अनिल ओर सुनील, दोनो बचपन के दोस्त थे। इंजिनीरिंग करने के बाद अनिल अपने पिता के कारोबार में लग गया और सुनील मल्टी नेशनल कंपनी में नोकरी करने लगा। अनिल की शादी आशा से हुई और सुनील भी शादी में आया ओर उसे आशा की बहन सुमन पसंद आ गई। कुछ दिन बाद सुनील ने अनिल को अपने मन की बात बताई तो वो बहुत खुश हो गया ओर बोला, अब दोस्ती रिस्तेदारी में बदल जायेगी।
अनिल ने बात चलाई ओर रिश्ता पक्का हो गया ओर जल्दी ही शादी भी हो गई।
कहने को तो आशा और सुमन बहने थी, पर उनके व्यवहार में दिन रात का अन्तर था। जहां आशा हाई प्रोफाइल, फैशनेबल ओर शो ऑफ करने वाली , दूसरों को नीचा दिखाने वाली थीं वही सुमन सिंपल, मिलनसार, लोगो का सम्मान करने ओर पाठ पूजा करने वाली थी। आशा, सुमन को नीचा ओर छोटा दिखाने का कोई मौका नही छोड़ती थीं।
अनिल-आशा के यहाँ बेटा पैदा हुआ तो धूम धाम से पार्टी दी ओर उसका नाम अशोक रखा। पार्टी में सुनील अकेला गया, क्योंकि सुमन का नोवा महीना चल रहा था। सुमन के न आने से आशा काफी नाराज़ हुई ओर सुमन को काफी बुरा भला कहा। 20 दिन बाद सुमन ने भी एक लड़के को जन्म दिया ओर उसका नाम सतीश रखा।
समय के साथ साथ अनिल का बिसनेस बहुत फैल गया और उसका बेटा अशोक बी कॉम करके पिता के साथ ही काम पर लग गया। आशा का दिन किट्टी पार्टी और रात क्लब की हाई सोसायटी में बीतती, अनिल दिनभर बिज़नेस ओर रात में क्लब चला जाता, कभी पत्नी के साथ तो कभी अकेले दोस्तों के साथ।
बेटा भी मॉ बाप के नक्शे कदम पर चल पड़ा। अशोक ने पैसे वाली लड़की से लव मैरिज कर ली। शादी के बाद घर का महौल बिगड़ने लगा, सास बहू एक दूसरे को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगी। एक दिन अनिल को हार्ट अटैक हुआ और उसे बचाया नही जा सका। अनिल के जाने के बाद अशोक ने सारा कारोबार अपने हाथ मे ले लिया
और बहु ने सास के साथ बुरा बर्ताव शुरू कर दिया। जैसा बर्ताव आशा लोगो के साथ करती थीं, अब वही बर्ताव उसकी बहू उसके साथ करती थीं। अशोक सब देख कर भी अनदेखा कर देता था। अशोक अपनी पत्नी के साथ अक्सर क्लब /पार्टी में जाता और आशा घर मे अकेली रहती। उसकी किटी पार्टी वाली सहेलियों ने भी दूरी बना ली।
अब सुनील भी बडा ऑफिसर बनकर मुम्बई पहुंच चुका था ओर उसका बेटा सतीश इंजीनियर बन गया था ओर मुम्बई में ही नोकरी करने लगा। काम के दबाव के चलते अनिल ओर सुनील की फोन पर बाते बहुत कम हो गई थी, पर आशा और सुमन बराबर टच में रहते। अनिल की मौत की खबर मिलने पर सुनील ओर सुमन, आशा के यहाँ गए थे।
आशा अपनी उम्र से ज्यादा बूढ़ी लग रही थी, शायद घरेलु तनाव इसकी वजह थी। कुछ दिन बाद सुनील- सुमन वापस मुंबई आ गए और बराबर आशा का हाल चाल पूछते रहते। आशा की सेहत लगातार गिरती गई, कोई देखभाल वाला नही था ओर धीरे धीरे वो अवसाद का शिकार हो गई। फिर एक दिन अशोक ओर उसकी पत्नी आशा को अनाथालय छोड़ आये।
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कुछ समय बाद, सुनील ऑफिस के काम से दिल्ली गया तो आशा के बारे में पता चला। सुनील आशा तो अपने साथ मुम्बई ले आया, अच्छे डॉ से इलाज करवाया ओर सुमन ने अपनी बहन की बहुत सेवा की। दवा ओर सेवा रंग लाने लगी और आशा की तबीयत में सुधार होने लगा। लगभग सालभर के बाद वो सबको पहचानने लगी ओर धीरे धीरे पूरी तरह ठीक हो गई।
ठीक होने के बाद सबसे पहले अपने पति के बिज़नेस ओर घर को अपने हाथ में लेने की लिए अदालत का सहारा लिया। इस काम के लिये सुनील ने पूरा साथ दिया। जल्दी ही सारा कारोबार आशा के हाथ मे आ गया और अशोक को सारी जायदाद से बेदखल कर दिया। आशा, जो हरदम पैसे के गरूर में अंधी रहती थी,
इस घटना ने उसकी आँखे खोल दी। आशा ने सुनील व सुमन से रिक्वेस्ट करके सतीश को अपना बिजनेस पार्टनर बनाकर सारा करोबार सोप दिया और खुद को सोशल कार्य में व्यस्त कर लिया। अब उसे जिंदगी का असली मकसद समझ आया। आज आशा को समझ आ गया कि
उसकी इस हालत के कारण उसके क्लब, पब ओर किटी पार्टी ही है। आशा, जो सुमन को हमेशा नीचा दिखती और अपने पैसे का घमंड करती थी, आज उसके सामने शेर्मिदगी महसूस कर रही थीं,
क्योकि आज वो सुमन ओर उसके संस्कारो की बदौलत वो अपने पैरों पर फिर से खड़ा हो सकी। अशोक ओर सुनील के संस्कार में जमीन आसमान का अंतर है।अशोक के संस्कार ने अपनी मॉ को जो आंसू दिये, सुनील के संस्कार से वो आंसू बन गए मोती ।
लेखक
Mohindra Singh
(एम.पी.सिंह)
साप्ताहिक विषय – आंसू बन गए मोती
स्वरचित, अप्रकाशित
29 Mar 25