सवंरते रिश्ते – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

राघव एवं माधव दोनों पेशे से इंजिनियर थे और एक साथ ही एक ही कम्पनी में ज्वाइन  किया था। स्वाभाविक था कि दोनों में मित्रता  हो गई।दोनों ही पहली कम्पनी से जाॅव बदल कर  आये थे ।इस समय वे अकेले थे सो साथ ही रह  लिए।  बाद में राघव ने एक बडा फ्लैट लिया कारण छोटे-छोटे  दो बच्चे भी थे।

जबकि माधव ने  दो कमरे वाला फ्लैट लिया क्योंकि अभी वे पति-पत्नी  ही थे । छः माह पूर्व ही उनकी शादी हुई थी। मित्रता तो थी ही, अब परिवार आ जाने से  और भी घनिष्ठ सम्बन्ध हो गये। दोंनों की पत्नियां अच्छी सहेलियाँ बन गई थीं। दोनों पति एवं  बच्चों के स्कूल जाने के बाद साथ ही बाहर के काम निपटा लेतीं। क्योकि दोनों के फ्लैट एक ही विल्डिंग के हिस्सा थे। सो छुट्टी वाले दिन एक दूसरे के यहां चाय पर चले जाते। 

दोंनों गृहणियों नै घर को अच्छे से सजा लिया था।एक दिन राघव माधव के घर गया, उसके ड्राइंगरूम में एक फैमिली फोटो रखी देखी।उत्सुकतावश वह उठकर पास से देखने लगा ।  फोटो में वैठे लोग जाने पहचाने से लगे। उसके मम्मी पापा दादा-दादी और कोई एक दम्पती जिन्हें वह पहचान नहीं पाया।

साथ ही उसे बहन की बचपन की फोटो दिखी। उसकी स्वयं  की बहुत छोटे की तस्वीर जिसे वह स्वयं नहीं  पहचान पाया। उसे बडी उत्सुकता  हुई यह जानने की,कि उसके मम्मी पापा की पारिवारिक फोटो माधव  के पास कैसे। और यह दूसरा जोडा कौन है और उनकी  गोद में यह छोटा सा बच्चा कौन है। वह वेसब्री से माधव के आने का इन्तजार कर रहा था। माधव कमरे में यह कहता हुआ प्रवेश  किया ,माफ करना यार सो रहा था तुझे ज्यादा इन्तजार तो  नहींं कराया। 

छोड़ सब पहले यह बता ये फोटो किसकी है।

माधव यह मेरे पापा की फेमीली फोटोग्राफ है जिसे पापा हमेशा सीने से लगाये रहते हैं इसमें उनके परिवार की यादें हैं। पर  तू इस तस्वीर के बारे में इतना उत्सुक  क्यों है। 

क्योंकि इसमें मेरे मम्मी-पापा, दादा-दादी  बहन  की  तस्वीर है। इतने को तो मैंने पहचान  लिया बाकी एक अंकल आंटी दो बच्चे कौन  हैं नहीं पहचान सका।

माधव फोटो टेबल पर से उठा लाया और बोला बता किस को पहचाना किसको नहीं। 

राघव ने उंगली रख-रख कर बताया ये दादा दादी, ये मेरे मम्मी-पापा ये मेरी दीदी अब बाकी कौन हैं  तू बता ।

माधव ये मेरे मम्मी-पापा ये गोद में,  मैं हूं और ये  बडा बच्चा मेरा भाई है यानी ताऊ जी का बेटा। ये मेरे भी दादा – दादी हैं और ये ताऊजी – ताई जी।

दोनों अवाक । तो क्या  हम दोंनों भाई हैं।  तुम कभी आये नहीं न हम कभी तुमसे मिले, ये क्या रहस्य है। वे दोनों अभी सोच ही रहे थे कि मधुरिमा चाय-पकोडे लेकर आ गई ।दोनों ने उसे कुछ नहीं बताया। उनके हाथ में फोटो देखकर बोली यह हमारे संयुक्त परिवार की फोटो है जो बाद में बिखर गया और यादें ही शेष रह गईं ऐसा एक बार मम्मी जी ने बताया था। मम्मीजी एवं पाया जी अक्सर इस फोटो को निहारते और कुछ पुरानी बातें याद कर हमेशा दुखी होते थे।ऐसा मैंने वहाँ रहते देखा था ।पूछने पर कुछ नहीं बताते।

अब तो दोनों को विश्वास हो गया जरुर उनका आपस में कोई सम्बन्ध है तभी यही फोटोग्राफ राघव ने अपने घर भी देखा था।

