जब हम दोनों भाई छोटे थे ,तो अक्सर पिता जी डांट कर, सजा देकर हमें हमारी गलती का एहसास करवा दिया करते थे और तब पिता जी की डांट से बेइजती महसूस नहीं होती थी… आज समय कितना बदल चुका है… पिताजी को हमसे जरा सी बात भी करनी होती है ,तो वह हमसे समय मांगते हैं…
लगता है जैसे ,अब हम पर उनका वह हक नहीं रहा…. जो वह पहले जता दिया करते थे…. मैं और भाई साहब बचपन से ही उनकी डांट खाते आ रहे थे …हमारी कोई बहन नहीं थी….. मां हमें बचपन में ही छोड़ कर चली गई थी.. उसके बाद पिता जी ने हीं हमारी देखभाल की… उनका कोयले का कारोबार था…
कारोबार के साथ-साथ हमें भी देखते और घर का भी ख्याल रखते …कभी-कभी हमारे बुआ जी आ जाया करते थे …परंतु वह भी अपना घर छोड़कर कब तक हमारे पास रहते… पिताजी ने घर पर खाना बनाने के लिए और साफ सफाई के लिए नौकर चाकर रखे हुए थे….
धीरे-धीरे हमारी पढ़ाई लिखाई पूरी हो गई और हम भी पिताजी के साथ कारोबार में हाथ बटाने लगे… फिर धीरे-धीरे पिताजी ने हमारे लिए लड़कियां पसंद की और पहले भाई साहब की शादी हुई और फिर कुछ साल बाद मेरी शादी…. मैंने और भाई साहब ने कभी ऊंची आवाज में पिताजी से बात नहीं की ….
पिताजी हर विषय पर बहुत समझदारी से काम लेते थे… कभी भी घर में किसी भी तरह की कोई परेशानी होती तो, पिताजी के सलाह मशवरे के बिना हम कोई काम ना करते…. हम दोनों की पत्नियों भी बहुत संस्कारी थी…. घर की शांति बनी रहे ,इसमें उनका भी बहुत योगदान रहा… भाई साहब के यहां जुड़वा बेटों ने जन्म लिया…
पता नहीं जब से भाई साहब बाप बने थे ,तब से बहुत अटपटा सा बर्ताव करने लग गए थे… भाभी भी कुछ बदली बदली सी थी… वह इस घर में ऐसे रहने लगे थे, जैसे मेहमान हो …घर के अहम मुद्दों पर किसी भी तरह की भागीदारी नहीं निभाते थे… मैं और मेरी पत्नी काफी आश्चर्य चकित थे… पिताजी भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे….
आज तक हम दोनों भाइयों में उन्होंने कोई फर्क नहीं किया था… परंतु भाई साहब के तेवर ऐसे लग रहे थे ,जैसे हम उनके अपने ना हो …बाप बनने के बाद वह अपने बेटों के प्रति कुछ ज्यादा ही नाजुक स्वभाव के हो गए थे… बाप बनने के कुछ ही महीनो बाद वे पिताजी से बंटवारे की मांग करने लगे… पिताजी को यह सुनकर बहुत बुरा लगा…
क्योंकि उनकी पूरी मेहनत जैसे खराब हो गई ….बचपन से लेकर हमारी शादी होने तक उन्होंने हम दोनों भाइयों में अटूट प्रेम, अटूट विश्वास पैदा करने की बहुत मेहनत लगाई थी ….जो आज खराब होती हुई नजर आई… पिताजी जानते थे कि एकता में बाल होता है …जब एक परिवार साथ में मिलजुल कर रहता है तो,
कोई भी मुसीबत वहां आने से पहले 10 बार सोचती है और अकेले इंसान पर कभी-कभी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है…. पिताजी ने भाई साहब से वजह जानने की कोशिश की, परंतु भाई साहब का एक ही जवाब था कि मुझे अपने बच्चों का भविष्य भी सोचना है ….पिताजी ने बहुत समझाया कि
अगर इस घर में तुम्हारा भविष्य कभी खतरे में नहीं आया ,तो फिर तुम्हारे बच्चों का भविष्य खतरे में कैसे आ सकता है…. परंतु भाई साहब को बस बटवारा ही करना था… वह अपनी संपत्ति अपने हाथों में लेना चाहते थे…. फिर पिताजी ने बहुत समझदारी दिखाई और भाई साहब को और मुझे दोनों को बैठाकर यह पूछा कि क्या हम दोनों में से कोई एक दूसरे को कभी नुकसान पहुंचा सकता है??? या एक दूसरे के खिलाफ जा सकता है ???
तो मेरा और भाई साहब का दोनों का जवाब था कि नहीं…. हम दोनों भाई कभी एक दूसरे का बुरा सोच भी नहीं सकते ,तो फिर पिताजी ने कहा कि जब तुम एक दूसरे से अलग रहोगे तो ,लोग तुम्हारी इसी जुदाई का फायदा उठाएंगे… जब तक तुम साथ हो तब तक कोई तुमसे गलत बात करने से पहले चार बार सोचेगा …
भले ही तुम बंटवारा चाहते हो ,मैं तुम दोनों की संपत्ति तुम दोनों के हाथों में दे देता हूं …इसमें मुझे कोई आपत्ती नहीं है, परंतु मैं तुमसे इतना ही चाहूंगा कि तुम एक ही घर में एक साथ रहो …भले ही अपनी संपत्ति अपने हाथों में रखो… पिताजी ने इतनी शालीनता के साथ भाई साहब को यह बात समझाइए कि भाई साहब उन्हें नाह नहीं
कर सके और आज भी हम एक ही घर में ,एक साथ रहते हैं …भले ही हमारी जमा पूंजी हमारे हाथों में है… परंतु कभी भी कोई ऊंच-नीच हो तो हम दोनों भाई एक दूसरे के साथ खड़े हो जाते हैं …सच में अगर घर की नींव समझदार हाथों में हो तो ,वह कभी कमजोर नहीं पड़ सकती और यही संस्कार हम आगे अपने बच्चों को भी दे पाएंगे….
स्वरचित रचना
शालिनी श्रीवास्तव