Moral stories in hindi : “देखो तो दोनों भाई बहन को कैसे बाइक निकाल कर चल पड़ते हैं पूरे शहर में फर्राटा मारने के लिए।” ये बात हो रही थी कुछ दिन पहले ही ट्रांसफर होकर आई छोटे से शहर के छोटे से मुहल्ले में रहने वाली सिंगल मदर गीता दत्त की बेटी मानवी और बेटे मानव के बारे में। दोनों जुड़वां थे और दोनों को बाइक राइडिंग का शौक था। दोनों भाई बहन एक दूसरे के दोस्त भी थे तो दोनों को किसी और के साथ की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
छोटा कस्बा होने के कारण सभी एक दूसरे को जानते थे और लड़कियाॅं तो कदापि बाइक नहीं दौड़ा सकती थी। ऐसे में स्नातक के प्रथम सत्र में पढ़ने वाली मानवी खुद का बाइक दौड़ा रही थी। अजूबा ही था ये तो। इसलिए जब तब चर्चा का विषय बनी रहती थी और दूसरा कारण था उसका जींस टी शर्ट पहनना। इन सब वजहों से घर वालों द्वारा मानवी को कोसे जाने और संस्कारहीन बताने के कारण दूसरे घरों की लड़कियाॅं मानवी से दूर ही रहती थी।
“हाॅं, तलाकशुदा माॅं के बच्चे हैं और माॅं तो दिनभर गायब ही रहती है। कहाॅं से लाएंगे संस्कार, जेब में थोड़े ना पड़े होते हैं।” मिसेज खन्ना ने मुॅंह बनाते हुए कहा।
“हमें क्या, खुद ही भुगतेगी।” बुराई पुराण बंद कर मिसेज खन्ना और मिसेज सिंह अपने अपने घरों की ओर चल पड़ी।
“अभी तो कॉलेज से आए हो, ये बन ठन कर कहाॅं चल देते हो तुम।” मिसेज सिंह घर आई तो बेटे रवि को बाहर जाने के लिए तैयार होते देख पूछने लगी।
“ओह हो मम्मी, टोका टोकी बंद करो। अब मैं बच्चा नहीं हूॅं।” कहकर रवि ये गया कि वो गया।
“अरे गीता, कहाॅं रहती हो, दिखती ही नहीं कभी। अपने बच्चों को समझाओ, कुछ संस्कार–वंस्कार दो भाई। इधर से उधर बाइक लेकर दोनों डोलते रहते हैं। कम से कम बेटी को तो कंट्रोल करो। जींस, स्कर्ट डाले डोलती रहती है। कल को कोई ऊॅंच–नीच हो गई तो कहाॅं मुॅंह छुपाती घुमोगी। वैसे इतने पैसे आए कैसे, जो दो–दो बाइक ले लिए। यहाॅं तो एक भी लेनी मुश्किल है।” मिसेज सिंह सब्जी लेने आई गीता को देखते ही एक साॅंस में सारी बातें इस कदर सुना गई, मानो सब कुछ उन्होंने इस समय के लिए ही रटा हुआ था।
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“भाभी, वो बच्चे काफी दिनों से अपनी पॉकेट मनी”….
