उठो बेटा! जल्दी उठो! सुबह के साढ़े चार बज गए हैं। सपना दोनों बच्चों को सुबह-सुबह जगा रही थी…. यह सपना के दिन की शुरुआत का पहला महत्वपूर्ण पड़ाव होता था। सुबह बच्चों को उठाकर पढ़ने बैठाना बहुत ही टेढ़ी खीर होती, क्योंकि बच्चे तो बच्चे ही हैं!! जल्दी उठना ही नहीं चाहते। लेकिन मम्मी भी ….बच्चों के पढ़ाने के लिए अपने सारे पैतरा अपनाती। सुबह-सुबह बच्चों के लिए मनपसंद चॉकलेट मिल्क बनाकर देती जिसकी खुशबू से ही बच्चे उठ जाते…. बस इसी का फायदा उठाकर सपना बच्चों को पढ़ने बैठा देती थी।
सपना बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई कोताही नहीं बरतती और न ही कोई समझौता! उनके लिए तो बस… “सारी दुनियादारी एक तरफ, बच्चों की पढ़ाई एक तरफ।”
बच्चों के स्कूल जाने के बाद उनके कोर्स को अच्छे से पढ़ती,समझती और बाद में बच्चों को पढ़ाती… वह अपना शत प्रतिशत बच्चों को दे रही थी।
सपना बहुत व्यावहारिक थी, अक्सर उसकी एवं उसके पति की मित्र मंडली घर आ धमकती …क्या मजाल कि कोई बिना खाना खाए घर से जा सके। बच्चा-बच्चा उनके व्यवहार से वाफिक था।
मोहल्ले और रिश्तेदारी में कौन बीमार है, किसे मदद की आवश्यकता है…. सपना बढ़-चढ़कर उसकी सहायता करती। वह सभी औपचारिकता पति के ऑफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद ही निभाती।
कभी किसी शादी या बर्थडे पार्टी में जाना होता सपना बच्चों को पढ़ाकर ही सपरिवार पार्टी में जाती। बिना बच्चों को पढ़ाये कहीं जाने का प्रश्न नहीं उठाता। पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को लेकर छुट्टियों में मूवी देखना, घूमना फिरना इंजॉय भी खूब करती थी।
दोनों बच्चे पढ़ने में अच्छे थे। सपना की कोशिश और बच्चों की मेहनत रंग लायी। बच्चे पूरी कक्षा में फर्स्ट रैंक लेकर ही पास होते थे। धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा बच्चे हायर क्लास में पहुंच गए। अब बच्चों के मन में हमेशा कॉलेज टॉप, यूनिवर्सिटी टॉप करने की होड़ रहती और वह हमेशा टॉपर ही रहे। सपना यह सब देखकर फूली नहीं समाती।
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सपना के पति संजय हमेशा कहते हैं कि तुमने घर, बच्चों एवं रिश्तेदारी के बीच बहुत अच्छा तालमेल बैठाया है। मैं गर्व से कहता हूं कि तुम्हारे कारण ही हमारे बच्चे इतने सफल हुए हैं।
दोनों बेटों की नौकरी देश से बाहर नॉर्वे और लंदन में लगी, अच्छा वेतन और मनपसंद माहौल दोनों बेटों को भा गया और वह वहीं बस गए। दोनों बेटों ने अपनी मनपसंद लड़कियों से विवाह कर लिया। सपना ने दोनों बहुओं के साथ हमेशा सामंजस्य बिठाया। बेटा बहू जब भी घर आते तो सपना पहले की भांति नाश्ता, खाना बनाती… क्योंकि दोनों बहूओ को खाना बनाना ही नहीं आता था। सपना ने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की। अक्सर लोग कहते कि बेटा बहू आए हैं फिर भी तुम पहले की ही भांति खट रही हो… अब कुछ तो आराम करो!!
सपना हंसते हुए कहती… क्या ही फर्क पड़ता है जैसे सबके लिए बनाते हैं वैसे बहुओं के लिए भी बना लेते हैं। अभी बहुओं को खाना बनाना नहीं आता हैं। धीरे-धीरे सब सीख जाएंगी। सपना के अन्दर गजब का धैर्य था।
समय बीतता गया संजय भी अपनी नौकरी से रिटायर हो गए। अब ढलती सांझ में संजय का ज्यादातर समय अपने मित्रों के साथ व्यतीत होता और सपना अपने मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती। सभी जानते थे कि सपना की टीचिंग बहुत अच्छी है इसलिए हर कोई अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए सपना के पास ही भेजता था। दोनों पति- पत्नी का समय ठीक ठाक व्यतीत होने लगा।
कुछ वर्षों के बाद संजय को हेल्थ इश्यू रहने लगे। नियमित जांच पड़ताल के बावजूद भी एक रात संजय को हार्ट अटैक हो गया। सभी मोहल्ले वालों ने मिलकर अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
दोनों बेटों ने जब सुना तो विदेश से अपने पापा के अंतिम दर्शन करने के लिए आ गए ।
सपना एकदम अकेली रह गई। दोनों बेटों में से किसी ने एक बार भी नहीं कहा.. कि मांँ मेरे साथ चलो!!
