मंदिर के प्रांगण में 44 वर्षीय स्वाति की श्रद्धांजलि सभा अब समाप्ति पर थी । शांति पाठ के बाद दो मिनट का मौन खत्म होने को ही था कि निस्तब्धता को भंग करती कुछ आवाजें प्रांगण में गूंजने लगी “नहीं निखिल, रुको निखिल, रुक जाओ बेटा”
शांत वातावरण में ये आवाजें एक धमाका सी लगी। सभी लोगों की नजरें उठी, देखा 45-46 वर्षीय निखिल, दिवगंता स्वाति का पति, दृढ़ कदमों से स्टेज की तरह बढ़ा जा रहा था – आवाजों को अनसुना करते हुए नजरों को अनदेखा करते हुए ।
हॉल खचाखच भरा हुआ था । होता भी क्यों ना स्वाति शहर के जाने-माने डॉक्टर दंपत्ति चंदानी जी की छोटी बेटी थी वह खुद भी एक डॉक्टर थी और शादी भी एक डॉक्टर से की थी । निखिल ने आगे बढ़कर पंडित जी के कान में कुछ कहा
और फिर माइक अपने हाथ में ले लिया चारों तरफ देखा । नजरें घूमती हुई डॉ चंदानी दंपति की तरफ पड़ी और ठहर सी गई । हॉल में पूर्ण रूप से शांति छा गई । बस सांसों के उतार-चढ़ाव की आवाजें आ रही थी। “आप सब लोग आज
मुझे यहां देख कर हैरान हो रहे होंगे क्योंकि मौका ही ऐसा है और मैं यहां पर खड़ा आपसे बातें करना चाह रहा हूं पर क्या करूं आज के बाद तो क्या अभी से ही सब खत्म हो गया है । पिछले 18 वर्षों से मैंने और मेरे मम्मी पापा ने जो भोगा है
वह एक अलग कहानी है और आप में से बहुत लोगों को शायद पता भी होगा लेकिन वह कितनी सच्ची है और मैं कितना सही हूं वह शायद ज्यादातर लोगों को नहीं पता क्योंकि जो बार बार बोला जाता है जो बार बार कहा जाता है
वही सच माना जाता है हम सिक्के का एक ही पहलू देखते हैं दूसरी तरफ देखने की कोशिश ही नहीं करते हैं मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ । किसी ने भी एक बार भी मुझसे आकर यह नहीं पूछा कि क्या सच है और क्या झूठ क्योंकि आपकी नजरों में मुझे एक चरित्रहीन,
बेटियों को नापसंद करने वाला व जन्म से पहले उनकी हत्या की कोशिश करने वाला एक असभ्य इंसान बताया गया जिसने सिर्फ अपने माता पिता को खुश करने के लिए अपनी पत्नी व मासूम बच्ची का त्याग कर दिया उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया क्योंकि मैं लड़की नहीं चाहता था
मेरे माता-पिता को पोते की चाहत थी यही जानते हैं ना आप लोग मेरे बारे में ? लेकिन आज मैं आपको, इस समाज को सच्चाई बताने के लिए ही आया हूं जानता हूं मौका नहीं है पर इसके बाद तो मुझे मौका ही नहीं मिलेगा आप लोगों के सामने इस बदसूरत तस्वीर का पर्दा उठाने का ।
मेरी और स्वाति की लव मैरिज थी एक साल हमने बहुत खुशी से गुजारा और फिर अचानक हालात बदलने लगे । स्वाति की मम्मी डॉक्टर चंदानी चाहती थी कि मैं घर दामाद बन जाऊं उनके साथ ही उनके घर में रहूं अपने माता पिता को छोड़ दूं जिनका मैं ही सहारा था ।
स्वाति को मैंने अपने हालात के बारे में पहले ही बता दिया था वह मान भी गई थी लेकिन फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ वह भी इस बात पर अड़ गई कि मम्मी पापा के घर में चलो वहीं रहेंगे मैं इस माहौल में नहीं रह सकती और फिर पता चला कि स्वाति मां बनने वाली है
अब तो दबाव बढ़ने ही लगा कि मैं बस यही आ जाऊं सोचिए आप लोग मैं अपने मां-बाप का इकलौता बेटा इस बुढ़ापे में उन्हें कैसे छोड़ सकता था पर नहीं जी ना इन्होंने समझना था ना स्वाति कुछ समझने के लिए तैयार थी । तब मैंने यह भी कहा कि चलो हम सब मेरे मम्मी पापा आप दोनों और मैं और स्वाति इकट्ठे रहते हैं
स्वाति की भी अच्छी देखभाल हो जाएगी आपकी इच्छा भी पूरी हो जाएगी और मेरे मम्मी पापा भी अकेले नहीं रहेंगे लेकिन वह बात तो सिरे से ही खारिज हो गई । मेरे मम्मी पापा ने फिर मुझे समझाया कि कोई बात नहीं तुम वैसा ही करो जैसा वह चाहती है
शायद उनका कोई बेटा नहीं है तो वह असुरक्षा की भावना से गिर गए हैं बड़ी बेटी और दामाद भी कनाडा चले गए हैं तो वह अकेलेपन के डर की वजह से ऐसा चाहते हैं । मैंने भी हालात से समझौता कर लिया और मैं यहां आ गया