अब दोनों मे प्लान बनाया कि इस गुत्थी को  तो शीघ्र ही सुलझाना है। 

राघव बोला  माधव तू मेरे  साथ मेरे घर चल सब साफ हो जाएगा । वे इतने व्यॻ थे कि दो दिन बाद ही उन्होंने राघव के  घर जाने का कार्यक्रम बना लिया। राघव ने  अपनी मम्मी को फोन  पर  बताया मम्मी में आपसे मिलने आ रहा हूँ किन्तु साथ में मेरा एक दोस्त भी आना चाहता है आपको कोई परेशानी तो  नहीं होगी। 

कैसी बातें करता है जैसे तू बेटा है वैसे ही वह भी, आराम से ले आ उसको ।

वे जब घर पहुंचे तो उनका अच्छे से स्वागत हुआ। खाना -पीना , बातें  सब प्यार से हो रहीं थीं जब राघव की मम्मी ने उसका नाम पूछा तो उसके माधव बताने पर वे चौंक पडी।

माधव बोला क्या हुआ आंटी आप ऐसे चौक क्यों  गई ।

कुछ नहीं बेटा कुछ भूला हुआ याद आ गया ।

शाम को जब रघव  के पापा आये तो माधव ने उनके चरण स्पर्श किये। वे बोले खुश रह बेटा ।बाद में बातों-बातों में ही उन्होंने भी पूछा बेटा तुझे क्या कहकर पुकारुं।

अंकल मैं माधव आप मुझे माधव कहें यह सुनते ही उनका भी रियेक्शन मम्मी  जैसा 

ही था। 

क्या हुआ अंकल मेरे नाम  में ऐसा क्या है  आप  भी  चौंक गए।

 नहीं बेटा कुछ नहीं बस कुछ जाना पहचाना  सा  लगा।बेटा तुम्हारे पिता का क्या नाम  है। 

श्री देवेश अग्रवाल ।

क्या क्या तुम देवेश के बेटे हो कह, उठकर उन्होंने उसे कस कर गले लगा लिया। उनकी ऑखों से आंसू बह रहे थे ।फिर बोले कहाँ है देवेश, कैसा है। 

अंकल आप पापा को जानते हैं।

जानता नहीं  हूं वह मेरा छोटा भाई है और तू  मेरा भतीजा है ,मेरे देवेश  का बेटा कितना बड़ा हो गया। वे एक दम जोर से चिल्लाये सुनो मालती जल्दी आओ अपने  देवेश का बेटा माधव आया है वे भी आते ही कसकर माधव को गले लगा  प्यार करने लगीं । उसका मुंह  दोनों  हाथों में प्यार से ले अपलक उसे निहार रही थीं और रोते जा रहीं थीं

राघव अचम्भीत सा सब देख रहा था तभी मालती जी  बोलीं बेटा राघव ये तेरा चुन्नु है तु इसे बचपन में चुन्नु कह कर बुलाता था ये तेरा छोटा भाई है । 

माधव बोला क्या हम यहाँ इसी घर में आपके साथ रहते थे।

 हाँ बेटा, मेरी लता कैसी है ओर दिव्या उसकी भी शादी हो गई  होगी। 

हाँ ताईजी उसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। कहां है उसकी ससुराल ।

बीकानेर, जीजू वहीं, डाक्टर हैं। 

राघव के पापा राजेश जी  बोले तुम लोग कहाँ रहते हो। 

ताऊ जी हम किशनगढ रहते हैं। 

देवेश क्या करता है। 

जी कपडे का शोरूम है। ताऊजी जब आप पापा को इतना प्यार करते हो तो कभी हमारे घर क्यों नहीं आए न ही पापा कभी यहां आये ।

कैसे आता बेटे हमें तो पता ही नहीं था, कि  उस रात देवेश अपना परिवार लेकर कहाँ चला गया ।

ये सब मेरी जिद के कारण हुआ उसका कोई दोष नहीं  है। मैंने ही लोगों की बातों में आकर उसपर अविश्वास  किया और रात को ही सबको लेकर घर से  निकल जाने  को  विवश  कर दिया।  न उसे पैसे लेने दिए  न  कपड़े। मैं जैसे पागल हो गया था बिना कुछ सोचे समझे बस एक ही जिद पर अड़ा रहा कि  इसी वक्त घर से निकल जाओ । ग़ुस्सा शांत  होने पर मैंने उसे कहाँ कहाँ नहीं  ढूंढा किन्तु पता नहीं लगा। तब से आज तक  मैं पश्चाताप की अग्नि में जल रहा हूं। अपने  किये पर बहुत पछताया पर क्या करता उसका कहीं पता ही नहीं चला। आज इस बात  को छब्बीस साल हो गए। चलो मालती हम आज ही  देवेश के पास चलते हैं। 

अब रात ज्यादा हो गई है सफर करना सही नहीं है सुबह जल्दी उठ कर निकल चलेंगे फिर तैयारी भी करनी है मालती जी बोलीं।

राघव बोला में आपको लेकर चलता हूं और माधव तुम दिल्ली चलो जाओ वहाँ से रश्मि और मधुरिमा को ले आओ वो भी सबके साथ मिल लेंगीं ।

