माफी मांगने लगे। तब उन्होंने बताया कि आराधना के दिमाग बचपन से ही थोड़ा कमज़ोर है। हम लोगों ने इसकी बीमारी पर शुरू से ही पर्दा डालकर रखा। इसे अवसाद और पागलपन के दौरे पहले भी पड़ते थे पर हम लोगों को लगा शायद शादी के बाद ये ठीक हो जाएंगे। उनकी ऐसी बात सुनकर सुमित के माता-पिता ने आराधना को अपने घर पर रखने के लिए बिल्कुल मना कर दिया और साथ-साथ ये भी कहा कि वो जल्द ही कानूनी कार्यवाही करके अपने बेटे और उसका संबंध-विच्छेद करवा देंगे। वो उनके छल और उनकी बेटी के पागलपन की वजह से अपने बेटे सुमित का भविष्य नहीं बरबाद कर सकते। इस तरह आराधना का सारा समान बांधकर उसको रवाना करने की पूरी तैयारी कर ली। जब आराधना घर से जा रही थी तो उसकी आंखों में बहुत निरीह से भाव थे जो सुमित को उसको रोक लेने पर विवश कर रहे थे पर आज वो इतना विचलित था कि कुछ भी सोचने समझने में असमर्थ था। इस तरह उसका वैवाहिक जीवन शुरू हुए बिना ही बिखरने की कगार पर था।

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आराधना के जाने के बाद सुमित के माता-पिता ने उसको समझाते हुए जो हुआ उसको भूल जाने के लिए कहा। उन्होंने ये भी कहा कि मानसिक अस्वस्थता के आधार पर बहुत जल्दी तलाक़ मिलता है। उसको भी मिल जायेगा और फिर वो अपना नया जीवन शुरू कर सकता है। वो ये सब कह रहे थे पर सुमित तो अपनी ही सोच में गुम था। उसके दिमाग में कहीं ना कहीं सप्तपदी के सात वचन चल रहे थे। उसको बार-बार आराधना की वो मासूम आंखें याद आ रही थी जो इन सब बातों के पीछे अपने निर्दोष होने की गवाही दे रही थी। इन सब बातों को तीन-चार दिन ही बीते थे कि सुमित के पिताजी ने एक वकील से इस केस के संबंध में बात की थी। अभी मामला कोर्ट-कचहरी तक जाता उससे पहले ही सुमित अपनी ससुराल जाकर आराधना की बीमारी के सारे डॉक्टरी पर्चे, जानकारी के साथ उसको वापिस अपने घर ले आया। अब उसके माता-पिता ने उसको समझाने की बहुत कोशिश की तब उसने कहा कि मैंने अग्नि के समक्ष सारी ज़िंदगी आराधना का साथ देने का वचन दिया है, मैं इसको ऐसे कैसे छोड़ सकता हूं। माना इसके घर वालों ने ये सब हम सबसे छुपाया,पर इस तरह की बीमारी तो इसको शादी के बाद कोई मानसिक आघात लगने पर भी हो सकती थी। तब भी तो हम लोग इसको नहीं छोड़ सकते थे। जो भी हुआ शायद वो ही मेरी नियति थी। उसकी ऐसी ही बातों ने उसके माता पिता की निरूतर कर दिया। 

इस तरह आराधना सुमित के पास वापिस आ गई। उसकी दवाई नियमित चलती। पर कभी भी वो मानसिक उन्माद की अवस्था में आकर हिंसक भी हो जाती। ऐसे में सुमित ही उसको संभाल पाता। इन सबके बीच उसने गर्भ भी धारण किया। वो सुमित के बच्चे की मां बनने वाली थी। ऐसी अवस्था में सुमित ने उसे बहुत प्यार से संभाला। नौ महीने के बाद जब वो प्यारे से बेटे अनिरुद्ध का पिता बना तब उसने अपने दम पर उस बच्चे को पाला। धीरे-धीरे आराधना भी बहुत तो नहीं पर सुमित का प्यार और सानिध्य पाकर संभल रही थी। अनिरुद्ध को पालने में उसके पिता सुमित के साथ-साथ उसकी दादी का भी योगदान था। सुमित ने कभी भी आराधना को अपने ऊपर बोझ नहीं समझा,वो किसी भी रिश्तेदार के यहां समारोह में जाता तो आराधना को भी साथ लेकर जाता। इस तरह उसने अपने गृहस्थ जीवन की नैया को सफलता पूर्वक एक सफ़ल मुकाम दे ही दिया था। अभी वो अतीत के पलों में खोया हुआ ही था, इतने में ही पंडित जी के स्वर उसके कानों से टकराए जिसमें वो नव वर-वधू से माता-पिता का आर्शीवाद लेने के लिए कह रहे थे। 

उसके बेटा और बहू ने इसके चरण स्पर्श करते हुए सभी रिश्तेदारों के सामने कहा कि वो उन दोनों को अपना आर्शीवाद दे,जिससे वो भी सारी ज़िंदगी इस सप्तपदी के सात वचनों मान रख सकें और एक दूसरे की प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां ईमानदारी से निभा सकें। आज बेटा बहू के इन शब्दों ने पूरी दुनिया की नजरों में सुमित का मान बहुत बढ़ा दिया था। आज उसके मन में अपनी जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक पूर्ण करने का एक सुखद एहसास था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। हमनें किसी स्त्री के अपने पति और परिवार के प्रति योगदान की तो बहुत सारी बातें देखी और सुनी हैं पर सुमित ने जिस सोच और धैर्य के साथ अपनी सारी जिम्मेदारियां निभाई वो सबके लिए ही अनुकरणीय हैं। 

#ज़िम्मेदारी

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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