“नीलू दीदी आ रही हैं आज….सारे शॉपिंग बैग्स अलमारी में छुपा देना….नए कपड़े देख लिए तो हूबहू अपनी बेटी के लिए भी बिल्कुल वैसा ही बना देंगी…अब इतनी हैसियत तो है नहीं कि खरीद सकें इतने महँगे कपड़े… – कामिनी ने अपनी दोनों बेटियों से अपनी चचेरी ननद के लिए कहा।
नीलू दीदी की आर्थिक स्तिथि अच्छी न थी। सिलाई का काम बहुत अच्छा आता था…… मोहल्ले के कपड़े सिल कर घर चलाने में पति का साथ देती थीं। उनके मम्मी पापा अब इस दुनिया में नहीं थे….मायके के नाम पर ले दे के चाची-चाचा ही थे। वो कहते हैं न कि जिसका मायका होता है ससुराल में भी उसकी धाक होती है। बस इसीलिए तीज-त्योहारों पर आती थीं मायके। चाची( कामिनी की सास) के प्यार में कोई कमी न थी……बस उनका ही मोह खींच लाता लेकिन भाभी उनका तिरस्कार करने का कोई मौका नहीं छोड़तीं…..शर्मिंदा होकर नीलू जल्दी ही वहां से चली जाती।
समय का पहिया अपनी गति से चलता गया…..नीलू दीदी के सिलाई का हुनर उनकी बेटी काव्या में बखूबी आया। बचपन से तंगहाली देखकर बड़ी हुई काव्या बहुत ही महत्वाकांक्षी थी। काव्या ने फैशन डिजाइनिंग का कॉर्स करके बुटीक खोल लिया…और अपनी एक नई पहचान बनायी। देखते ही देखते शहर के नामी गिरामी बुटीक में उसकी गिनती होने लगी।
चाची के देहांत के बाद नीलू का पीहर में जाना न के बराबर हो गया। कामिनी का भी कभी बुलावा आया नहीं और नीलू बिन बुलाए गयी नहीं…आखिर उसका भी अपना आत्मसम्मान था।
आज 10 साल बाद-
कामिनी- दीदी……आपकी भतीजी का रिश्ता पक्का हो गया है…….लीजिए मिठाई खाइए…..आस-पास के बुटीक में पार्टी ड्रेसेस देखे…. लेकिन इसे पसन्द ही कुछ नहीं आया….सभी ने कहा कि लेटेस्ट डिज़ाइन सबसे पहले आपके बुटीक में ही आते हैं…लो बताओ….ये तो वही बात हो गयी…बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा…… सलोनी बेटा देख ले काव्या दीदी के साथ….अपना ही बुटीक है।
नीलू- काव्या…… सलोनी को सारी लेटेस्ट ड्रेस दिखा दो……और हाँ अलमारी में कुछ स्पेशल ड्रेसेस हैं वो जरूर दिखा देना। नीलू ने अलमारी शब्द पर जोर दिया तो कामिनी नज़रें चुराने लगी…… वैसे भाभी ड्रेसेस की शुरुआत ही 50,000 से है। आपकी हैसियत तो है न खरीदने की? नीलू ने एकदम से ये सवाल दाग दिया जिसके लिए कामिनी ज़रा भी तैयार नहीं थी। भाभी…….वो…….कामिनी का तो जैसे हलक ही सूख गया।
तभी एक नौकर कोल्ड्रिंक्स और स्नेक्स लेकर आया।
लीजिए भाभी………कोल्डड्रिंक पीजिए ……गले में तरावट आ जायेगी।
आपको क्या लगता है आप हमारे आने से पहले अलमारी में कपड़े छुपा देती थीं ….और हमें पता नहीं चलता था। भाभी…….हमें सब पता चल जाता था। आज भी आपके द्वारा किया हुआ एक-एक तिरस्कार याद है मुझे…..लेकिन सब कुछ देखकर भी मैं चुप रहती थी क्योंकि जानती थी “वक्त बेहतर जवाब देता है”।
लीजिए समोसा लीजिए आप…
तभी सलोनी एकदम से खुश होते हुए आती है…..
“मम्मा…. मम्मा ये देखो ….कितनी सुंदर ड्रेस है…मुझे बहुत पसंद आयी….बिल्कुल ऐसी ही तो मुझे चाहिए थी”।
बुआ मैं ये ले लूँ क्या? कितने की है ये ड्रेस?
“बुआ की तरफ से मेरी सलोनी के लिए सगाई का गिफ्ट है… रख ले”- नीलू ने सहज ही मुस्कुरा कर कहा।
कामिनी आँखें फाड़कर नीलू की तरफ देखती है।
नीलू ने पलक झपकाकर आश्वासन दिया कि हाँ मैं सही कह रही हूँ। कामिनी की आँखों से पश्चाताप के आँसू झलक आये।
तो, दोस्तों….आपको क्या लगता है……कामिनी को उसकी गलती का एहसास करवा कर नीलू ने सही किया या नहीं….
कमेंट में बताइएगा जरूर।
एक नयी कहानी लेकर जल्दी ही हाज़िर होती हूँ।
आपकी ब्लॉगर दोस्त-
अनु अग्रवाल