राजेश जी जेसे ही  देवेश के यहाँ पहुंचे वह 

हक्के-बक्के रह गए और दौड कर भाई से चिपट गये। दोनों की आंखों से अश्रुधारा बह निकली  और सारे गिले-शिकवे बह गये।

 यही हाल उधर मालती जी  एवं लता जी का  था दोंनों के  आंसू थम नहीं रहे थे।

 राघव ने सबको शान्त कराया और चाय-पानी की व्यवस्था करने में अपने चाचा-चाची का सहयोग करने लगा।

यकायक चाय पीते पीते राजेश जी बोले देवेश ये बता तूने कैसे, क्या किया। मैंने तो गुस्से में तुझे कपड़े, पैसे तक नहीं लेने दिये थे। फिर तूने कैसे गुजर करी।

देवेश बोले भाभी के रहते मैं कैसे परेशान हो सकता था।आपको याद होगा कि  मैंने अपने  दोस्त को जिसके यहाँ रात गुजारी थी घर भेजा था कपडे लेने के लिए। किन्तु, भाभी ने कपडों के  संग दस हजार रूपये एवं लता के छोटे -मोटे गहने भी कपड़ों में शायद आपके डर से छिपा कर रख दिये। बस वही पैसाऔर गहने  हमारा संबल बना ।दूसरे दिन ही मेरे दोस्त ने मुझे यहां  किशनगढ़ अपने एक दोस्त के यहाँ भेज दिया ।यहाँ अकाउंटस का काम देखने  लगा। कुछ  एडवांस ले लिया उससे एक किराए का कमरा , रसोई  ले  अपनी जिन्दगी शुरू कर दी। पैसे और गहने हमारे  बहुत काम आये। तीन-चार महीने आराम से निकल  गये । फिर एक दूसरे शोरूम पर मुझे ज्यादा पे पर  नौकरी मिल गई तो वहाँ काम करने लगा किन्तु आत्म संतुष्टि नहीं मिल रही थी। सो बैंक   से लोन लेकर छोटी सी दुकान शुरू की। आपकी कृपा से अच्छा  फायदा होने लगा। बचत कर धीरे-धीरे एक बड़े शोरूम का मालिक बन गया।

इतने वर्षों में अपने इस भाई की याद  नहीं आई ।

आई भैया बहुत आई, आपकी  भी ,भाभी की। मां-पिताजी से मिलने  की बहुत इच्च्छा होती  पर आपका वह रात वाला रौद्ररूप देख शायद  हिम्मत  जुटा ही नहीं पाया लौटने की। आज  भी  वो मंजर याद करता हूँ तो काँप जाता हूं आपने  छोटे बच्चों,लता की भी पर्वा नहीं कि की हम इतनी रात को कहां  जायेंगे ।फिर मेरा कसूर ही क्या था जिसकी आपने मुझे  इतनी बड़ी सजा दी । 

मैं बहकावे में आ गया था देवेश लोगों ने  तेरे  विरुद्ध मेरे कान भरे  कि तू मुझे धोखा दे रहा है, और सारा बिजनेस एवं घरअपने नाम  करा लिया है।बस मैं क्रोध में अन्धा हो गया और वह  कर बैठा जो नहीं करना चाहिए था।

भैया आप मुझसे तसल्ली से पूछ  भी तो सकते थे कि मैंने ऐसा किया है क्या। किन्तु आपने मुझ पर विश्वास न करके परायों पर विश्वास किया।

और इसी गल्ती की सजा के फलस्वरूप मैं भी इतने बर्षों तक  पछतावे की आग में जला हूं मेरे भाई एक दिन भी चैन से नहीं 

सोया हूं ।मैंने स्वयं अपने अनमोल रिश्तों की गुस्से में बली चढ़ा दी।

 बर्षों से टूटे रिश्तों को आज इन  बच्चों की जागरूकता ने संवार दिया हमें मिला दिया। मैं तो अब इस जन्म में तुमसे मिलने की आस छोड़ चुका था। कहां कहां नहीं ढूंढा तुम्हें हताश हो गया था। किन्तु एक बात बता देवेश तुम्हारे दोस्त ने हमें क्यों नहीं बताया।

भैया मैंने भी गुस्से में कसम खा ली थी कि घर कभी नहीं लौटूंगा,सो उसको बताने से मना कर दिया था।

घर में उत्सव  सा माहौल था सभी खुश थे कि टूटे रिश्ते फिर से संवर गये थे। सच ही कहते हैं कि रिश्ते अनमोल होते है वे टूटते नहीं कुछ समय  के लिए बिखर जाते हैं किन्तु उनकी कशिश  हमें वापस

खींच ही लेती है।

शिव कुमारी शुक्ला

22-5-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

शब्द प्रतियोगिता     टूटते रिश्ते

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