कब से जी हलकान हुआ जाए रहा है
जाना भी जरूरी है
ई टिकटवा तो मिल नहीं रहा है
सभी ट्रेनों में रिजर्वेशन फुल दिख रहा है
अब ऐन वक्त पर तो ऐसा ही होगा
का कह रहे हैं?…. वो जो दूर के रिश्ते के भैया हैं ना.. वो दिलवा देंगे,?
कोई वी आई पी, सोर्स लगा के
दिलवाया देओ भैया.. बड़ी किरपा होई
ये लो , निरहुआ तुम्हार टिकट… वी आई पी कोटा लगवा के टिकट निकलवाया हैं … ए सी टू की सीट मिली है… ऊपर वाली बर्थ है तुम्हारी…. नीचे वाली बर्थ, पर शायद कोई वी आई पी ,ही है…. ध्यान रखना…. कोई बवंडर मत मचाना… वरना जिससे कह कर तुम्हारे लिए टिकट निकलवाया है…. बात बिगड़ जाएगी…. मतलब आगे से कहने में दिक्कत होगी…… रेलवे के बड़े अधिकारी हैं… वो तो हमारे कहने पर तुरंत एक टिकट दिलवा दिए..
नाही भैया…. हम समझत ही….. बड़ा उपकार… बहुत जरूरी रहा,इस समय
तो निरहुआ जी ,सवार हो गए ट्रेन के सफर के लिए
अरे यहां ना कोई धक्की धुक्का… ना कोई कोई लकड़ी का गट्ठर लिए घुसा आ रहा है… , ना भीड़ भड़क्का में जमीन पे बैठ गए
जिंदगी भर तो जनरल डब्बा में सफर किए… अरे टिकट थोड़ी ना खरीद पाए.. हर बार(.. बताना नहीं किसी को))…. फिर टीटी के आने पर क्या हुआ?
अब इतना किस्सा कहानी ना पूछो… बस इस बार की बात थोड़ी अलग है
मजबूरी है बहुत…
तो चढ़ गए ऊपर वाली बर्थ पर…. और बिस्तर बिछाते ही ऐसी नींद आई की कुछ पूछो मत
ऐसी जम के नींद लगी कि..
ये आवाज़ बड़ी, नींद तोड़ने वाली है
बस निरहुआ जी ने आव देखा ना ताव… नीचे वाली बर्थ पर झांका तो कोई मुंह तक चादर ओढ़ के तान के सो रहा है,….उसके पैर के पास से पकड़ के हिलाया
अबे यार, इतना खर्र खर्र करोगे तो… हम कैसे सो पाएंगे…. जरा बाकियों का भी ध्यान रखें।
धीरे से चादर खिसकी.. और मुंह बाहर निकाल कर कहा… कौन है.. मुझे परेशान कर रहा है?
निरहुआ ऊपर वाली बर्थ से टपक के नीचे आ गए
यो.. योगी जी आप??… हमसे ये बताया गया था कि कोई वी आई पी हो सकता है मगर.. आ.. आप होंगे, ऐसा तो अंदाजा नहीं था… हमें माफ कर दें सरकार… हम कहीं और चले जाएंगे… ज़मीन पर… बाथरूम के पास , नीचे बैठ कर चले जाएंगे…
चुपचाप ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ जाओ… तुरंत
जैसी आज्ञा हो सरकार
निरहुआ ऊपर वाली बर्थ पर डर कर चढ़ गए
नींद तो कोसों दूर थी
अब तो आने वाली नहीं थी
डर के मारे नींद आंखों में नींद कहां
इतनी लंबी रात कैसे कटेगी?
चलो टाइम पास मूंगफली निकाल कर खाते हैं
क्या चटर पटर मचा रखा है ऊपर
माफ कर दें सरकार..
नीचे उतर कर आओ
अब बगैर कहे मुर्गा किसलिए बन रहे हो.?.. कहां जा रहे हो?
सरकार हमारी मेहरारू रिसियाए के मैके चली गई है…. बस मना के लिवाने जा रहे हैं बहुत इमरजेंसी में यही जुगाड़ लगा कर टिकट मिली
हा हा हा
अपनी समस्या हमें काहें नहीं बताए…. हमारे राज में सब कुछ ठीक से रहे.. ये हम देखते हैं…
अब ये पीछे से लात कौन मार रहा है?
जरूर कोई सुरक्षा कर्मी होगा…
उठ निरहुआ…. नींद खुल गई हो तो…. और सपने में ये योगी जी.. योगी जी क्या बोल रहा है,?
हमें वी आई पी जुगाड़ से बर्थ मिल गई थी…. नहीं नीचे वाली बर्थ पर सरकार रहें ….
चुप बकैती बहुत लगात है
हाथ जोड़ के माफ़ी मांगत हैं….. का करी सपने पर कोई जोर नहीं…. जब से हमरी मेहरारू रिसियाए के मायके गई है….
कहे थे टिकट वी आई पी कोटा से दिलवा देंगे
खाली बातें ही थीं
थोथा चना बाजे घना
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित
पूर्णिमा सोनी
मुहावरा प्रतियोगिता,# थोथा चना बाजे घना
शीर्षक — सपने पर.. जोर कहां!
विधा — हास्य व्यंग