सन्तुष्ट मन – नंदिनी 

काव्या की शादी एक भरे पूरे परिवार में हुई वक्त कहाँ निकल जाता पता ही नहीं चलता ।चुलबुली सी सबका मन जीतने वाली । ज्यादा ख्वाहिशें थीं नहीं, पढ़ाई में अच्छी थी पर क़भी जॉब या किसी प्रोफेशन में जाने का सोचा नहीं घेरलू कार्य में ज्यादा रुचि रही ओर पढ़ाई पूरी होते ही अच्छा रिश्ता आया तो घरवालों ने देर नहीं की, झट मंगनी ओर  पट शादी कर दी।

धीरे धीरे समय व्यतीत हो रहा था और वह गृहस्थी में रच बस गई थी ।इधर रोहन का तबादला दूसरे बड़े शहर में हो गया ,उसका मन अपने परिवार शहर को छोड़ने का कम था, लेकिन जहां पिया वहां मैं, चल पड़ी पीछे पीछे ।

बड़े शहरों के पिंजरे नुमा घर उसे बिल्कुल न भाते  ऊपर से आसपास वाले सब जॉब वाले किसी को हाई हेलो करने की फुरसत नहीं , इस बीच वह गर्भवती हुई कुछ सम्यपश्चात मायके गई और प्यारे से बेटे को जन्म दिया।

मानो दुनिया ही बदल गई , कुछ समय बाद रोहन उसे लेने गया मायके।

अब वह अपनी नई दुनिया में रम गई थी, क़भी कभी बच्चा परेशान करता  हाउस हेल्प नहीं आती तो परेशान भी हो जाती ।

इस बीच जो सामने फ्लेट खाली पड़ा था उसमें 28 वर्षीय लडक़ी  शिफ्ट करती है , दरवाजा पास ही  लगा हुआ था, कभी कभार आने जाने में मुस्कुराहट का आदान प्रदान हुआ।

एक दिन वह लड़की आती है काव्या के घर, हेलो मैं पाखी हूँ अभी कुछ दिन हुए, आज क्या मेरा फ्रीज खराब हो गया है दूध बाहर रह गया तो खराब हो जाएगा क्या आप इसे रख लोगी मुझे ऑफिस जाना है शाम को फ्रीज सुधारने वाला आएगा,  काव्या कहती है हाँ हाँ क्यों नहीं चलो इस बहाने मुलाकात हो गई आपसे , जी thanku ओर पाखी चली जाती है ।

काव्या उसके पहनावे से खासी प्रेरित हो गई थी टिपटॉप सी हल्का सा मेकअप सिल्की बाल , सोचने लगी यहाँ देखो खुद को देखने तक कि फुरसत नहीं है बस लगे रहो दिनभर घर में, सोने तक को नही मिल रहा है ……

 

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अब कभी कभार मिलना हो जाता और अगर दरवाजा खुला है तो पाखी, काव्या के बेटे राज से मिलकर जाती ,काव्या जाने के बाद सोचती  है कितनी अच्छी जिंदगी है पाखी की अपने हिसाब से जी रही है मस्ती में अच्छा पहनावा रोज तैयार होना उसे खुद की जिंदगी से चिढ़ सी आने लगी थी ,रोहन ने भी महसूस किया क्या हुआ आजकल खोई सी रहती हो, ऐसा कुछ नहीं है थक गईं हूँ कह कर बात पलट दी ।

अब कभी कभी जब office से जल्दी आ जाती तो काव्या के घर मिलने आ जाती उसे बच्चे बहुत पसन्द थे और राज भी घुल गया था उसके साथ, उसके लिए खिलौनें भी लाती।

एक दिन ऐसे ही शाम पाखी घर आई और बोली सोचा आज जल्दी आई तो सोचा तुम्हारे साथ चाय पीयूंगी , हां हां तुम राज को सम्भालो में चाय  बनाती हुँ।

आकर दोनों गपशप में लग जाते हैं, पाखी कहती है यार कितनी मस्त लाइफ हेना तुम्हारी न ऑफिस की झिकझिक न रोज का आना जाना ,बस मस्ती से घर मे रहो ओर इतने प्यारे बेटे के साथ समय बिताओ ओर शाम को पतिदेव का इंतजार हेना , सुनकर काव्या मुस्कुरा देती है । ओर उसके जाने के बाद सोच पड़ जाती है ये क्या जिसकी लाइफ देखकर में जलन महसूस कर रही थी, वो मेरी जैसी जिंदगी के लिए  इक्छुक है ,इतने में रोहन आ जाता है दो कप देखकर कहता है अरे वाह लगता है आज पाखी के साथ गुफ्तगू हुई है।

खाना से फ्री होकर वह अपने मन की बात रोहन को बताती है और पाखी ने आज क्या कहा वो बात भी।

रोहन सुनकर कहता है मैं कोई ज्ञानी नहीं हूँ पर इस समस्या को पहले ही ले आतीं तुम ,तो मैं निवारण कर देता ओर मुस्कुराता है ,अरे पगली कभी भी दूसरे की ज़िंदगी से तुलना मत करो ये आपके दुख को बढ़ाने के सिवा कुछ नही करेगा, उनकी अपनी परेशानियां होती हैं ,किसी की भी जिंदगी बहुत आसान नही होती आसान बनाना पड़ता है तुमने घर सम्भालना मन से चुना है तो तुम्हें इसी में अपनी खुशियों को तलाशना होगा आगे जाके अगर तुम कुछ करना चाहो तो मेरी ओर से कोई बंदिश नही,ओर रही पाखी की बात उसने भी पारिवारिक मजबूरी में नोकरी की है या वो एक महत्वाकांक्षी लड़की होगी उसने खुद से चुनी ये लाइफ, पर कारण कोई हो खुश होकर करेगी तो खुश रहेगी । 




कभी निराशा में बोल जातें हैं हम ,हो सकता है उसका मूढ़ आज  ठीक न हो, और

सबसे जरूरी है सन्तुष्ट मन ,अगर मन पर काबू है तो कम में भी खुशियों के खजाने  महसूस होंगे ,नहीं तो सारी सुख सुविधा में भी कमी लगेगी, वैसे कल वीकेंड पर हम दो दिन के लिए पचमढ़ी जा रहें हैं मैने सोचा सरप्राइज दूंगा आज तुम्हें , काव्या मुस्कुराकर गले लग जाती है ।

आज संतुष्ट मन को अच्छे से पहचान लिया था उसने  …..

नंदिनी 

स्वलिखित 

#5वा जन्मोत्सव

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