राजेंद्र जी और मनोहर जी बहुत अच्छे दोस्त थे। बचपन से लेकर जवानी तक का साथ रहा। अब उम्र के सांध्य काल में भी एक-दूसरे से गहरी बनती थी। मनोहर जी कई दिन से महसूस कर रहे थे कि राजेंद्र जी बहुत गुमसुम से हैं।दो तीन तक तो उन्होंने सोचा कि राजेंद्र जी खुद ही बता देंगे
पर जब कुछ नहीं पता चला तो उन्होंने अपने मित्र की परेशानी का राज़ जानने की कोशिश की। राजेंद्र जी ने जो उन्हें बताया उस बात ने मनोहर जी को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। असल में राजेंद्र जी के दो बेटे थे वहीं मनोहर जी दो बेटियों के पिता थे।
जब राजेंद्र जी के घर में एक के बाद एक दो बेटे हुए थे तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। उन्हें लगता था कि शायद ये उनके पिछले जन्म में कुछ मोती और अच्छे कर्मों का फल है जो इस जन्म में ये कृपा बरस रही है। उन्हें लगने लगा था कि भगवान ने
उनको दोनों बेटे देकर उनको जवानी में ही गंगा नहला दी है। अगर बेटी होती तो उसके लिए देहज जोड़ना पड़ता, पढ़ा लिखा कर दूसरे के घर भेजना पड़ता पर अब उनका बुढ़ापा आराम से बेटों के सहारे कटेगा। ये दोनों बेटे उनके और उनकी पत्नी के बुढ़ापे की लाठी बनेंगे।
वहीं दूसरी और मनोहर जी के दोनों बेटी हुई थी तब मनोहर जी से ज्यादा दुःख राजेंद्र जी को हुआ था। राजेंद्र जी की पत्नी ने भी मनोहर जी की पत्नी को बोला था कि बहिन अगर तुम्हारे एक बेटा हो जाता तो शायद तुम्हारा भी परिवार पूरा हो जाता।
मनोहर जी की पत्नी ने भी तब मुस्कराते हुए बोला था कि ऐसे तो बहिन आपका भी परिवार पूरा नहीं है क्योंकि आपके भी दो बेटे ही हैं क्योंकि परिवार पूर्ण होने के लिए तो बेटा और बेटी दोनों की आवश्यकता है। तब राजेंद्र जी की पत्नी बोली कि आप बात नहीं समझ रही हो,
पता नहीं बुढ़ापे में आपका और भाई साहब का ख़्याल कौन रखेगा? बेटियां तो अपने घर चली जायेंगी। राजेंद्र जी ने भी अपनी पत्नी की बात का समर्थन किया और मनोहर जी और उनकी पत्नी को एक चांस और लेने का सुझाव दिया। इस बात पर मनोहर जी बोले कि, मैं जानता हूं
कि आप दोनों मेरे शुभचिंतक हैं पर मेरे और मेरी पत्नी के विचार थोड़े इस बात पर थोड़े अलग हैं। हम दोनों का मानना है कि एक तो कल का कुछ पता नहीं और दूसरा लड़का हो या लड़की, हम अपनी संतानों से बुढ़ापे में सेवा की उम्मीद हो क्यों करें।
क्यों हम अपने आपको ये सोचकर धोखा देते रहें और उस खुशफहमी में जीते रहें कि हम बच्चों के ऊपर जो आज खर्च करते हैं वो बुढ़ापे में हम लोगों को सूद समेत वापिस कर देंगे। हमारा फ़र्ज़ है उनको अच्छी शिक्षा देना चाहे वो लड़के हो या लड़की।
इस तरह से बात आई गई हो गई। समय बीतने लगा राजेंद्र जी ने अपने बेटों को बड़ा अफसर बनाने की चाह में सारी जमा पूंजी लगा दी। वहीं दूसरी तरफ मनोहर जी ने बेटियों को अच्छी शिक्षा दी और उनकी भी अच्छी नौकरी लग गई।
दोनों के बच्चे अपनी अपनी जगह सेट हो गए और शादियां भी हो गई। दोनों बेटी की शादी होने के बाद मनोहर जी और उनकी पत्नी अकेले तो हुए पर उनकी दिनचर्या में कुछ खास परिवर्तन नहीं आया क्योंकि उन्होंने अपनी रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी की सारी योजनाएं पहले से तय कर रखी थी
