नई नई बहु आई थी हमारे घर में।
उसके पति से लेकर सास, नंनद, और घर के सभी बच्चे बहु के आगे पीछे घूम रहे थे।
बहु थोड़ी परेशान सी नजर आ रही थी। तो मैने उससे कहा बेटा थोड़ा आराम कर लो अपने कमरे में चले जाओ।
नहीं पापाजी ऐसी कोई बात नहीं है। मै ठीक हूं।
बहु एक अमीर घर से और बड़े खानदान से आई थी। और प्रेम विवाह था।तो हमे लगा लड़प्यार से पली है और ऐसे माहौल की आदत नहीं होगी।
लेकिन बहु बहुत संयमित व्यवहार की प्रतीत हो रही थी।
बात करते करते महीना बीत गया। अब घर में सब सामान्य सा वातावरण हो चुका था।
बहु भी पूरे परिवार से घुलमिल गई थी।
बहु ने अपनी दिनचर्या को बिल्कुल संतुलित कर दिया था।
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मुझे जल्दी जागने की आदत थी तो में सुबह 5 बजे उठ जाता था। बहु 5.30 बजे उठती और पहले मंदिर के बाहर से ही रामलला के दर्शन करती फिर हाथ मुंह धो के मटके में पानी बदलती। फिर वो ऊपर छत पे पेड़ पौधों को पानी दे आती।
फिर स्नान वगैरह कर के मेरे लिए चाय बिस्कुट ले आती ।
उसके बाद उसकी और उसकी रोज की दिनचर्या की शुरुआत हो जाती।
मैने अपने बेटे से कहा अब तुम दोनों कुछ दिन कही घूमफिर आओ।
दोनों 15 दिन के लिए जम्मूकश्मीर चले गए।
उनके जाने के बाद एकदम सुनसान सा हो गया घर। विशेषकर बहु की चहचहाट सुनाई नहीं दे रही थी।
जैसे तैसे समय निकल रहा था।
थोड़े दिन में बहु ने खुशखबरी सुनाई घर में सब बहुत प्रसन्न हो गए।
हमने घर में एक छोटा सा कार्यक्रम रख दिया और रामायण का पाठ करवा दिया।
हमने समधी जी को ये खुश खबरी सुनाई और गोद भराई का कार्यक्रम के लिए उनको दिन और समय बता दिया।निश्चित दिन बहु के घर से सब परिवार कार्यक्रम में शिरकत करने पधारे और बहु के पीहर से बहुत सी चीजें गहने और बहुत सा कैश भी ले आए।
हमने समधी से कहा इन सब की कोई जरूरत नहीं थी। तो उन्होंने रीतिरिवाज का वास्ता देके हमे मना लिया ।
कार्यक्रम अच्छे से हो गया अब बहु पीहर चली जाएगी फिर बच्चे के साथ ही आएगी।
बहु सुबह जल्दी उठ के अपने भाई के साथ शुभ समय पर अपने घर के लिए रवाना हो गई।
बहु के बिना घर सुना सुना लग रहा था। मेरा बहु से एक अलग ही रिश्ता बन गया था ।
न मुझे वो बहु लगती और नहीं बेटी लगती। शायद वो मेरा पूरा ख्याल रखती इसलिए एक अलग सा स्वार्थभरा रिश्ता बन गया था ।
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निश्चित समय पर बहु ने एक सुंदर सी पारी को जन्म दिया। और शुभ दिन लक्ष्मी के साथ हमारे घर प्रवेश किया।
बहु उसके पीहर से खूब सारा सामान ,सोना,चांदी लेके आई। साथ में सुकून के तौर पर बहुत सा कैश भी ले आई । मैने उनके भाई को कहा इतना सब करने की कोई जरूरत नहीं ऊपरवाले कि कृपा से सब कुछ है हमारे पास।
इसमें से कुछ चीजें रखेंगे बाकी आप वापस ले जाओ।
मैने बहु के भाई से कहा तुम्हारे पिताजी से मै बाद में बात कर लूंगा।
अगले दिन समधी जी का फोन आया और वो बहुत नाराज़ हो गए और थोड़ी बड़ी बड़ी बातें कर दी। जैसे मैने उनका कोई अपमान कर दिया हो।
थोड़ी बहस ज्यादा ही हो गई।
मैने उनसे कहा हमारे खानदान में लेन देने से ज्यादा प्रेम और अपनेपन को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
समधी को समझाया और उनसे कहा अगर आप को बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूं।
बहु ने ये सब बाते सुन ली। तो उसने कहा पापाजी आप को क्षमा मांगने की कोई जरूरत नहीं है। आप अपनी जगह सही है। और वो अपने पिताजी को ही डांटने लगी। थोड़ी देर में समधी जी भी शांत हो गए उन्हें भी समझ में आगया कि सब कुछ पैसा ही नहीं होता। प्रेम भाव ही सर्वोपरि है।
बहु के लिए मेरे दिल में और भी मान सम्मान बढ़ गया।
जरूरी नहीं हम बड़ों से ही कुछ सीखे कई बाते छोटों से भी सिख सकते है।
राजेश इसरानी