Moral stories in hindi : आधुनिक युग में कम समय में अमीर बनने की लालसा युवा पीढ़ी के कुछ युवा को संस्कारहीन बना रही है।माता-पिता के दिए हुए संस्कार को धता बताकर गलत कामों में लग जाते हैं।उनमें सामाजिक जागृति का अभाव-सा हो गया है।उनके सभी काम अपने संकुचित स्व पर आधारित होते हैं।
ये संस्कारहीन युवा येन-केन-प्रकारेण अपनी इच्छाओं की पूर्ति का मार्ग खोजते हैं।न तो इन्हें अपने माता-पिता की प्रतिष्ठा का ख्याल रहता है और न ही समाज और देश का।संस्कारहीनता उनके चरित्र का सिरमौर बन गई है।इन्हीं युवाओं में से चार दोस्तों की संस्कारहीनता की कहानी है।
ये चार युवा सपने तो खूब देखते हैं,परन्तु उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत नहीं करना चाहते हैं।अपनी असीमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए शार्टकट रास्ता अपनाते हैं।इस रास्ते में चाहे उन्हें भयानक-से-भयानक और जघन्य-से-जघन्य कुकृत्य क्यों न करना पड़े!चारों संस्कारहीन दोस्त नित्य नए हथकंडे अपनाते रहते हैं।
अमन अपने दफ्तर के काम निपटाकर घर जाने के लिए उठा ही था कि बाॅस की बुलाहट आ जाती है।उसके जाने पर बाॅस ने कहा-” अमन!इस फाइल को एक बार देख लो।कल ही इसका प्रजेंटेशन है।नीरज इसे पूरा नहीं कर पाया।बस एक घंटे लगेंगे।तुम देख लो।”
नीरज उसका दोस्त था तथा उसे मालूम था कि अचानक माँ की तबीयत खराब होने की वजह से वह जल्दी घर चला गया है,इस कारण वह ना नहीं कर सका।बाॅस की बात मानकर वह फाइल देखने लगा।काम खत्म करते-करते नौ बज चुके थे।अमन बाॅस को फाइल सौंपकर जल्दी से मोटरसाइकिल स्टार्ट कर अपने घर के लिए रवाना हो जाता है।
अप्रैल के मौसम में रात का मौसम सुहाना हो गया था।हल्की मंद शीतल बयार उसके थके शरीर में ऊर्जा का संचार कर रही थी।अमन गुनगुनाते हुए अपने घर की ओर बढ़ रहा था।उसी समय अमन ने सोचा-“अभी ज्यादा रात नहीं हुई है।आज शार्टकट रास्ते से ही निकल जाता हूँ।”
अमन उसी रास्ते की ओर बढ़ चला।उसकी उम्मीद के विपरीत उस रास्ते पर दूर-दूर तक कोई भी नहीं दिख रहा था,फिर भी अमन अपनी धुन में तेज गति से आगे बढ़ रहा था।उसी समय बगल की झाड़ियों से किसी लड़की की चीखने की आवाज आती है -” बचाओ!बचाओ!”
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अचानक से अमन की मोटरसाइकिल की गति धीमी हो जाती है।फिर वह सोचता है -” रात है और मैं अकेला!मुझे किसी झमेले में नहीं पड़ना है।घर में पत्नी और बच्चे इंतजार कर रहे होंगे।”
वह फिर से मोटरसाइकिल की गति तेज कर आगे बढ़ने लगता है।एक बार फिर उसे लड़की की तेज चीख सुनाई देती है।थोड़ी देर तो वह चिल्लाने की आवाज की तरफ से अपना ध्यान हटाने की कोशिश करता है,परन्तु चीखने की आवाज तेज होती जाती है।अब अमन की अंतरात्मा से आवाज आती है -” अमन!किसी मजबूर लड़की की आवाज को अनसुना करोगे,तो समाज में बहू-बेटियों की इज्जत कैसे बचेगी?”
