सुबह के सात बजे होगें, शनिवार की सुबह, नीरजा चाय बनाने के लिए रसोई में गई ही थी कि मोबाईल बज उठा, देखा तो मिनी का फोन था, मिनी यानि की नीरजा और लोकेश की लाडली बेटी। इतनी सुबह फोन और वो भी शनिवार को, मिनी तो छुट्टी वाले दिन दस बजे से पहले बिस्तर नहीं छोड़ती। मन ही मन सोचते हुए नीरजा ने हैलो बेटा भी पूरा नहीं बोला कि मिनी के सिसकने की आवाज आई , “ ममी मैं थोड़ी देर में आपके पास आ रही हूं”।
नीरजा के कुछ कहने से पहले ही फोन कट गया। वो हैलो हैलो कहती रह गई। ये लड़की भी ना, पता नहीं इसको अक्ल कब आएगी , और वो चितिंत हो उठी। चाय बनाए, मिनी का इंतजार करे या फिर लोकेश को जाकर मिनी के आने का बताए।
शनिवार की सुहानी सुबह , बाकी दिन तो भागा दौड़ी रहती है क्यूकिं बहू दिया और बेटे सर्वेश को नौकरी पर जाना होता है और नन्हीं पोती आरू को भी स्कूल को लिए तैयार होना होता है। मेड मीरा भी सुबह छः बजे आ जाती है, लेकिन छुट्टी वाले दिन उसे भी आठ बजे बुलाया जाता है।नीरजा और लोकेश ही अपने समय पर उठकर सात बजे चाय पीते, अखबार पढ़ते, थोड़ा बहुत टहल लेते।
सर्वेश और मिनी की आयु में सात साल का अंतर था। मिनी सबकी लाडली रही और उसकी आदतें बिगड़ती गई। ज्यादा लाडप्यार ने उसे बिगाड़ दिया। भाई और पिता दोनों ही उसकी हर बात मानते और हर जिद पूरी करते। नीरजा बहुत समझदार थी। उसे डर था कि बेटियों को तो शादी के बाद पराए घर जाना ही होता है और हर घर के तौर तरीके अलग होते है। कुछ न कुछ एडजस्टमैंट तो करनी ही होती है।
गुस्सा तो मिनी के नाक पर रहता। जब जी चाहा उठना, जब जी चाहा सोना या कहीं आना जाना, हां पढ़ाई में दिमाग तेज था, कालिज से बंक मारना
आम बात थी, लेकिन कम्पयूटर में बहुत तेज थी। पढ़ाई पूरी होते ही नौकरी भी लग गई, लेकिन उसका काम प्रौजेक्ट का था तो कभी आफिस जाती, कभी घर से करती।
सुंदर थी, अच्छे घर से भी थी और पढ़ी लिखी तो थी ही, कई लड़कों ने कोशिश की लेकिन उसने किसी की तरफ ध्यान नहीं दिया। सब गुण अच्छे थे लेकिन अपनी मर्जी चलाना और अगर उसकी बात न मानी जाए तो तोड़ फोड़ करना, रोटी न खाना, अंदर से दरवाजा बंद कर लेना इत्यादि। बड़ी मुश्किल से मानती।एक बार तो हद ही कर दी, किसी बात पर ऐसी नाराज हुई कि दो दिन तक घर से गायब रही। जब घर आई तो हंसते हुए कहने लगी कि होटल में रह कर आराम से रिलैक्स हो कर आई हूं।
करन से अरेंज मैरिज थी। शादी से पहले दोनों कई बार मिले , सब बातें हुई, लेकिन असली रंग तो बाद में पता चलते है, जब घर गृहस्थी संभालनी होती है। मिनी के भाई सर्वेश की शादी भी हो चुकी थी, भाभी राशी भी अच्छी पढ़ी लिखी नौकरी वाली थी। बहुत ही मधुर स्वभाव की और मिलनसार।उसकी शादी के छः साल बाद मिनी की शादी हुई थी। इसी बीच वो मिनी के स्वभाव को अच्छे से समझ गई थी। सास से उसकी बहुत बनती थी। कई मौको पर मिनी ने आपा खोया, लेकिन राशी ने मौका संभाल लिया।
अभी शादी को एक साल भी नहीं हुआ और न जाने कितनी बार मायके आ चुकी है। करन का बड़ा भाई दूसरे शहर में नौकरी पर है और परिवार सहित वहीं रहता है। यहां घर में कपिल और मिनी के इलावा कपिल के ममी आशा और पापा हरीश रहते है। कुछ समय तो ठीक रहा लेकिन आदतें कब बदलती है।