और तो और बहुत सारी पॉलिसीज भी कर रखी थी। साथ ही साथ दोनों पति-पत्नी अपनी सेहत जैसे योगा,मेडिटेशन और टहलना सब पर बहुत ध्यान देते थे। वहीं दूसरी तरफ राजेंद्र जी पूरी जिंदगी दो बेटे होने के बाद खुद की ही आंखों पर धोखे की पट्टी बांध कर जीते रहे।
इस चक्कर में ना तो कोई भविष्य की योजना बनाई, ना ही सेहत पर कुछ ध्यान रखा। अब राजेंद्र जी और उनकी पत्नी उम्र के अनुसार थोड़ा ज्यादा थकने लगे थे, बीमार भी रहने लगे थे और दवाई का खर्चा भी काफ़ी बढ़ गया था।
एक दिन जब वो अपने कमरे में बैठे थे तो दोनो बेटे उनके पास आए और बंटवारे की ज़िद करने लगे। दोनों को लगता था कि इस मकान को बेचकर तीन हिस्से कर दिए जाएं और अपने अपने हिस्से के पैसे से सब अपने अनुसार घर लेकर अलग हो जाएं।
जब उनकी बातें सुनकर राजेंद्र जी ने अपनी बुढ़ापे और सेहत की दुहाई दी तब दोनों ने साफ-साफ शब्दों में बोला कि आपने हमारे लिए वो ही सब किया जो सभी माता पिता अपने बच्चों के लिए करते हैं। रही बात आपकी देखभाल की तो हम आपके चक्कर में अपनी तरक्की तो नहीं रोक सकते।
आपको अपनी सेहत का और खान पान का शुरू से ख़्याल रखना चाहिए था। उनकी जली कटी बातें सुनकर आज राजेंद्र जी और उनकी पत्नी का कलेजा मुंह को आ गया। उनको लगने लगा कि शायद उनकी ही परवरिश में कुछ कमी रह गई।
वो ये सब बताते हुए मनोहर जी के सामने फूट-फूट कर रोने लगे और कहने लगे मनोहर तुम्हारी सोच बिल्कुल सही थी। मनोहर जी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा। मैंने एक सीनियर सिटीजन वाली सोसायटी में घर बुक करवा रखा है,
अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे लिए भी बुक करवा देता हूं। वहां सीनियर सिटीजन की आवश्यकता के अनुसार और भी सुविधाएं हैं मज़े से काटेंगे जिंदगी की ये सांझ।
आज उसी सोसायटी के प्रांगण में एक कार्यक्रम है जिसमें मनोहर जी को कुछ बोलना है तब वो सबको प्रेरित करते हुए यही कहते हैं कि दोस्तों भगवान आपको कोई भी संतान चाहे बेटा या बेटी, उनको अच्छी शिक्षा दो पर उम्मीद मत पालो। उम्मीद रखनी है तो खुद से रखो।
ज़िम्मेदारी को निभाने के नाम पर अपनी सेहत और अपने शौक को धोखा मत दो। ना ही अपने बच्चों के सामने अपने आपको ज्यादा लाचार दिखाओ कि कल को वो ही तुम्हें कमज़ोर समझ कर तुम्हें भावनात्मक रूप से धोखा दें। अब सभी को उनकी बात अच्छे से समझ आ रही थी।
दोस्तों,धोखा किसी से गलती से हस्ताक्षर करवाना, प्यार में फायदा उठाकर छोड़ना ही नहीं होता। एक धोखा वो भी होता है जब हम सच देखना ही नहीं चाहते।भावनाओं में बहकर सब कुछ अपनी संतान को सौंप देते हैं। मैं ये नहीं कह रही कि सारी संतान मां-बाप को छोड़ देती हैं
या बेटी बुढ़ापे में सेवा करती हैं पर बेटे नहीं।मेरा मानना सिर्फ इतना है कि कभी भी बच्चों में भेदभाव मत करो। अपना फर्ज़ निभाओ पर बुढ़ापे में वो भी हमारी सेवा करें ऐसी उम्मीद मत पालो। संतान को अपनी सामर्थ्य अनुसार दो पर अपने लिए भी योजना बना कर रखो।अपनी सेहत और स्वास्थ्य पर भी पूरा ध्यान दो क्योंकि अच्छी सेहत कभी भी धोखा नहीं देती। तो आज से,सबसे पहले सेहत की पूजा,फिर काम कोई दूजा।
#धोखा
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा