ड्राइवर ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला ”मैम”आइए! मेरे बैठते ही गाड़ी चल पड़ी।
ड्राइवर-मैम आज कहाँ जाना है?
मैम- ऐसा करो,पहले मॉल चलना,फिर मयूर होटेल में एक इवेंट है जहां मैं चीफ गेस्ट हूँ।
ड्राइवर-ठीक है मैम,कहते ही गाड़ी ने स्पीड पकड़ी,अचानक से एक कुत्ता सामने आ गया और बंद आँखो में कैद सपना एक चप्पल की ठोंक से टूट गया…..उठ जा रानी नही तो दूसरी भी पड़ेगी जल्दी कर देर हो रही है।
रानी-क्या माँ कभी तो सपने पूरे होने दिया करो हमेशा तोड़ने पे लगी रहती हो।
सुरैया- जल्दी कर नहीं तो अकेले जाना पड़ेगा।
रानी-पहले मैं नहा लूँ फिर देखती हूँ
सुरैया-नहा के क्या करना है??जा जल्दी जा
नाम से रानी हूँ पर क़िस्मत की मारी हूँ।बाप के जाने के बाद उनकी ये जिम्मेदारी मेरे हिस्से में आयी। रोज कचरा बिनना उसमें से जो भी सामान मिलें उसे अलग कर ठेकेदार को दे बदले में कुछ पैसे पाना।इसी प्रकार गुज़ारा चलता है,पर मुझे ये सब पसंद नही था।मेरा भी ख़्वाब था कि मैं दूसरे बच्चों की तरह नयीं स्कूल ड्रेस पहन स्कूल जाऊँ।लेकिन हर ख्वाहिश पूरी हो ऐसी क़िस्मत कहाँ??
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मेरी माँ प्रतिभा जी के घर में सफ़ाई का काम करती थी।जब भी मुझे मौका मिलता ,मैं भी उनके साथ चली जाती थी।वो मुझे खाने की नयी-नयी चीज़ें देती और कभी-कभी तो अपने मेकअप का सामान भी,ये सब पाकर मैं ख़ुशी से फूली नहीं समाती थी।प्रतिभा जी पेशे से एक अंग्रेज़ी की अध्यापिका थी मुझे अंग्रेज़ी का जो भी ज्ञान मिला वो सब इनकी वजह से ही है।जहाँ ये मुझे प्रोत्साहित करती वही माँ मुझे हमेशा निराशा के कुए में ढकेल देती।
प्रतिभा-इसका दुबारे से स्कूल में दाख़िला करा दो।यूँ ही घूमने से अच्छा है कुछ पढ़ ले जीवन में आगे जा के काम ही आएग।
सुरैया- क्या मैम आप इसे ज़्यादा हवा ना दे ये क्या करेगी पढ़ के,एक तो लड़की जात और ऊपर से अच्छे नयन नक़्श वाली मुझें तो दिन-रात इसी का फ़िकर रहता है।
प्रतिभा-सब ठीक होगा ज्यादा फ़िकर मत किया करो ।
घर जाकर रानी लिप्स्टिक लगाने लगी तभी उसकी माँ ने सब छिन लिया और चिल्लाने लगी यें सब लगाके तू बाहर जाएगी।रख यहाँ और बाहर जाकर लाली हटा,शायद सुरैया आने वाले कल से डरती थी,इसलिए वो चाहती थी कि उनकी बेटी यूँही कचरें की मिट्टी में सनी रहें,पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।
प्रतिभा के समझाने पर सुरैया ने रानी को पास के सरकारी स्कूल में दाख़िला दिला दिया।रानी की खुशी का कोई ठीकाना नही रहा।क्योंकि ये स्कूल पिछले आँगनवाडी से सौ जगह अच्छा था ।
सुरैया ने रानी को कुछ लड्डू दिये और बोला कि ये मैम को दे आओं आख़िर उनकी वजह से ही आज तुम्हें स्कूल जाने का मौका मिला है।मैं भी दौड़ के उनके घर गई और जैसे ही घंटी बजाने लगी तभी मेरे कानों ने कुछ सुना ! जिसे सुन मैं दंग रह गई।जिन्हें मैं अपना गुरु मानती थी वो ऐसा कर सकती है।वो अपने बेटे को मुझ से मिलने,मेरे साथ खेलने से मना कर रही थी।बेटा वो इस लायक़ नहीं है कि तू उससे बात करे या खेले।
पर क्यों माँ ?जब वो घर आती है तो आप भी तो बात करती है,अपनी चीज़ देती है तो फिर मैं क्यों नहीं??
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बेटा तू अभी नादान है और मुझे तो “अपना उल्लू सीधा करवाना हैं”इतने कम बजट में और कौन सी काम वाली मिलेगी इसलिए थोड़ा मक्खन लगाना जरुरी है वरना घर का काम कौन करेगा??