लेकिन यहां आकर भी चैन नहीं – तुम अपने मम्मी पापा से क्यों मिलने गए वे यहां क्यों आए और हद तो तब हो गई जब मुझ पर एक और अफेयर का इल्जाम लगा दिया । स्वाति की मम्मी, जो आपकी नजरों में एक महान डॉक्टर हैं,
ने अपनी बेटी का भ्रूण परीक्षण करवाया, उनके लिए यह सब करवाना तो कोई बड़ी बात नहीं थी, पता चला बेटी है बस मुझ पर एक और इल्जाम लगा दिया कि मैं बेटी नहीं चाहता तो स्वाति पर दबाव डाल रहा हूं कि वह…..” कहते हुए निखिल का गला रूंध गया ।
हॉल में बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था । अपने आप को संभालते हुए निखिल ने एक तरफ इशारा करते हुए कहा मोहित भाई आप अच्छे रहे, यही सब आपके साथ भी हुआ था ना पर आप मजबूत निकले और देश छोड़कर कनाडा ही जा बसे ।
आप ऐसा कर सकते थे क्योंकि आपके मम्मी पापा के पास आपका बड़ा भाई और एक बहन भी थी और आप थोड़े मजबूत इरादे वाले भी थे आप झुके नहीं ।” निखिल ने अपने साढू भाई मोहित से कहा – “पर मैं अपने हालातों से मजबूर था
तब इन्होंने क्या किया मेरे मम्मी पापा को दहेज के केस में फंसा दिया मुझ पर चरित्र हीनता, भ्रूण हत्या का केस डाल दिया सोचिए इस उम्र में मेरे मम्मी पापा ने क्या क्या भोगा होगा यानी एक इकलौते बेटे के मां-बाप होने की उन्हें सजा मिली।
स्वाति जो एक बार मेरे घर से आई दोबारा उसने उस घर की शक्ल नही देखी । टीवी पर पत्रिकाओं में यानी सोशल मीडिया पर जमकर इंटरव्यू दिए जाते रहे यानी मुझे बदनाम करने के लिए जो किया जा सकता था किया गया आप सब ने भी वह सब देखा ही होगा ।
मेरी बेटी हुई मुझे उससे मिलने नहीं दिया जाता था । बड़ी होती बेटी के मन में जहर अलग से घोला जाने लगा । स्वाति तो अपनी अक्ल से काम ही नहीं करती थी जो उसकी मम्मी ने चाबी भरी बस वह उसी लय पर नाचती थी । आज क्या मिला इन सब को ।
स्वाति पिछले एक साल से अपनी बीमारी, कैंसर से जूझ रही थी । मुझे अपनी पत्नी से ही मिलने की इजाजत ना थी । मैं हॉस्पिटल से ही वापस आ जाता था क्योंकि मुझे अंदर जाने नहीं दिया जाता था । तब एक दिन जब मोहित भाई जो यहां आए हुए थे
उन्होंने मुझे चुपचाप बुलाकर स्वाति से मिलवाया। स्वाति के पास कहने के लिए कुछ ना था वह मानती थी कि वह अपनी मां के आगे बेबस थी कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि मम्मी ने धमकी दी थी कि वह आत्महत्या कर लेंगी अगर मैं निखिल के पास वापस चली जाऊंगी
और इसके लिए भी वह निखिल को ही फंसा देगी। मोहित भाई आप इन सब बातों के गवाह है ना । निखिल ने मोहित की तरफ देखते हुए कहा और मोहित ने बेझिझक हां में सिर हिला दिया। “अब आप ही सब बताइए मैं कहां गलत था ?
क्या इकलौता बेटा होना मेरा गुनाह था ? स्वाति से शादी करना मेरी गलती थी या फिर मेरी बेटी जो बरसों मुझसे दूर रही उसे किस चीज की सजा मिली ? मैं आपसे पूछता हूं डॉक्टर चंदानी अब आप क्या करेंगी? क्या मिला आपको सब की जिंदगियां तबाह करके न स्वाति खुश रही ना मुझे चैन से रहने दिया
और वह मासूम बच्ची उसे क्या मिला ? ठीक है आपके पास बहुत पैसा है आप दुनिया की हर खुशी, हर चीज उसे दे सकती हैं पर क्या अब उसे आप मां दे सकती हैं ? डॉक्टर तो दूसरों को जिंदगी देते हैं , लोग उन्हें भगवान का दूसरा रूप कहते हैं
तो फिर एक डॉक्टर होते हुए भी एक मां होते हुए भी आप इतनी असंवेदनशील कैसे हो गई कि कितनी जिंदगियों को ही आपने अपने अहम, अपने स्वार्थ, अपनी खुशी के लिए रौंद दिया । बस मुझे और कुछ नहीं कहना । रितिका बेटा मैंने यह हिम्मत सिर्फ तुम्हारे लिए की है ।
तुम मेरे पास आओ या ना आओ यह तुम्हारी मर्जी है पर कम से कम अपनी मां की तरह बेबस होकर किसी और जिंदगी को तबाह करने की कोशिश ना करना । बहुत तकलीफ होती है जब बेकसूर होते हुए भी आप को सजा का हकदार मान लिया जाता है
समाज आपको हिकारत की नजरों से देखता है तो जिंदगी एक बोझ लगने लग जाती है।” कहते हुए निखिल ने माइक पंडित जी की तरफ बढ़ाया और बाहर की तरफ बढ़ा कि पीछे से रितिका ने आकर पापा का हाथ थाम लिया उसके साथ मोहित भी खड़ा था और रितिका ने निखिल को देख कर कहा _ ” चलें पापा, अपने घर।”
शिप्पी नारंग
21/5/24
नई दिल्ली