एक दिन सुबह दस बजे उठ कर आई तो मेड रीमा ने चाय लाकर सामने रखी। शायद चीनी कुछ तेज थी तो चाय उठाकर कप समेत फर्श पर फेंक दी। “ बहू, ये क्या तरीका है, रीमा हमारी घर की सदस्य जैसी है”।
तो रखो इसी को घर में, मिनी की जुबान भी खूब चलती थी। कुछ दिन बाद किसी पारिवारिक शादी में जाना था। जब तैयार होकर आई तो सब देखते रह गए। अजीब से कट वाली ड्रैस पहन कर आ गई, मजबूरी में सास ने कुछ न कहते हुए करन की और देखा तो वो उसको एक तरफ ले गया और पता नहीं क्या कहा, जाकर कमरा अंदर से बंद कर लिया।
जाने का प्रोगराम तो कैंसल होना ही था। सब हैरान की ये कैसी बहू घर में आई है। ऐसी कई बातें हुई । आज सुबह करन के दादाजी के श्राद्ध की पूजा और पंडितों का खाना वगैरह रखा गया था। दो दिन पहले करन किसी काम से शहर से बाहर था। मिनी के स्वभाव को देखते हुए आशा उससे कम ही बात करती और मिनी भी अपने कमरे में ही रहती या जहां जाना आना होता बिना बताए , बिना पूछे जाती आती रहती।
एक दिन पहले आशाजी ने सोचा था कि वो श्राद्ध की पूजा के बारे में मिनी को बताएगी और उसे सुबह जल्दी उठ कर तैयार होने के लिए कहेगी। करन और उसका बड़ा भाई भी सुबह ही आने वाले थे। दस बजे तक सब पहुंच चुके थे, लेकिन मिनी कमरे से बाहर ही नहीं आई, रात को देर से आई होगी, वो कौनसा किसी को बता कर जाती थी। दरवाजे की चाबियां सबके पास होती ही थी।
मिनी ने जब देखा कि सब आए हुए है, तब तो वो कुछ न बोली, चुपचाप थोड़ी देर बैठ कर चली गई। रात को कपिल से लड़ाई हुई कि उसे कोई कुछ बताता नहीं , और भी न जाने क्या क्या और सुबह कार उठाकर चल दी। असल में अपनी बहुत बेज्जती लगी कि बड़ी बहू तो दूसरे शहर से आ गई और उसे घर में रह कर ही कुछ नहीं पता।
यह भी कह सकते है कि हालात ही कुछ ऐसे बन गए। कार में बैठे बैठे ही मां को फोन किया था। गुस्से में तो थी ही, आपे से बाहर तो वो पहले से ही थी। कार चलाते समय ध्यान भटक गया तो सामने से आते बाईक सवार से टकरा गई और सिर जाकर स्टैयरिंग से टकराया और बेहोश हो गई।बाईक वाले ने किसी तरह ब्रेक लगा ली थी, यूं समझो कि बाईक तो टूट गई लेकिन उसे बहुत कम चोट लगी।
बेचारा बाईक वाला खुद ही लोगों की मदद से हस्पताल ले गया, और फोन में लास्ट नं उसकी मां का ही था। उधर फोन के दो घंटे बाद भी जब नीरजा न पहुंची तो चिंता होनी स्वाभाविक थी। उसने पति को बता दिया मिनी के बारे में। अनजान नं से फोन आया तो मिनी का पता चला।
कपिल को भी खबर कर दी गई, सब हस्पताल पहुंचे, मिनी के सिर , माथे पर गहरी चोट लगी थी, माथे पर टांके लगाने पड़े। समय के साथ सब ठीक हो गया, मिनी का स्वभाव तो सुधर गया लेकिन जब भी वो शीशा देखती तो माथे के टांके उसे अपनी बेवकूफी की याद दिलाते। वो कहती कि दादा जी के श्राद्घ के दिन ये सब हुआ, शायद ये उसकी भूल का फल है। लेकिन परिवार में सबने समझाया कि ऐसा कुछ नहीं, बुजुर्ग कभी बच्चों का बुरा नहीं चाहते , वो तो हमेशा आशीष ही देते हैं। मिनी समझ गई थी कि संयम रखना,सबसे बना कर रखना, सेवा भाव और आपसी एडजस्टमैंट कितनी जरूरी है। आपे से बाहर हो कर गुस्सा करना किसी समस्या का हल नहीं।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
कहावत- आपे से बाहर होना