आखिर अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर अमन दुबारा वापस अपनी मोटरसाइकिल उसी जगह पर ले आता है,जहाँ से लड़की के चीखने की आवाजें आ रहीं थीं।
धुँधली रोशनी में अमन को दिख रहा था कि तीन बदमाश एक लड़की को खींच रहे थे और उसके कपड़े भी फाड़ रहे थे।अमन हिम्मतकर आगे बढ़ता है और बाहर से एक लकड़ी का मोटा डंडा उठा लेता है ,रोशनी के लिए मोबाइल भी निकालकर रख लेता है।अमन तो अंदर से बहुत भयभीत हो जाता है,परन्तु फिर मन में सोचता है -“जब ऊखल में सिर दे ही दिया तो मूसल से क्या डरना!”
अमन फूर्त्ति से दौड़कर एक बदमाश के सिर पर डंडा मार देता है,इसी क्रम में उसका मोबाइल दब जाता है।एक साथी को गिरते हुए देखकर बाकी के दो दोस्त फायरिंग करते हुए भाग निकलते हैं।वह लड़की दौड़कर अमन से लिपट जाती है और बेतहाशा रोने लगती है।अमन उसे सांत्वना देते हुए तेजी से उसका हाथ पकड़कर बाहर आ जाता है और जल्दी से उसको मोटरसाइकिल पर बिठाकर निकल जाता है। गाड़ी चलाते हुए अमन ने उस लड़की नाम पूछा।
लड़की ने जबाव देते हुए कहा -” मोनिका।”
अमन-“मोनिका!तुम अपने घर का रास्ता बता देना,तुमको घर छोड़ते हुए जाऊँगा।”
थोड़ी देर बाद मोनिका ने सड़क किनारे रुकने का इशारा किया।
अमन -” मोनिका!सड़क पर क्यों?तुम्हें घर के अन्दर छोड़ देता हूँ।
मोनिका -” नहीं!अब मैं चली जाऊँगी,बस पीछे ही मेरा घर है।”
अमन उसे समझाते हुए कहता है-” मोनिका!इस घटना का जिक्र किसी से मत करना और थोड़े दिन घर के बाहर मत निकलना।”
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मोनिका अमन से उसका फोन नम्बर माँगती है।अमन उसे दे देता है,परन्तु उसे फोन करने से मना करता है।
कुछ देर बाद अमन घर पहुँचता है।पत्नी सुनीता उसे परेशान देखकर देरी से आने का गुस्सा भूल जाती है।अमन कपड़े बदलकर, खाना खाकर सोने चला जाता है,परन्तु आज की घटना से उसका मन बेचैन है।रातभर उसकी आँखों के सामने उसी घटना की पुनरावृत्ति होती रही। इसी छटपटाहट में उसकी आँखें बंद हो गईं।
सुबह उसकी आँख देरी से खुलती है।अमन दो दिनों के लिए दफ्तर से छुट्टी ले लेता है।सुबह-सुबह अमन चाय के साथ अखबार पढ़ते-पढ़ते पसीने-पसीने हो उठता है।अखबार में पढ़ता है कि जिस जगह पर रात में घटना घटी थी,वहीं पुलिस को एक लाश मिली थी।अब अमन के हाथ-पैर ठंढ़े होने लगते हैं।
पत्नी सुनीता उसे परेशान देखकर कहती है-” अमन!क्या तबीयत ठीक नहीं है?चलो डाॅक्टर से दिखा लेते हैं!”
अमन -” नहीं!तबीयत ठीक है।तुम परेशान मत हो।”
अमन पत्नी को तो चुप करा देता है,परन्तु उसके मन में मंथन जारी है कि एक डंडे की चोट से वो बदमाश कैसे मर गया?
फिर मन-ही-मन सोचता है -“कहीं-कहीं सुना है कि शराब के नशे में सिर पर हल्की चोट लगने से भी व्यक्ति मर जाता है!”
