संस्कार नहीं दिए क्या •••• (भाग 2)- अमिता कुचया 

अब रौनक को भी गुस्सा आ गया। वह कहने लगा ” क्यों इतनी देर से बकवास किए जा रही हो। तुम्हें फ्लैट भी चाहिए और  देखने  भी चलना नहीं है ,तो बाद में तुम मुझे दोष मत देना। ऐसा नहीं है या वैसा नहीं है।”

फिर सासुमा ने कहा -“बेटा थोड़ी देर से हम सब चलेंगे। ताकि बहू का ग़ुस्सा शांत‌ हो जाए। और उसे तुम  समझा सको। तुम ऐसा करो दोपहर की हाफ टाइम की छुट्टी ले लो।

अब क्या था, पल्लवी का अहम आड़े आ रहा था।उसे केवल यह महसूस हो रहा था। मेरे मन का कुछ नहीं हो रहा है।

अब पल्लवी को सासुमा की बात काटनी थी।तो मुंह फुलाकर कमरे में चली गई।

अब रौनक ने  पल्लवी से कहा-” आखिर हो क्या गया तुम्हें !,जो तुम इस तरह मां के साथ व्यवहार कर रही हो।”

फिर रौनक ने भी  कहा -“तुम मां के नजरिए से सोच सकती हो,वो धार्मिक प्रवृत्ति की है इसलिए उन्हें लगा कि आज का दिन अच्छा  है और कुछ नहीं है••• कुछ ऐसा नहीं कहा जो तुम्हें इतना बुरा लग रहा है।कल से ऐसा क्या हो गया कि जो तुम मां  को नजरांदाज कर रही हो?

तब पल्लवी ने कहा -” मैं कोई नजरांदाज नहीं कर रही हूं।मैं कल थकी थी। इसलिए कोई ज्यादा बात नहीं कर पाई।”




धीरे धीरे बात बढ़ने लगी। आवाज भी तेज होने लगी।

अब मां को दोनों की आवाज बाहर  हाल में आने लगी।

तब वो भी उनके कमरे में आ गई।बहू तुम कुछ तो लहजे में बात करो आखिर रौनक तुम्हारा पति है

तुम्हारी मां ने कोई संस्कार नहीं दिए क्या •••• पति से जो चिल्लाकर बात कर रही हो।बाहर तक आवाज आ रही है।

अब रौनक ने  मां से कहा- इसे कैसे शांत‌ करु ?

तब रौनक की मां ने सोचा कि मेरी और रौनक की ‌‌बातों का असर नहीं हो रहा है।चलो इसके मायके वालों को फोन करें।तब उसकी मां  को फोन किया गया।तब उसके मां बाप ने समझाया कि बेटा तुम किसी बात को जितना ज्यादा तूल दोगी उतनी ही  दुखी रहोगी।कम से कम सासुमा और दामाद जी से बदतमीजी मत करो।

मैंने तुम्हें सिखाया कि सदा बड़ों का सम्मान करो। हमने तो ऐसे संस्कार नहीं दिए कि तुम अपनी मनमानी करने लग जाओ।  तुममें बड़े का लहजा ही न रह जाए।

तुम्हारे पति ने तुम्हें ऐसा क्या कह दिया कि तुम उनसे तुनक कर बात कर रही हो।




तब फिर पल्लवी ने कहा मां मेरी सासुमा और रौनक ने सब तय कर लिया था। मुझे केवल औपचारिकता के लिए ही बुलाया है।

फिर मां ने समझा कर कहा पल्लवी अगर ऐसा ही दामाद जी को करना होता है तो उन्हें कोई तुम्हारी परमिशन या सलाह की जरूरत नहीं है। उन्होंने तुम्हारी इच्छा का मान रखा। तुम्हें वो और सासुमा अपने साथ ले जा रहे हैं।उनकी  मां को भी अनुभव है, पर तुम्हारी पसंद जाननी चाही और कुछ नहीं है। चुपचाप से अपनी ग़लती मानो और बात को मत बढ़ाओ । मुझे पता है कि तुम अपना पक्ष रख रही हो। और रौनक व समधन जी अपना । मुझे दोनों पहलू  दिख रहे हैं। इसलिए मुझे तुम ही ग़लत लग रही हो।

यह सब सुनकर पल्लवी हक्की बककी रह गई। और उसे लगा कि मां ने ही उसका साथ नहीं दिया। अब उसे रौनक और सासुमा  की बात माननी पड़ी। दोनों की सहमति से अच्छा फ्लैट ले लिया गया।

दोस्तों- एक ही सिक्के दो पहलू होते हैं, दोनों को अपनी -अपनी तरफ का दिखता है पर तीसरे को दोनों ओर का दिखने के कारण गलती कहां हो रही है वो समझ आती है। इसलिए अपनी बात को ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए।

बड़ो का सदा सम्मान करना चाहिए। हमें अपने अपने संस्कार नहीं भूलना चाहिए। बड़ो का सम्मान देकर उनके नजरिए से भी सोचने की कोशिश करनी चाहिए।

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आपकी दोस्त

अमिता कुचया ✍️

 

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