संस्कार हीन बच्चे – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

सविता का पार्थिव शरीर बिस्तर पर पड़ा था । आसपास की बहुत सी महिलाएं उसके पास बैठी थी । अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। सविता की दो बेटियां थीं जो अभी तक नहीं आ पाई थी उन्हीं का इंतजार हो रहा था।बेटा बाहर खड़ा था और बहू बेशरम सी दूर बैठी थी।

सभी महिलाएं आपस में यही बातें कर रही थी कि अरे सविता की तो भगवान ने सुन ली कैसी जिंदगी जी रही थी सविता। इतने में सविता की दोनों बेटियां आ गई और मां से लिपट कर रोने लगी आखिर मां थी क्या केवल बेटियों की ही मां थी बेटे की नहीं जो बाहर सूखी आंखें लिए निर्लज्ज सा खड़ा है । सभी महिलाएं बेटियों को दिलासा दे रही थी तेरी मां की तो सुधर गई बेटा मत रो।कैसी संस्कार हीन बहू और बेटा है बेचारी सविता का जीवन नर्क बना हुआ था।

                    सविता बड़ी ही खुशमिजाज, हमेशा हंसने वाली बहुत सीधी सादी सी महिला थी ।दो बेटियां और एक बेटा था ।पति ट्रेन ड्राइवर था।बस अपनी नौकरी में व्यस्त रहता और बाकी समय शराब पीकर डला रहता ।न घर की न बच्चों की न बीबी की कोई परवाह नहीं। इसी चक्कर में बेटा बिगड़ गया मां की सुनता ही नहीं था। बेटे ने न ढंग से पढ़ाई की और न ही कोई काम धंधा।ग़लत संगत में पड़ कर लव मैरिज कर बैठा ।ये तो अच्छा था कि बड़ी बेटी की शादी रिश्तेदारी में हो गई थी और छोटी बेटी ने लव मैरिज कर ली थी चलो बेटियां अपना अपना परिवार संभाल रही थी ।

                    फिर एक दिन ज्यादा शराब पीने की वजह से किसी गाड़ी से एक्सीडेंट हुआ और सविता का पति भगवान को प्यारा हो गया । घर में बेटे बहू का राज हो गया ।बेटा कुछ करता तो था नहीं पिता जी की पेंशन मिलती थी बस उसी से घर चलता था । कुछ समय बाद बहू के दो बच्चे भी हो गए बहू सविता को बहुत परेशान करती थी।बेटा सविता से पेंशन के पेपर पर साइन कराकर ले जाता और सारे पैसे निकाल लेता ।

मां को बस हजार दो हजार रूपए दे देता और बाकी सब अपने पास रख लेता ।बहू सविता को खाना पीना कुछ नहीं देती थी । सविता उसी पैसे से अपने लिए कुछ सब्जियां और दूध वगैरह ले लेती थी अपना खाना बनाने भर का सामान खुद ही अपने लिए दोनों समय का खाना बना कर कमरे में रख लेती थी ।

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और बेटा-बहू दिनभर बाजार से खाना मंगवा कर खाते रहते थे। धीरे धीरे कुछ लोगों को सविता के घर की सच्चाई पता लगी मंदिर या कहीं इधर उधर सविता से मुलाकात हो जाती तो वो बताती । मुहल्ले के दो चार लोगो ने हमदर्दी जताने की खातिर सविता के बेटे से बात करना चाही तो बेटा नाराज होकर बोलने लगा आपसब अपना अपना घर देखें मेरे घर में दखलंदाज़ी न करें ।सब अपना सा मुंह लेकर वापस आ गए ।

             फिर बहू बेटे ने सविता का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया उसको पीछे कमरे में कैद कर दिया न किसी से बात कर सकती थी न किसी से मिलने दिया जाता था। यहां तक कि बेटियों को भी घर आने नहीं दिया जाता था।उसी की पेंशन में ऐसा कर रहे थे और उसका ही ऐसा हाल बना दिया था। सविता की तबियत खराब होने पर भी उसको डाक्टर को नहीं दिखाया जाता था। इतने पर भी बहू हर समय सविता को जली कटी सुनाती रहती थी। सभी बोलते कैसी संस्कार हीन बहू है अब सभी ने उसके घर आना जाना छोड़ दिया था।

                      सविता अपने हाथों में चार सोने की चूड़ियां पहने हुए थी बहू चूड़ियां की बार मांग चुकी थी सविता से पर सविता नहीं दे रही थी ।आज सविता और बहू में उसी चूडी को लेकर झगड़ा हुआ था और सविता को बहू ने धक्का दे दिया था या छीना झपटी में सविता खुद गिर गई थी पता नहीं ।

बाथरूम की देहरी सविता के सिर में लगी और खून की धार बह निकली फिर तो बेटे बहू घबरा गए तुंरत एम्बुलेंस बुलाईं गई और सविता को अस्पताल में भर्ती कराया । जहां बीस दिन रहने के  बाद आज सविता की मृत्यु हो गई। इसलिए आज सभी बोल रहे थें ऐसी जिंदगी जीने से तो अच्छा रहा जो सविता मर गई।जिस मां की पेंशन से बेटा बहू ऐश कर रहे थे

वो पेंशन भी बंद हो गई।अब घर का खर्चा कैसे चले दो छोटे छोटे बच्चे , बहनों से भी नाता तोड लिया था भूखों मरने की नौबत आ गई । फिर मोहल्ले पड़ोस से पैसे मांगने लगा बेटा । जिसने अपनी मां की ऐसी दुर्दशा की हो कौन मदद करेगा उसकी । ऐसे कैसे संस्कार हीन बच्चे हो जाते हैं ।बड़ा दुख होता है ऐसे बच्चों और उनके परिवारों को देखकर।

   यह हमारे पड़ोस की ही सत्य घटना है ।अब भूखों मर रहे हैं मां बाप को तकलीफ़ देकर आप सुखी नहीं रह सकते ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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