अब अमन के दिल की बेचैनी बढ़ने लगती है।उसे महसूस होता है कि फाँसी का फंदा कभी भी उसके गले में झूल सकता है।उसके लिए दो दिन तो बहुत बेचैनी में गुजरे।मोबाइल खोलकर देखा तो उस दिन मोबाइल दबने की वजह से उसी बदमाश का फोटो खींच गया था।बेमन से दो दिन के बाद वह दफ्तर के लिए निकल रहा था,उसी समय मोनिका घर पर मिलने के लिए फोन करती है।अमन उसे घर पर नहीं,बल्कि दफ्तर के रास्ते में मिलने की बात कहता है।
रास्ते में मिलते हुए मोनिका कहती है -” अमन !गजब हो गया।उस रात वो बदमाश मर गया।अभी मैं काम पर नहीं जा रही हूँ।मुझे कुछ पैसे चाहिए। “
अमन उसकी मजबूरी समझकर उसे दो हजार रुपए देकर दफ्तर चला जाता है।वह दफ्तर में दिनभर परेशान रहता है।उसे महसूस हो रहा था,मानो हवन करते समय उसका हाथ जल गया हो।किसी के आने की आहट से उसे लगता कि पुलिस उसे ही खोजने आई है।कुछ दिन में धीरे -धीरे सबकुछ नार्मल होने लगता है।
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अचानक से फिर मोनिका का फोन घर पर मिलने के लिए आता है।अब तो मिलना अमन की मजबूरी थी ,क्योंकि उसी ने तो मोनिका को कुछ दिन घर से बाहर निकलने से मना किया है।
मिलने पर मोनिका कहती है-” अमन!अब तो पुलिस का डर और बढ़ गया है।मैं काम पर नहीं जा रही हूँ।मुझे दस हजार रूपए चाहिए। “
अमन उसे मजबूरी में पैसे दे देता है,परन्तु अब उसे मोनिका संस्कारहीन लड़की नजर आने लगती है।उस लड़की की बातों में उसे साजिश की बू नजर आने लगी थी।
अब अमन के मन की बेचैनी फिर से बढ़ने लगती है।एक सप्ताह बाद फिर से मोनिका का फोन मिलने के लिए आता है।इस बार अमन सोचता है -“अब भले कुछ भी हो जाएँ,चाहे मैं फाँसी के फंदे पर ही क्यों न झूल जाऊँ,परन्तु उसे पैसे नहीं दूँगा।”
मोनिका एक बार फिर उससे मिलती है।मोनिका इस बार सीधे-सीधे उसके साथ ब्लैकमेलिंग करते हुए कहती है-” मुझे दस लाख रूपए दो,नहीं तो मैं पुलिस को तुम्हारे खूनी होने की बात बता दूँगी।”
अमन -“मोनिका!मैं बार-बार तुम्हारे टॉर्चर और ब्लैकमेलिंग से तंग आ गया हूँ।इस बार तो किसी सूरत पर तुम्हें पैसे नहीं दूँगा।तुम क्या,मैं ही पुलिस में जाता हूँ”कहकर अमन निकल गया।
अमन दफ्तर न जाकर पुलिस थाने की ओर निकल पड़ा।रास्ते भर उसके मन में तरह-तरह के विचार आते रहें।जैसे कि थाने तो जा रहा हूँ,परन्तु कहीं पुलिसवाले मुझे ही कत्ल के जुर्म में कहीं गिरफ्तार न कर लें।पर मोनिका की ब्लैकमेलिंग से भी तो छुटकारा पाना है।यही सब सोचते-सोचते वह थाने पहुँच गया।
अमन धड़कते दिल से अपनी बात कहने थाना के अंदर प्रवेश करता है।संयोग से थाना-प्रभारी उसका दोस्त गौरव निकलता है,जिसकी अभी-अभी पोस्टिंग वहाँ हुई थी।अमन अपने इंस्पेक्टर दोस्त गौरव को सारी बातें बताता है।
गौरव उसे तसल्ली देते हुए कहता है-“मेरे दोस्त!तुम चिन्ता मत करो।एक सप्ताह के भीतर मैं सारी जानकारियाँ इकट्ठी करता हूँ।”
दोस्त गौरव की बातों से अमन को कुछ तसल्ली मिलती है।इस बीच बार-बार मोनिका का फोन आता है,परन्तु अमन उसका फोन नहीं उठाता है।हमेशा उसके मन में बुरे विचार बिच्छू के समान डंक मारते रहते हैं।उसकी मनःस्थिति ऐसी हो गई थी कि न तो पत्नी को बताकर उसे परेशान करना चाहता था,न ही दफ्तर में भी किसी को कुछ नहीं बताता।खुद अंदर-ही-अंदर घुलता रहता था।एक दिन दफ्तर जाने के क्रम में उसे वही गुंडा मोनिका के घर की गली में घुसते हुए दिख जाता है।अमन अपनी गाड़ी तेज कर लेता है।उसे महसूस होता है -“अभी-अभी जिसे देखा है,वो मेरा भ्रम तो नहीं है!”