ये सुन मेरा खून खौल गया लड्डू का चूरमा बना वही फेंक चली आई।घर आकर उनकी दी हुई सारी चीज़ो को तोड़ कचरे में फेंक दिया शायद ये इसी लायक थी ….कहते है ना कि घर,शहर की गंदगी साफ़ की जा सकती है पर दिमाग़ की नहीं …..
सारी रात नीले आसमा तले चाँद को देख यही सोचने लगी इसमें मेरी क्या गलती है कि मैं इस जात मैं पैदा हुई ये सब तो भगवान की लीला है कोई अर्श पे तो कोई फ़र्श पे।अगर पिछलें स्कूल की तरह इस स्कूल में भी बच्चों ने मेरी जात का ताना दिया तो ! नहीं मैं किसी को नहीं बताऊँगी कि मैं कौन हूँ?
यही सोच वो सो गयी अगले दिन तैयार हो बैग उठाए स्कूल के गेट पे पहुँची और इस चकाचौंध को देख सब भूल गयी।शायद वो कल की छोड़ आज में ही जीना सीख रही थी।कुछ सकुचाते हुए वो क्लास में गई और सब बच्चों को देख घबरा गई उसके लिए ये सब नया था क्या करूँ किससे बात करूँ कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा था।तभी टीना आयी और”हैलो”करते हुए बोली घबराओ नहीं ! सबके साथ ऐसा होता है आओ मेरे पास बैठ जाओ ये सुन थोड़ी राहत मिली, और इस नए सफ़र पे एक दोस्त भी बन गई।
लेकिन जब भी सब सेहेलिया अपने परिवार की बातें करती तो मैं चुप हो जाती थी।मेरे बारे में जान के सब कैसे बोलेंगे यही सोच मैं सहम जाती।पढ़ाई में अच्छी होने के कारण क्लास में रानी की अच्छी साख बन गई थी।सब बच्चे उसकी होशियारी और बुद्धिमता से प्रभावित हो गए और वो कौन है क्या है से आगे निकल गए।यूँ ही वक्त गुजरता रहा और रानी ने कॉलेज भी पास कर लिया पर इस सफर में उसकी माँ का साथ छूट गया और वो अकेली रह गई।लेकिन वो कभी रुकी नही,हर मुश्किल को पार कर मंजिल तक पहुँच गयी।
पंद्रह वर्ष बीत गए आज रानी एक स्कूल के प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत है और सब उसकी इज्जत करते है।”वो कौन है से ज़्यादा क्या है मायने रखता है”।शाम के पाँच बज चुके थे घर जाने का वक्त हो रहा था और ऊपर से तेज बारिश घर कैसे जाऊँगी? यही सोच बाहर आई तभी एक हाथ छाता लिए पीछे से आया और मुझे ढाँक लिया।घर चले कह! मुझे कार में बैठाया और संगीत माला सुनते हुए हम घर आ गए ।घबराइए नही ये शख़्स कोई और नही मेरे पति बबलू जी हैं । कहने को हम बचपन के दोस्त है चाहें आज हो या पंद्रह साल पहले का समय बबलू जी ने कभी मेरी जात से नफ़रत नही की मुझे हमेशा हर कदम पे स्पोर्ट किया।
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तिरस्कार – चंद्रकान्ता वर्मा
जैसे ही हम घर पहुँचे तो देखा मम्मी जी और आदि दरवाज़ें पे खडे हुए हमारा इंतज़ार कर रहें थे।अच्छा किया बेटा जो तुम रानी को अपने साथ ले आए।मैं तो यही सोच के परेशान हो रही थी कि इतनी तेज बारिश में रानी कैसे आएगी।हमनें अंदर आ मम्मी जी को नमन किया और आदि को ले मुस्कुराते हुए अंदर चली गयी।माना की आज सब बदल चुका है,पर आज भी कुछ बाते है जो अनकही है।तभी बाहर से आवाज़ आयी रानी बेटा ख़ाना लगा दिया है जल्दी आ जाओ ठंडा हो रहा है।खाने के बाद हम तीनों ने चाय पी और पूरे दिन की दिनचर्या पे बात की,फिर मम्मी जी शुभ रात्रि बोल आदि को ले सोने चली गई।और मैं बबलू जी के साथ चाय की चुस्की ले उनका हाथ थामे यही सोचने लगी अगर बबलू जी अपनी मम्मी यानी(प्रतिभा जी)की बात मान,मेरा हाथ ना थामते,तो शायद मैं आज यहाँ ना होती।लेकिन कहते है ना कि चाहें कोई कितने ही जतन कर ले लेकिन होता वोही है जो होना होता है।
#5वाँ_जन्मोत्सव
स्वरचित पाँचवी रचना
स्नेह ज्योति