संयुक्त परिवार का प्यार – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

बेटा मेरा टिकट करवा दें मुझे अपने घर जाना है गोपाल जी बोले , अपना घर अब यही अपना घर है बाबूजी अखिल बोला किस घर जाने की बात कर रहे हो जहां आपका कुछ नहीं है ।न कोई अपना कहने को ।घर में बस न का  हिस्सा है बस कहने को दो छोटे छोटे कमरे थे आपके पास और अब तो मां भी नहीं रही कौन है वहां अपना जो आपका ख्याल रखेगा । कोई किसी का नहीं होता बस अपने बच्चे ही अपने होते हैं ।

कुछ भी हो बेटा मुझे तो बस जाना है गोपाल जी ने जिद पकड़ ली थी जाने की ।आते जाते सुबह शाम बस यही रट लगाए रहते थे गोपाल जी ।मेधा अखिल की पत्नी सारी बातें सुन रही थी तो अखिल से बोली बाबूजी दिनभर रट लगाए हैं जाने की तो जाने दो जान छूटे घर और आफिस के साथ इनकी देखभाल और करो । अरे अभी तो जिस मतलब से लाए हैं यहां वो तो पूरा हुआ नहीं है कैसे जाने दे अखिल बोला।

              चार महीने पहले गोपाल जी की पत्नी श्यामा का देहांत हो गया था ‌‌‌‌‌‌गोपाल जी के एक बेटा और एक बेटी राधिका थी । दोनों की शादी हो चुकी थी । गोपाल जी चार भाई थे दो गोपाल से बड़े थे और एक भाई छोटा था। बड़े भाई के चार चार बच्चे थे पर गोपाल जी के दो बच्चे थे और छोटे भाई मोहन के भी दो बच्चे थे। मोहन के एक बेटे का विवाह होना अभी बाकी था। सभी का संयुक्त परिवार था ।एक बड़ा सा हाता था जिसमें सभी भाई का परिवार ऊपर नीचे करके रहते थे । सभी भाई और भतीजे बड़े दालान में बैठकर एक साथ चाय पीते गप्पे लड़ाते नास्ता करते , कभी कभी साथ खाना भी खा लेते ।

कभी किसी के यहां कुछ बना तो किसी के यहां कुछ सब एक दूसरे को खिलाकर खुश हो लेते। कोई भेदभाव नहीं था । बड़े भाई के बेटे भी अब पचास पचास साल के हो रहे थे । पूरा मान सम्मान और प्यार छोटे बड़े को दिया जाता था। बड़े भाई छोटे भाई को पूरे अधिकार से डांट सकते थे ।घर की बेटियों को तीज त्यौहार पर बराबर बुलाना और उनको सम्मान देना सभी का फर्ज होता था और घर की बहुएं भी मर्यादा में रहती थी।

                     खुशहाल सी जिंदगी बीत रही थी । बड़े लोग काम धंधे से रिटायर होकर घर पर आराम कर रहे थे और घर की जिम्मेदारी बच्चों ने संभाल ली थी । इसी बीच गोपाल जी की पत्नी श्यामा को यूटेर्स का कैंसर निकल आया। काफी इलाज हुआ और घर पर दूसरी बहुओं ने भी काफी देखभाल की । गोपाल जी का बेटा प्राइवेट कंपनी में बाम्बे में नौकरी करता था

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तो वो तो पास होता नहीं था।घर के दूसरे भाइयों की  बहुओं ने श्यामा जी का खूब ख्याल रखा लेकिन वो बच न पाई और उनका देहांत हो गया । गोपाल जी अकेले होकर भी अकेले नहीं थे । संयुक्त परिवार का यही तो फायदा है ।सबके बीच में उनको अकेला पन महसूस ही न होता था। कभी किसी भाई के यहां खाना खा लिया कभी किसी के यहां ।गरमा गरम खाना मनुहार करके एक एक रोटी खिलाना भूख से ज्यादा खा लिया जाता था।

                      फिर एक दिन अखिल कहने लगा बाबूजी अपने घर में अपना हिस्सा ले लो और उसको बेचो बाचो और हमारे पास आकर रहो ।अब वहां पर क्या करोगे अब आपको अपने बेटे बहू के पास रहना चाहिए ।और अब तो मां भी नहीं है क्या रखा है वहां , क्या रखा है वहां गोपाल जी बुदबुदाएं , जिंदगी के 65 साल बिताए हैं यहां ।इस घर में सबका प्यार अपनापन देखा है ,बड़े छोटे का मान बहू देखा है , बहुओं की इज्जत देखी है बच्चों में संस्कार देखा है तुम क्या जानो बेटा तुम तो घर से बाहर हो गए हो हां बचपन जरूर यहां बिताया है

अब शहर में रहने लगे हैं तो शहर की बातें करने लगे हो । कोई अकेला पन नहीं लगता यहां सब साथ में रहते हैं ।और घर का हिस्सा ले लूं  ये बात तो हम किसी से कह ही नहीं सकते ।सबके पास दो दो कमरे हैं वहीं हमारा हिस्सा है । सबको एक दूसरे पर विश्वास है ।तीस हजार रुपए मिलते हैं पेंशन की बस उससे हमारी जरूरतें पूरी हो जाती है और बच भी जाता है ।