शायद बोलने से भी सपना उनके साथ जाती नहीं…. क्योंकि उसे अपने आसपास के लोगों, घर और ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों से बेहद प्रेम था। उन सभी के साथ ही वह अपने सुख-दुख बांटती।
कोई गरीब बच्चा होता उसे कापी किताब, स्कूल यूनिफॉर्म एवं फीस अपनी तरफ से देती। गरीब बच्चों की खुशी के लिए उसका जन्मदिन अपने घर पर सभी बच्चों के साथ मिलकर मनाती, जिससे बच्चे बहुत खुश होते। सपना मैंम सभी की बहुत प्रिय शिक्षिका की शुमार में थी।
“फिर भी…. वह अपने बेटों के मुंह से एक बार सुनना चाहती थी कि कोई बेटा अपने साथ ले जाने के लिए बोले…!! लेकिन…उनकी यह हसरत अधूरी ही रह गई। कुछ दिन रहने के पश्चात दोनों बेटे वापिस चले गए।
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सपना का एक विद्यार्थी था आदित्य। जो बेहद गरीब बच्चा था। सपना ने उसके माता- पिता से बात करके उसे अपने घर में ही रख लिया। उसे पढ़ाने- लिखाने की पूरी जिम्मेदारी सपना ने ले ली। धीरे-धीरे सपना की जिंदगी दोबारा पटरी पर आ गई। आदित्य सपना के साथ घर के काम में मदद करता और खूब मन लगाकर पढ़ाई करता।
सपना अक्सर अपने दोनों बेटों के साथ फोन और वीडियो कॉल करके खुश होती, उन्हें संतुष्टि थी कि दोनों बच्चे अपने-अपने जीवन में खुश हैं।
पिता के गुजर जाने के बाद कई साल हो गए दोनों बेटे माँ से मिलने नहीं आए। सपना ने उन्हें कई बार बुलाया लेकिन वह हमेशा अपनी व्यस्तता बताकर किनारा करते रहे।
आदित्य पढ़ाई में होशियार था उसने हाई स्कूल, इंटरमीडिएट फर्स्ट डिवीजन अच्छे परसेंटेज से पास किया। इसके बाद आदित्य ने बनारस यूनिवर्सिटी में बीएससी के लिए दाखिला लिया। आदित्य सपना मैंम का बहुत सम्मान करता और उनकी सेवा में हमेशा तत्पर रहता।
बीएससी करने के बाद आदित्य की जॉब लग गई, वह सपना मैंम का रोम- रोम से आभारी था। वह अच्छी तरह से जानता था कि अगर सपना मैंम ने मदद नहीं की होती तो वह भी अपने पिता की तरह सब्जी के ठेले लगाता होता।
कई बार सपना ने आदित्य को टोका कि वह उसे आंटी बुलाया करें लेकिन आदित्य मैंम ही बोलता।
एक दिन हिम्मत करके आदित्य ने सपना से बोला- क्या मैं आपको मां बुला सकता हूं?
सपना यह सुनकर रहस्यमयी मुस्कान से थोड़ा मुस्कुराई और बोली… नहीं! तुम मुझे आंटी बुलाया करो, “क्योंकि मां कहने वाले बच्चे अक्सर दूर हो जाते हैं!! उनके एक-एक शब्द में बहुत ही दर्द था।”
आदित्य सपना मैम की आंखों में दर्द स्पष्ट रुप से देख सकता था। उसने मन ही मन यह प्रतिज्ञा ली कि वह सपना मैंम को कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।
आदित्य की नौकरी लगने के बाद उसने अपने घर की माली हालत सुधारी और अपने माता-पिता को गरीबी से मुक्ति दिलाई। आदित्य के माता-पिता हमेशा उसे कहते… कि बेटा! तुम्हारे असली माता-पिता तो सपना मैंम है जिन्होंने तुम्हें इस लायक बनाया।
सपना मैंम ने अपने मकान को प्राइमरी स्कूल बनाने हेतु एवं अपनी संपत्ति को गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए ट्रस्ट को सौंप दिया, उसका ट्रस्टी आदित्य को बनाया।
– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित, अप्रकाशित, मौलिक
हल्दिया मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल
#ढलतीसांझ कहानी के प्रकाशन हेतु