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उसी समय अमन अपने इंस्पेक्टर दोस्त गौरव से अपने मन की बात बताता है।गौरव उसे कहता है-” मेरे दोस्त!धैर्य रखो।बहुत जल्द ही इस राज से पर्दा उठेगा।”
अमन के बेचैन मन को अभी भी शान्ति नहीं मिली है।वह अपने-आप को सांत्वना देते हुए कहता है-“मनुष्य के जीवन में कब क्या परिस्थिति उत्पन्न हो जाएँ,कोई नहीं जानता?बुरा समय आने पर मनुष्य को अपना धीरज ,अपना मानवीय धर्म,विवेक और कर्त्तव्य बनाए रखना चाहिए। मोनिका की ब्लैकमेलिंग रुपी बुराई को मानने से उसके षड़यंत्र में फँसना तो निश्चित ही था।”
एक सप्ताह के बाद इंस्पेक्टर गौरव अमन को थाने बुलाता है।थाने में मोनिका और उसके तीनों दोस्त सिर झुकाए खड़े हैं।
इंस्पेक्टर गौरव षड़यंत्र का खुलासा करते हुए कहता है-“मेरे दोस्त इनके अपराध के बारे में सुनो।ये लोग सुनसान रास्ते पर अकेले व्यक्ति को अपना शिकार बनाते हैं।एक बदमाश गिरकर मरने का नाटक करता है।उसी दिन किसी भिखारी को मारकर उसी जगह पर फेंक देते हैं और बचानेवाले व्यक्ति से मर्डर के नाम पर ब्लैकमेलिंग करते हैं।”
अमन-” दोस्त!मैंने तो मोनिका को मजबूर लड़की समझकर मदद करने की कोशिश की थी!”
इंस्पेक्टर गौरव-” दोस्त!ऐसे ही संस्कारहीन लोग अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए घर,परिवार, समाज और देश का नुकसान करते हैं।इनका अपना तो कोई मान-सम्मान रहता ही नहीं है,ये दूसरों के भी मान-सम्मान पर कालिख का कलंक लगाते हैं।ऐसे संस्कारहीन लोग कोयला के समान होते हैं,बुझा हुआ कोयला हाथ काला करता है और धधकता हुआ कोयला हाथ जला कर रख देता है।”
अमन-” मुझे इस परेशानी से बचाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया!”
इंस्पेक्टर गौरव -“शुक्रिया की क्या बात है दोस्त?मैंने तो बस अपना कर्त्तव्य निभाया है।ये संस्कारहीन अपराधी समाज में कलंक हैं।जैसे स्वाति नक्षत्र में बरसनेवाले बादल की बूँदें अगर केले के तने में चली जाएँ,तो कपूर बन जाती है,सीप में मोती और वहीं बूँदें साँप के मुँह में जहर।ऐसे संस्कारहीन लोग समाज के लिए मोती बनने की अपेक्षा भयानक विषधर बन जाते हैं।”
अमन एक बार फिर दोस्त को शुक्रिया कहकर खुशी मन से घर चला जाता है।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)