संतुलन – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

 अरे सोनम… सुनो ना , तुमने नाश्ता बनाया है ना मेरे लिए  ,वो एक टिफिन में पैक कर दो…. क्या ..? पैक कर दूं…?  पर क्यों…? आश्चर्य से सोनम ने विशाल से पूछा ….अरे बताऊंगा बाबा ..सब बताऊंगा …।

     वो शर्मा जी बाहर खड़े हैं , मैं एक मिनट में आया , बोलकर अंदर आया हूं …थोड़ा जल्दी करो यार ….हां -हां कर रही हूं ना , अब मशीन थोड़ी ना हूँ…..थोड़ा सा गुस्सा करते हुए सोनम पराठा और भुजिया पैक करने लगी…!

      शर्मा जी को डिब्बा पकडाते हुए विशाल ने कहा ….भैया ये पकड़िए भाभी को नास्ता कराकर दवाई दे दीजिएगा…!

  शर्मा जी कुछ हिचकिचाते .. उसके पहले ही विशाल ने पूरे अधिकार से उनके हाथ में डिब्बा पकड़ा दिया था….।

       अंदर आते ही सोनम ने विशाल पर प्रश्नों की बौछार कर दी ….क्या बात है , पहले तो बताइए डॉक्टर ने आपको क्या बोला और वो आपने शर्मा जी को नास्ता क्यों दिया… वगैरह-वगैरह ….!

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    बड़े इत्मीनान और शांति से विशाल ने सोनम को पास बुलाया बैठाया और बोला….. मैं हॉस्पिटल गया ,डॉक्टर को दिखाया ..डॉक्टर ने कहा… ठीक है थोड़ा बुखार है…।

   वहीं मुझे पड़ोस वाले शर्मा जी मिल गए… बातों बातों में उन्होंने बताया , शर्मा भाभी की तबीयत खराब है वो 15 दिनों से बिस्तर में है…. वायरल फीवर की वजह से बहुत कमजोरी हो गई है …और फिर दवाई खरीदते वक्त…. मेरे साथ ही उन्होंने बिस्किट खरीदा… ताकि भाभी को खिलाकर दवाई खिला सके..।

शर्मा जी भी मुझे थोड़े अस्वस्थ ही लगे…।

 सोनम , तुमने मुझे बताया नहीं कि भाभी जी की तबीयत खराब है… वहां शर्मा भैया के सामने अनजान बन मुझे थोड़ा अच्छा नहीं लगा… पड़ोस में रहते हैं …इतनी तबीयत खराब और हमें पता तक नहीं…।

   अरे , मुझे तो मालूम ही नहीं …सोनम ने आश्चर्य व्यक्त किया… पर मेरे व्हाट्सएप में तो शर्मा भाभी है …गुड मॉर्निंग भी भेजती हैं.. हां आजकल नहीं आता था ..मैंने सोचा बस ऐसे ही नहीं लिखती होंगी …अब विशाल तुम ही बताओ , बिना बताए कैसे पता चलेगा…?  स्थिति को ज्यादा तुल ना देती हुई सोनम ने थोड़ा मौके को उपेक्षित किया ….।

   देखो सोनम… अच्छी बात है.. आजकल सोशल मीडिया से चीजें तुरंत फैलती हैं …..पर हम समाज में रहते हैं ….तो कुछ सामाजिक जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है….

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कभी-कभी जब आदमी अकेला होता है… बीमार होता है …खुद को निरीह महसूस करता है …तब इस मोबाइल से ज्यादा जरूरत किसी ऐसे शख्स की होती है जो हाथ पकड़ कर बोले …चिंता मत करिए..” मैं हूं ना “

     फिर भावनाएं , स्पर्श ,एहसास और वो अपनापन …जो बिन बोले समझ में आ जाता है ….वो सब इस मोबाइल से संभव नहीं….।

   गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है ….ध्यान तो अड़ोसी-पड़ोसी का मुझे भी रखना चाहिए…।

      पर सोनम….कुछ वर्ष पहले तक तो तुम मेरे ऑफिस से आते ही…. सुनिए ना जी…. आज ये हुआ , आज वो हुआ…. पूरे मोहल्ले का आंखों देखा हाल का सीधा प्रसारण करती थी ….पर अब ….जब भी खाली समय होता है ..हाथ बरबस ही मोबाइल की ओर बढ़ जाता है ….

  फिर तो रील्स, वीडियो ना जाने कितनी ऐसी सामग्री मोबाइल पर मिल ही जाते हैं …जिनकी वजह से समय सीमा नहीं रह पाती और बहुत सारे महत्वपूर्ण काम छूट जाते हैं …या हमारे दिनचर्या से ही निकल जाते हैं..

   उनमें से एक बहुत महत्वपूर्ण और जरूरी चीज …हमारे आसपास के लोगों की खबर रखना एक दूसरे से मेलजोल रखना …..बातें करना …एक दूसरे की भावनाएं समझना …अपनापन… जैसी चीजें पीछे छूट जाती है …हम उनका ध्यान ही नहीं रख पाते..।

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   अभी तक सोनम ध्यान से विशाल की बातें सुन रही थी ….अब गंभीरता से बोली ….आप सच कह रहे हैं विशाल ….ओह  , इस मोबाइल ने हमें….

”  दूर वालों को तो पास कर दिया पर पास रहने वाले बहुत दूर हो गए ” विशाल …बहुत दूर …! सच में कितने दिन हो गए मैं और शर्मा भाभी मिले भी नहीं …एक दूसरे को देखा भी नहीं है …फिर उनकी तबीयत इतनी खराब और मुझे पता तक नहीं …।

देखो सोनम …अब आत्मग्लानि जैसी स्थिति ना हो …..अभी भी समय है…. सोशल मीडिया और वास्तविक जीवन में आपसी  ” संतुलन ”  की अति आवश्यकता है…. यदि संतुलन रहेगा तो वाकई विकास संभव है ….वरना…

” अति किसी भी चीज की बुरी होती है ”  आप रुकिए विशाल …मैं शर्मा भाभी का हाल पूछ कर आती हूं…।

सच में साथियों… एक ओर मोबाइल ने हमें न जाने कितनी सुविधाएं दी है… वहीं दूसरी ओर… अति इस्तेमाल  से दुष्परिणाम भी शुरू होने लगे हैं… सामाजिक दूरियां तो बढ़ ही रही हैं… आने वाली पीढ़ी के मानसिक और शारीरिक प्रभाव भी दिखाई देने लगे हैं ….अतः संतुलन बनाने की अति आवश्यकता है…।

( स्वरचित ससर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

   संध्या त्रिपाठी

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