संस्कार और सम्मान – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

रितिका का मन कल शाम से ही बहुत खिन्न है। मन में बहुत ही उथल-पुथल मची हुई है।

वह समझ ही नहीं पा रही थी कि उससे कहां चूक हो गई ?? जिन्हें वह इतना सम्मान देती थी, अपना समझती थी। आज उन्होंने ही उसके संस्कारों पर उंगली उठा दी थी।

रितिका शुरू से ही बहुत मिलनसार लड़की थी। वह कहीं भी जाए सब में यूं घूल मिल जाती थी जैसे बरसों की पहचान हो। जब वह वहां से लौटती  तो अपने साथ कई नए रिश्ते जोड़ लाती थी।

पर आज न जाने क्यों उसे अपने स्वभाव पर बहुत पछतावा हो रहा था। रुधिर जो की रितिका के पति थे उनकी कही कुछ बातें उसके जहन में तूफान ला रही थी।

रुधिर अक्सर उससे कहा करते थे – रितिका तुम बहुत भोली हो। सब पर आसानी से विश्वास कर लेती हो, सबसे रिश्ते जोड़ लेती हो। इतनी भावनात्मक मत बनो। जमाना वैसा नहीं है जैसा तुम समझती हो। हर किसी को अपना समझना ठीक नहीं। लोग बहुत स्वार्थी होते हैं। ऐसी और भी कई हिदायतें रुधिर उसे हमेशा दिया करते थे। 

उसे अपने स्वभाव पर इतना भरोसा था कि वह सोचती थी कि उसके साथ तो कोई कभी ऐसा कर ही नहीं सकता। 

आज रुधिर की वही सारी बातें रितिका को सच लग रही थी। 

हुआ कुछ यूं था कि – कामिनी जी जो कई वर्षों से उसकी बिजनेस क्लाइंट थी। हमेशा उससे कहा करती थी कि वह उनकी छोटी बहन की तरह है। रितिका ने भी इसी बात को सच मानकर उन्हें दीदी कहना शुरू कर दिया था और वह उन्हें बड़ी बहन सा ही सम्मान देती थी। 

कई बार रितिका ने यह महसूस भी किया था, कामिनी जी का व्यवहार कुछ खास अच्छा नहीं रहता था उसके साथ। वह यह भी महसूस करती थी की कामिनी जी बहुत अमीर हैं तो वह कई बार बातों बातों में उसे उनसे कमतर होने का एहसास भी कराती हैं। वह कई बार ऑर्डर देकर मुकर जाती थी।

कई बार पेमेंट को लेकर बहुत लेट करती  थी। कई बार बहुत समय तक अपना सामान लेने में आनाकानी करती रहती थी। जिसकी वजह से रितिका को नुकसान भी हुआ था। उनसे अपनत्व के चलते वह यह सब बातें इग्नोर कर दिया करती थी।

व्यवसाय के मामले में रितिका स्पष्ट वादी थी। उसने कई बार उन्हें इस बारे में समझाने की कोशिश की थी।

 रितिका को लगता था कि व्यापार में पारदर्शिता होनी चाहिए। लेनदेन का व्यवहार उचित एवं समय पर होना चाहिए।

कामिनी जी के इस तरह के व्यवहार के पश्चात भी रितिका का भोला मन हमेशा उनमें अपनी बड़ी बहन ही देखता था। वह उनके दुर्व्यवहार को हमेशा भूल जाती थी।

कल भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उन्होंने कहा कुछ और किया कुछ। रितिका ने सामान्य भाव से उन्हें याद दिलाने की कोशिश की कि आपने क्या कहा था। जो कि उन्हें इतना बुरा लग गया कि उन्होंने रितिका से कह दिया कि तुम में बिल्कुल भी संस्कार नहीं है, तुम बहुत बदतमीज हो और भी बहुत कुछ।

इतना ही नहीं उन्होंने रितिका की पूरी बात सुने बिना कॉल भी काट दिया और रितिका के नंबर को ब्लॉक भी कर दिया। रितिका अपने इस अपमान को सहन नहीं कर पा रही थी। उसका मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था।

क्या अमीर होना आपको यह अधिकार दे देता है कि आप दूसरों को हमेशा अपने से नीचा दिखाने की कोशिश करें??? क्या आप किसी से भी कोई रिश्ता जोड़े तो वह एक तरफा ही निभाया जाएगा?

ऐसे कई सवाल रितिका को लगातार परेशान किये जा रहे थे।

बस यही बात थी जो रितिका को कल से खाए जा रही थी। उसे लग रहा था कि रुधिर ठीक ही कहते हैं। हर किसी से अपनापन ठीक नहीं। किसके मन में आपके लिए क्या विचार है यह समझना इतना आसान नहीं। आजकल लोग रिश्ते केवल स्वार्थ के लिए ही जोड़ते हैं।

आज रितिका जमाने का सच समझ चुकी थी। उसने आज ही प्रण कर लिया था, अब से वह व्यापारिक रिश्तों को व्यापारिक ही रखेगी। अब अपनत्व का दायरा बहुत सीमित होगा। 

अब और कोई उसके संस्कारों पर उंगली नहीं उठा सकेगा। उसके सम्मान की रक्षा वह स्वयं करेगी। 

मगर उसका मन अभी भी बहुत दुखी था। क्योंकि उसने कभी भी किसी से रिश्ते इस तरह से नहीं तोड़े थे।

स्वरचित 

 दिक्षा बागदरे 

08/06/2024

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