मधु बहुत ही शांत स्वभाव वाली बहू है ,उसकी नयी नयी शादी हुई थी उसके मायके का माहौल बिल्कुल विपरीत था,जिस कारण से उसे शोरगुल होता रहे तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।उसे मानसिक अशांति सी महसूस होने लगती, लेकिन जब से ससुराल आई तो उसे यहां पर वैसा माहौल नहीं मिला। जैसा वो चाहती थी , लेकिन यहां ससुराल में पूरे दिन बच्चों का शोर होता!वो एक दिन अपने पति से कहती – तुम्हारा कैसा परिवार है! यहां पर कभी शांति तक न रहती। क्योंकि उसके परिवार में गिने चुने लोग थे,
तो वो अपने परिवार को बहुत अच्छा समझती थी।उसे हमेशा लगता कि परिवार के लोग अलग- अलग रहे । जरुरत पड़ने पर एक हो जाएं। उसके पापा की फैमिली भी बहुत कम एक साथ रहती थी। इसलिए उसने इस तरह माहौल देखा ही नहीं था उसके पापा सर्विस वाले थे।केवल गर्मी की छुट्टी में गांव जाते थे। उसे ससुराल जैसा माहौल नहीं मिला था ।वहां भी सब एक होकर नहीं रहते, कभी बड़े पापा दादी दादा के पास जाते ,कभी उसके पापा ,इस तरह का माहौल उसने देखा ही नहीं था , कि बहुत सारा खाना बन रहा हो…इतने सारे गेहूं की धुलाई हो रही है …यहां सब साथ रहने पर ज्यादा ही खाना बनता ,सब एक साथ रहते तो सबका काम देखकर उसे लगता बाप रे बाप!!कितने सारे कपड़े धुले जा रहे हैं ,कितनी सारी खीर बन रही है।इस तरह संयुक्त परिवार की बहू होने पर मधु को अंदर ही अंदर झुंझलाहट सी होने लगी थी।
उसकी तीन जेठानी और दो ननद है। उनके बच्चे साथ ही रहे तो शोर गुल होना तो बनता ही है।वो कभी लड़ते-झगड़ते ,कभी दौड़ भाग करते ,ऐसा होना स्वाभाविक ही था।सोने पर सुहागा वाली बात ये थी कि उनकी ननदों की ससुराल भी यही की है..वह भी बिना बुलाए हमेशा ही आती रहती।घर का माहौल कभी शांत न रहता।और ननदों का भी मायके के प्रति मोह कभी कम न होता।
जबकि मधु के मायके में सब काम बहुत कम समय हो जाता था ।मधु के पापा की एक तो सर्विस होने के साथ ही दो भाई बहन वाला ही उसका मायका था। उसके चाचा चाची, बुआ सब दूर दूर रहते खैर•••••
पर यहां पर न उसे शांति नसीब होती है ,न ही आराम!खैर….
एक दिन मधु ने अपने पति समर्थ से पूछ ही लिया ऐसा कब तक चलेगा। मैं इतने शोरगुल वाले माहौल में नहीं रही हूं। मुझे सिर में बहुत दर्द होने लगता है।तो समर्थ ने कहा कि तुम चाहती क्या हो?
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देखो मधु मैं एक बात साफ- साफ़ समझा देता हूं, मेरी दादी मां की दिन रात बड़बड़ाने की आदत है।वो तुम्हारे आने से तो बदल नहीं सकती ,जब तक वो काम भाभियों से करा न ले तो उन्हें चैन न मिलता, क्योंकि उनके समय अनुसार काम न हो तो वो बार बार कराकर ही दम लेती और तुम तो जानती ही हो ये बच्चों वाला घर है, हल्ला गुल्ला तो होगा ही, बच्चे खेलेंगे नहीं तो क्या करेंगे।
तब मधु कहती बच्चों की धमाचौकड़ी भी चलती रहती है। उसके कारण मेरे सिर में दर्द होने लगता है, मैं क्या करूं मुझे इसकी आदत नहीं है,इधर तो प्राइवेसी नाम की चीज नहीं है,जिसे जरुरत वो धड़ाधड़ कमरे में बेझिझक चला आता है,न दिन को चैन है न रात को आराम है … मैं बहुत परेशान हो चुकी हूं। आखिर कब तक चलेगा वह बोला धीरे- धीरे सब ठीक हो जाएगा।
अब दिन रात इसी बात पर मधु परेशान रहने लगी….