                   अखिल और राधिका दोनों प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे ।किराए का फ्लैट ले रखा था ।अब मां के न रहने पर गोपाल जी अकेले रह गए थे तो अखिल और राधिका के दिमाग में कुछ चलने लगा। अखिल को बाम्बे में फैलैट खरीदना था उसके लिए पैसे चाहिए थे कहीं से जुगाड न होता देखकर बाबूजी का

ख्याल आया जो भी कुछ मिल जाए वही सही।घर का अपना हिस्सा ले ले बाबूजी और उसको बेच दें और फिर तीस हजार पेंशन भी तो बाबूजी को मिलती है बेकार में वहां ताऊजी के और दूसरों बच्चों पर खर्च करते रहते हैं ।यहां रहेंगे तो वो पैसे भी हम लोग को मिल जाएंगे बाबूजी का खर्चा ही क्या है। अखिल कुछ समय परिवार से दूर क्या रहे बचपन से मिला प्यार स्नेह और अपनत्व भी भूल गए ।

      गोपाल जी की कुछ समय से तबियत ठीक नहीं थी सांस फूल रही थी ।इस बार दीवाली पर अखिल घर आया तो था कुछ दूसरी मंशा से। गोपाल जी को जिद करने लगा बाम्बे चलने को न जाने का सवाल ही नहीं उठता था वहां जाकर इलाज करवा देंगे यही बहाना सबसे अच्छा लगा। बाबूजी अब आपको बेटे बहू के साथ रहना चाहिए लेकिन गोपाल जी बराबर मना करते रहे । आपकी तबियत ठीक नहीं है चलिए डाक्टर को दिखा देंगे । बड़े भाई के कहने पर चला जा गोपाल इलाज कराकर आ जाना ।सो जाने को तैयार हो गए ।

                         इतना भरा पूरा घर छोड़कर बाम्बे आ गए गोपाल जी । जहां दो कमरों में जिंदगी सिमट जाती है उसे बड़ा शहर कहते हैं ‌य

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यहां आने पर कई बार कहने पर अखिल ने गोपाल जी को डाक्टर को दिखा दिया बस।अब सुबह नौ बजे अखिल और राधिका दोनों अपने आफिस चले जाते खाना बना रखा है नास्ता बना रखा है आप खा लेना   कहकर।अब गोपाल जी को बड़ा अजीब लगता वहां घर पर कभी अपने हाथ से लेकर खाया नहीं है ।

ठंडा ठंडा खाना वहां तो एक एक रोटी गरम गरम और मनुहार करके खिलाती थी बहुएं ।भले ही वो बड़े भाई की बहुएं थी तो क्या मन गदगद हो जाता था।शाम की चाय के लिए बैठे हैं अब राधिका और अखिल तो आठ बजे आएंगे ।एक दिन गोपाल जी ने कहा दिया कि शाम की चाय नहीं मिल पाती है ।तो राधिका बोली हमलोग तो आफिस में होते हैं अब चाय कौन सी बनाए आप अपने आप बना लो या शाम की चाय पीना छोड़ दो ।

              दिनभर अकेले बैठे बैठे गोपाल जी ऊब जाते थे न कोई बोलने वाला न चालने वाला । वहां बड़े शहरों में तो अडोस पड़ोस भी न होता है ‌अ ब गोपाल जी को घर की याद सताने लगी।

            आज अखिल बोला बाबूजी मुझे मुम्बई में फ्लैट खरीदना है आप घर के पुश्तैनी मकान में अपने हिस्से की मांग करें और उसे बेचकर पैसा दे फ्लैट के लिए देना है ।अब अखिल की मंशा अच्छे से समझ आ गई गोपाल जी को ‌। उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया कि हम नहीं मांग सकते जीते जी हिस्सा हम जो दो कमरों में रहते हैं वहीं हमारा हिस्सा है ।जब तक जिंदा है बस वही मेरा हिस्सा है। किसी ने आजतक अपने हिस्से की मांग नहीं की तो मैं कैसे ,,,,,,,,,,।

          गोपाल जी अच्छे से समझ गए कि अखिल क्यों मुझे यहां लेकर आया है ‌। अखिल की मंशा समझ कर वो जिद करने लगे कि मेरा टिकट करवा दो मुझे जाना है ‌‌ लेकिन वहां बीमार होंगे तो कौन देखेगा यही पर कौन देख रहा है दिनभर अकेले पड़ा रहता हूं । वहां पर बहुत लोग हैं देखने को तुम चिंता मत करो ।

            आज गोपाल जी घर आकर बड़े भाई के गले लग गए ,क्यों रे लड़के के पास मन नहीं लगा क्या,अरे भइया वो बड़ा शहर है वो घर नहीं है फ्लैट हैं ,घर तो ये है जहां आप हो इतने सारे भाई भतीजे है नाती पोते है और बहुएं है चाहे आपकी ही सही मेरा भी उतना ही सम्मान करती है जितना कि आप लोगों का ।

बुढ़ापे में और क्या चाहिए  थोड़ा सा प्यार और अपनापन । यही तो संयुक्त परिवार का फायदा है । जहां डांट डपट है तो प्यार और मनुहार भी तो है । अच्छा चल छोटे गरमा गरम चाय नास्ता करते हैं । हां हां भइया चलो वहीं दालान में बैठते हैं । फिर हंसी ठिठोली का दौर चल पड़ा ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

23 सितम्बर 

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