“छोड़ो हमें क्या करना है गीता। कल को कहोगी मेरे बच्चे हैं, आपसे क्या लेना–देना। हमने अपना समझा, इसलिए कह दिया।” गीता को प्रतिक्रिया का कोई अवसर दिए बिना सब्जियों का थैला उठाकर मिसेज सिंह अपने घर के अहाते में चली गई।
“सच है भाभी, जो जैसा होता है, दूसरों के बारे में वैसी ही सोच रखता है। अरे इनका बेटा वो नेता जी के बेटे के साथ घूमते रहता है और इनसे कोई कहे तो मरने–मारने पर उतारू हो जाती हैं। यही सब औरों के बारे में भी बोलती हैं।” सब्जी तौलते हुए सब्जीवाला कहता है।
मिसेज सिंह की बातों को सिर झटक बाहर ही छोड़ सब्जीवाले के कथन का बिना कोई उत्तर दिए गीता अपने घर आकर काम में लग गई।
“सिंह आंटी क्या कह रही थी मम्मा।” मानवी गीता के कमरे में आती हुई पूछती है।
“कुछ नहीं बेटा, जिनके मन में जो आता है बोलते हैं। तुम लोग सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, इतना ही काफी है।” गीता मानवी को देख समझाती हुई कहती है।
“दोपहर भी सिंह आंटी और खन्ना आंटी हमें देखकर खुसुर–फुसुर कर रही थी। वो हमेशा सबके सामने हमें संस्कारहीन कहती रहती हैं ।” मानवी गीता से कहती है।
“कोई बात नहीं बेटा, बड़े हैं तो अपने से छोटों की चिंता करते हैं और कुछ नहीं। बेसिरपैर की बातों से ध्यान हटा कर जीवन में अच्छा करने की सोचो तुमलोग।” गीता मानवी को प्यार से अपने बगल में बिठाती हुई कहती है।
दिन, समय हवा के झोंको के माफिक गुजरता जा रहा था। मोहल्ले में गीता और उसके बच्चों को लेकर गॉसिप भी बदस्तूर जारी था। कभी कभी बच्चे इस बात को लेकर असहज हो जाते थे। लेकिन गीता उन्हें अपने लक्ष्य का ध्यान दिला कर एकाग्र होने कह बात रफा–दफा करने की कोशिश करती रहती है।
जीवन में भिन्न–भिन्न प्रकार के इंसान मिलते हैं, अबकी बातों को दिल से लगाना, प्रतिक्रिया देकर अपनी ऊर्जा का दोहन क्यों करना। ये सब बोल कर गीता बच्चों को समझा देती थी। लेकिन खुद को समझाना उसके लिए असंभव हो जाता था। गीता बच्चों की बातों को याद कर खोई सी ही थी कि अचानक बाहर से आते शोर से उसका ध्यान भंग हुआ और वो जब तक दरवाजे के पास जाकर देखती। भाभी, भाभी की आवाज के साथ उसके घर के दरवाजे को लोग पीटने लगे।
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भाभी, मानव को चाकू लग गई है और उसे बचाने में मानवी को भी चोट आई है। आप जल्दी अस्पताल चलिए। मोहल्ले के ही कुछ लोग गीता तक खबर लेकर आए थे।
बदहवास गीता जब अस्पताल पहुॅंची तब उसे वहाॅं उसे पता चला कि मिसेज खन्ना की बेटी को कुछ गुंडे टाइप लड़कों से बचाते हुए चाकू मानव को लगी। गनीमत थी कि खून ज्यादा नहीं बहा था और वो ठीक था और मानवी को भी खरोंच सी आई थी, जिसकी मरहम पट्टी कर दी गई थी। साथ ही गीता को ये भी मालूम हुआ कि उस गैंग में मिसेज सिंह का बेटा रवि भी शामिल था और अब वो सलाखों के पीछे है।
मम्मी, वो मेरे खर्चे पूरे नहीं होते हैं तो उन्होंने कहा था कि अगर मैं लवली को उन तक पहुॅंचा दूॅंगा तो वो मेरा सारा खर्च उठाएंगे। इसलिए….पुलिस स्टेशन में बैठा रवि और कुछ कहता उससे पहले ही गीता के हाथ का एक जोर का थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा था।
“मिसेज सिंह, अगर आपने पहली ही गलती पर अपने संस्कारी बेटे को ऐसे समझा दिया होता तो ना आज ये हवालात में होता और ना मेरा बेटा अस्पताल में और अब आप किसी के शौक से, किसी के कपड़ों से ऊपर उठकर संस्कारी और असंस्कारी की परिभाषा ना गढ़कर अपने बेटे पर ध्यान देती तो आपके बच्चे को ये दिन नहीं देखना पड़ता और मुझे गर्व है कि मेरे बच्चे किसी के लिए भी ढाल बन सकते हैं। काश आपने भी रवि को इज्जत करना सिखाया होता। संस्कार की कोई परिभाषा नहीं होती है, बस ये हमारा स्वभाव हमें ही दिखाता है मिसेज सिंह।” अपने ऑंसुओं को पोछ्ती गीता मिसेज सिंह को आईना दिखाती बोल रही थी।
आरती झा आद्या
दिल्ली