पर मधु को लग रहा था कि कब यहां से दूर जाकर शांति से रहूं।वह हर दो चार दिन यही बात समर्थ से कहती।पर समर्थ कहां जल्दी मानने वाला था!उसे लगता कि एक दूसरे के साथ रहने में ज्यादा सुविधा है।यदि कोई परेशानी हो तो कोई अकेला नहीं होता है।
फिर मधु की वही बात सुन- सुनकर उसने एक दिन निश्चय किया कि मधु हमेशा परेशान रहती है, इससे अच्छा है कि अलग रहने लगो। कम से कम मानसिक शांति तो रहेगी। मधु क्योंकि वह बीमार रहने लगी थी। फिर सबने उसे डाक्टर को दिखाया।तो पता चला कि बचपन में सीढ़ी पर गिरने की वजह से दिमाग पर गहरा असर हुआ था। उसके मम्मी पापा ने दामाद को बताया था।उसे ज्यादा शोरगुल से सिर दर्द होता है।
अब क्या था वह मधु के लिए समर्थ ने परिवार से अलग रहने का निर्णय लिया।ताकि मधु को मानसिक टेंशन न हो। और बी.पी लेबल भी न घटे।वह भी टेंशन के कारण घट जाता था। जिससे वह बहुत परेशान हो जाती थी ।दवाई का जब तक असर रहता तब तक ठीक रहती!
और फिर समर्थ ने परिवार में समझाया कि मधु मेरी जीवन साथी है ,उसका ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी है।अब आप लोगों बताएं मैं क्या करूं? मैं आप सबसे दिल से दूर नहीं हो रहा हूं। मैं और मधु आपसे हर त्योहार पर मिलते रहेंगे।
पर उसे रोज -रोज ही मानसिक अशांति ठीक नहीं है उसे सुकून न मिले,, साथ ही तनाव में रहे। और बीमार रहने लगे, इससे अच्छा मैं आप लोगों से दूर रहूं।
इस कारण मैंने अलग घर ले लिया।इस बात पर सबने सहमति दे दी।घर में बच्चे भी भला कैसे शांत रह लेते, और बहनों का भी आना रुक नहीं सकता,तो समर्थ ने मधु की सेहत को देखते हुए उसने अलग रहने का निश्चय कर किराए का घर ले लिया।
आज मधु को नये घर में शिफ्ट होने पर शांति सी महसूस होने लगी थी।आज उसे लगा कि कमरे के आसपास क्या! कहीं भी शोरगुल नहीं है। धीरे-धीरे उसे समय बहुत बड़ा लगने लगा ••••
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खाना बनाने की जिम्मेदारी से लेकर घर के हर काम की जिम्मेदारी उसी पर आ गई।न तो उससे पूछने वाला कि खाना खाया या नहीं, रह-रहकर उसे आज जेठानी और उनके बच्चों की याद आ रही थी।जब भी समर्थ आफिस जाता तो पूरे घर में सन्नाटा छा जाता।अब उसे इतने दिनों से सबके बीच रहते हुए लग रहा था ,सब एक दूसरे का कितना ख्याल रखते थे••• केवल मुझे खाना बनाने में ही हाथ बंटाना पड़ता था। ये समर्थ के परिवार में संस्कारों की नींव ही थी जो उनको एकता की डोर में बांधे हुए थी।पर यहां तो सब मुझे करना पड़ रहा है खैर••••
एक दिन कपड़े की बाल्टी भरकर सुखाने जा रही थी तभी उसका पैर मुड़ सा गया और वह गिर गई।तभी वह उठ तक न पा रही थी।वह वहीं गिरी रह गई। आंखों में आसूं की धारा बहे जा रही थी।वह सोच ही रही थी कि फोन करके समर्थ को बता दूं। थोड़ी देर दर्द सहा। और उसे ससुराल के सब लोग याद आ रहे थे। यदि हम सब साथ रहते तो कैसे दौड़े चले आते।
तब उसने बैठे- बैठे ही खिसक -खिसककर फोन उठाने की कोशिश की। फिर वही पड़े मोबाइल से फोन समर्थ को लगाया ,तब समर्थ ने कहा -” मधु मेरे आफिस में मीटिंग है। मैं घर में भाभी से बोला देता हूं।तब वह बोली ठीक है आप कह दीजिए।”
उसके बाद दस मिनट में ही बड़ी भाभी आ गई। तुरंत मधु को बैड पर बैठाया, देखा तो पैर में सूजन आ गई। उसके बर्फ से सिकाई की। उन्हें हल्दी वाला दूध पीकर आराम करने कहा।
फिर शाम हुई ,तो समर्थ भी मीटिंग खत्म करके जल्द ही लौट आया । उसे मधु की चिंता थी। फिर भी विश्वास था भाभी घर पहुंच कर देख लेंगी।
इस तरह घर पहुंचते ही देखा तो कहा क्या हुआ मधु कैसे गिर गई।तब भाभी बोली-” भैया चिंता वाली बात नहीं है, अब सूजन कम हो गई।यदि ज्यादा दर्द हो रहा है,तो हम लोग मधु को डाक्टर के पास लेकर चले। मधु पैर घुमा घुमाकर देख रही थी ,ठीक लग रहा है। फिर मधु ने कहा -” भाभी ने पैर की सिकाई की है।अभी तो ठीक लग रहा है।”
तब समर्थ ने कहा – ” खड़े होने की कोशिश करो।तब पैर में बहुत तकलीफ़ हो रही थी।तो बड़ी भाभी और समर्थ ने देर न करते हुए डाक्टर के पास ले गए।तब एक्स-रे के बाद पता चला कि हल्का माइनर फैक्चर हो गया।तो उसके पैरों में कच्चा प्लास्टर बांधा गया। और पैर को जमीन पर रखने से मना किया। उसके बाद क्या था उसे अपने ससुराल वाले घर ले जाया गया।तब सबने उसका बहुत ख्याल रखा। एक सप्ताह बाद पक्का प्लास्टर भी बंधा।सभी बच्चे बड़ों का उसे अपनेपन का एहसास मिला।आज जब उसे सबके साथ की जरूरत थी ,सब उसके साथ थे।
धीरे-धीरे उसका पैर ठीक हो गया। और अपने घर जाने लगी ।तब सबने कहा -“क्यों मधु यहां किस बात की कमी है यहीं क्यों नहीं रह जाती।”
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तब वह बोली- हां मैं रहना तो चाहती हूं।पर ज्यादा शोरगुल से मेरे मस्तिष्क पर असर होता है।हम सब एक हैं। मैं आप सबको अपना मानती हूं। मैं चाहती हूं कि मन पर बोझ न रहें।हम सब हर त्योहार पर मिलते रहेंगे।
वह वापस अपने घर आ गई तो उसे वहीं सूनापन लगा। लेकिन पहले जैसी उसकी सोच थी ,वह बदल गई।वह फोन पर सबसे खुलकर बात करने लगी।वह सबके स्वभाव और आदतों को समझ चुकी थी। उसे संयुक्त परिवार की अहमियत भी समझ आ गई।अब जब भी जाती खुलकर बात करती। और उसे झुंझलाहट भी न होती।
कुछ दिन बाद होली आने वाली थी।
उसने सोचा… चलो होली आने वाली है ,तभी सबसे मिलने हो जाएगा। उसने अपने घर पर सैलिब्रेशन की कोई तैयारी नहीं की,न कोई पकवान बनाए,इधर जेठानी और ननदों के फोन भी आ रहे थे ,मधु घर आ जाओ, तुम्हारे रहने से घर में रौनक रहती है। होली में बहुत मज़ा आएगा,तुम रहती थी ,तो हम लोगों को भी अच्छा लगता था। बच्चे भी चाची -चाची करके थकते नहीं है।
उसने कहा-” हां हां भाभी हम सब मिलकर ही होली मनाएंगे , समर्थ को भी अच्छा लगेगा।”
फिर उसने समर्थ से कहा-” सुनो समर्थ होली सैलिब्रेट करने के लिए घर चलना है।” तब समर्थ ने कहा – “फिर शिकायत मत करना।कि कितना शोरगुल होता है। तुम्हारा सिरदर्द हो रहा है। ” तब उसने कहा -” मेरी ही गलती थी कि अपने ही परिवार को दोष दे रही थी। वहां सबका आपस में कितना तालमेल है।सब एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। जहां चार लोग होंगे ,वहां हल्ला होना तो स्वाभाविक है ,जैसे चार बर्तन के साथ होने पर आवाज तो होती ही है। मैं भी एडजस्ट करने की कोशिश करुंगी।
तब समर्थ ने कहा- हां हां चलो ,नेकी और पूछ-पूछ,इस तरह की बात सुनकर समर्थ के चेहरे पर चमक आ गई।
क्योंकि समर्थ संयुक्त परिवार में पला बड़ा था,उसको सबके साथ ही अच्छा लगता था।
तब उसकी खुशी को देखते ही मधु ने कहा -” अब तो मैं भी समझ चुकी हूं,सबके साथ रहने में कितना मजा आता है, मैं तो खूब खेलूंगी होली… इतना सुनते ही समर्थ ने कहा-” चलो तुम्हें हमारे घर के लोगों के प्रति अपनेपन का एहसास तो हुआ ,पहले तो तुम्हें मेरे घर के लोगों में कमी ही नजर आती थी।
फिर दोनों होली मनाने के लिए घर गए ,जिससे समर्थ की खुशी बढ़ गयी। और मधु को उस घर का माहौल अच्छा लगने लगा।
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उसे इस तरह एकल परिवार से ज्यादा संयुक्त परिवार की अहमियत समझ आ गई। उसके ससुराल में कोई भी त्योहार होता तो वह वहां खुशी- खुशी जाती । ससुराल के प्रति जिम्मेदारी निभाने में पीछे नहीं हटती। वह वहां तब तक रहती, जब तक उसे अच्छा लगता । और वह ससुराल के संस्कारों में रम गयी।
इस तरह संस्कार की नींव इतनी मजबूत थी कि समर्थ चाहकर भी परिवार से दूर नहीं हो पाया।आपसी सुसंगठित संयुक्त परिवार का वह हिस्सा गयी।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया