समर्पण का सुख – शिप्पी नारंग : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: पार्किंग में कार पार्क कर मैं लॉन की तरफ बढ़ा। चारों तरफ रंगीन झालरें जगमगाहट पैदा कर रही थीं। लॉन में चारों तरफ से इत्र की भीनी भीनी महक आ रही थी। रफी साहब के पुराने रोमांटिक गाने, अक्टूबर की ठंडक का एहसास दिलाता वातावरण, गिलासों की खनक, हवा में तैरती खुशबू की लहरियां माहौल को बहुत ही खुशनुमा बना रहीं थी। मैंने प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही नजर इधर उधर दौड़ाई और तभी आनंद जी की नजर मुझ पर पड़ी। 

पत्नी की तरफ झुक कर कान में कुछ कहा और फिर दोनों  मुस्कराते हुए मेरी तरफ बढ़े तब तक मैंने आगे बढ़ कर अपना हाथ आनंद जी की ओर बढ़ाया और उन्होंने गर्मजोशी से हाथ मिलाया और पत्नी की तरफ मुड़कर बोले  “यही है अविनाश,  हमारे ऑफिस की जान” मिसेज आनंद ने मेरी तरफ देखा मैंने हाथ में पकड़ा हुआ गिफ्ट और बुके उनकी तरफ बढ़ाया और कहा ” आप दोनों को बेटी की शादी की बहुत-बहुत बधाई।” 

मिसेज आनंद ने मुस्कुराते हुए मेरे हाथ से दोनों चीजें ले ली और बोल “बहुत तारीफ सुनते थे आपकी,  चलो इसी बहाने आप आज हमें मिले तो…” “अरे खुशकिस्मत समझो अपने आप को ये वैसे किसी भी पार्टी वगैरह में नहीं जाते यहां आ गए यह हमारी जहेनसीबी”  आनंद जी ने अपने चिर परिचित लहजे में कहा तो मैंने कहा “नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है आपने इतने प्यार से और रोब से बुलाया तो आना ही पड़ा।

”  “चलो आए तो सही” आनंद जी ने हंसते हुए कहा और वेटर की तरफ इशारा करके बुलाने ही लगे थे कि मैंने जल्दी से कहा “अरे आप इतना तकल्लुफ ना करें आप बाकी सब को अटेंड करें मैं खुद ले लूंगा।”  “पक्की बात..??” मिसेज आनंद ने कहा और मैंने सिर हिलाकर हामी भर दी । आनंद जी हमारी कंपनी के सीईओ थे बहुत ही अच्छे ऑफिसर थे काम लेने में जितने कड़क थे व्यवहार में उतने ही नरम । काम में कोताही बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे लेकिन किसी की भी तकलीफ को नजरअंदाज भी नहीं करते थे ।

ऑफिस का माहौल हमेशा खुशनुमा बनाए रखते थे  इसलिए सारा स्टाफ आया था तो मेरा ना आना गलत होता । मैं हाथ में जूस का गिलास लिए आगे बढ़ा नजर दौड़ाने लगा कि कहीं कोई जगह मिल जाए बैठने के लिए । एक टेबल दिखी और मैं उस तरफ चला अचानक मेरा पांव किसी तार  से उलझा और मैं लड़खड़ा कर गिरने ही लगा था कि एक कुर्सी को थाम लिया ।

कुर्सी पर बैठी महिला एकदम हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और मुड़कर देखा “अविनाश…??”  “वाणी..??” दोनों के मुंह से एकदम निकला । “तुम यहां कैसे” दोनों ने एक साथ ही कहा और फिर हम दोनों ही हंसने लगे।  “बैठो” वाणी ने कहा मैं वहीं बैठ गया। “और कैसी हो ? यहां पार्टी में कैसे”  मैंने सवाल पूछा।

मिसेज आनंद मम्मी की बहुत ही खास दोस्त है तो आना पड़ा। ”  “आंटी जी नहीं आई ” मैंने पूछा और सन्न रह गया जब जवाब मिला कि मम्मी जी नहीं रही।  अब समझ नहीं आया कि अब आगे क्या बोलूं पर फिर हिम्मत जुटाकर पूछा “अंकल जी ठीक हैं ? कहां है आजकल”  “मेरे साथ ही हैं पंकज लंदन चला गया है तो पापा और मैं साथ ही हैं।”

“और तुम्हारे पतिदेव..? वह नहीं आए..?”  मैंने वाणी से पूछा दो क्षण की चुप्पी रही और फिर आवाज आई “नहीं, हम अलग हो गए हैं डाइवोर्स हो गया है” और अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं तभी वाणी की आवाज आई  “तुम सुनाओ,  अकेले आए हो पत्नी और बच्चे …”बात को अधूरी छोड़ दिया वाणी ने । ” हां एक बेटी है शीना..” वाणी ने गहरी आंखों से मुझे देखा आगे कुछ पूछा नहीं । मैं भी चुप रहा वाणी शायद समझ गई कि मैं भी अधूरा ही हूं ।

कभी मैं और वाणी दो जिस्म एक जान हुआ करते थे।  पूरे कैंपस में सबको पता था कि यह दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं । हमें भी पता था कि दोनों में से किसी के भी परिवार की तरफ से कोई एतराज ना होगा, पर शायद हम गलत थे। मेरे पेरेंट्स को और वाणी के पापा तो बिलकुल राजी थे पर वाणी की मम्मी को यह रिश्ता बिल्कुल मंजूर नहीं था ।

वह अपनी एक सहेली के बेटे से वाणी की शादी कराना चाहती थी जो एक बिजनेस फैमिली थी सब ने उन्हें बहुत समझाया पर वे कुछ भी सुनने समझने के लिए तैयार ना थी। तब वाणी के पापा ने यहां तक कह दिया कि दोनों कोर्ट मैरिज कर लो मैं तुम्हारे साथ हूं और वाणी की मम्मी को भनक लग गई और उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि अगर वाणी ने ऐसा किया तो वह अपनी जान दे देंगी और वाणी को यह मंजूर ना था।

उसने पापा और मुझे अपनी मजबूरी बता दी और हम लोग पीछे हट गए वाणी की शादी मम्मी की इच्छानुसार बहुत ही भव्य तरीके से उनकी सहेली के बेटे से हो गई और शादी के साल होते ना होते आंटी जी को समझ में आ गया कि उन्होंने जिंदगी की सबसे बड़ी भूल कर दी वाणी बिल्कुल खुश ना थी। परिवार दकियानूसी था, उनके लिए पैसा सर्वोपरि था। तब तक मैंने भी अपनी जॉब बदल दी और बेंगलुरु आ गया आज हम तकरीबन 6-7 साल के बाद मिल रहे थे ।

कुछ कहने के लिए मैंने सिर उठाया तो देखा वाणी के पापा सामने से चले आ रहे थे। मैंने उठकर पांव छू लिए । मुझे एकदम सामने देखकर वे अचंभित हो उठे और फिर अपने चिर-परिचित अंदाज में बोले – “हेलो यंग मैन कैसे हो..? यहां कैसे..? मैंने बताया और वे वहीं बैठ गए । मैंने मां बाबा के बारे में बताया और बेटी शीना के बारे में भी।

“वाह” उनके मुंह से निकला । हम इधर उधर की बात करते रहें । तभी वाणी ने कहा -“पापा मैं आपका खाना यहीं ले आती हूं आप आराम से बैठ कर खा लेना” अंकल ने हामी भर दी “ठीक है मेरे लिए ले आओ फिर तुम दोनों जाकर खा लेना।”  वाणी चली गई अंकल ने मुझे गहरी नजरों से देखा और कहा “वाणी का हाल देख रहे हो बेटा,  मां बाप के किए की सजा कई बार बच्चों को भुगतनी पड़ती है। बहुत जुल्म किए उन लोगों ने इस पर। 

पहला बच्चा हुआ जो पैदा होते ही मर गया।  दूसरी बार प्रेग्नेंट हुई तो पता चला कि लड़की होने वाली है तो जबरदस्ती अबॉर्शन करवा दिया । तुम्हारी आंटी यह सब देख कर सदमे में आ गई, तब मैंने ही वाणी को कह दिया कि तुम अलग हो जाओ मैं हमेशा से तुम्हारे साथ हूं और इतना सहने की कोई जरूरत नहीं है। 

तुम्हारी आंटी भी पीछे पड़ गई कहां तो पहले इसलिए मरना चाहती थी कि तुमसे शादी ना हो और अब इसलिए जीना चाहती थी कि तुमसे मिलकर माफी मांगे पर शायद ईश्वर को यह मंजूर ना था और वह चली गई।  कुछ क्षण चुप्पी रही।  मैं किस्मत और वक्त के बारे में सोचने लगा वक्त कुछ भी करा सकता है और किस्मत… वह तो पता नहीं क्या क्या  खेल दिखाती है ।

वाणी तब तक खाना ले आयी।  अंकल वही खाने लगे और हम भी खाने के लिए पंडाल में चले गए। दो-तीन घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला । बस मैं और अंकल ही बोल रहे थे वाणी कहीं खोई हुई थी बस हां हूं मैं जवाब दे रही थी । हम चलने लगे तभी मैंने अंकल से पूछा वह बेंगलुरु में कब तक है अंकल ने बताया 1

दिन के बाद की फ्लाइट है तो मैंने अगले दिन दोनों को अपने घर आने का न्योता दिया । वाणी कुछ कहती उससे पहले ही अंकल ने हामी भर दी। बस यह जरूर पूछा कि मां बाबा तो मिलेंगे और मैंने हंस कर कहा “हां मेरी बेटी भी मिलेगी।”  वाणी ने मेरी तरफ देखा कहा कुछ नहीं ।

अगले दिन अंकल और वाणी सुबह 11:00 बजे हमारे घर पर थे। मां बाबा अंकल  से बहुत ही प्यार से मिले जैसे कुछ हुआ ही न हो । अभी चाय पी ही रहे थे कि शीना भागती हुई कमरे में दाखिल हुई साथ में उसकी एक सहेली भी थी। ” दादी मां दादी मां.. मैं अंशु के घर जाऊं उनके घर ना एक छोटा सा पप्पी आया है मुझे देखना है,  मैं जाऊं”  आवाज का उतावलापन छुपाए ना छुप रहा था।  दादी मां ने हंसकर कहा-  “ठीक है चले जाना पर जो मेहमान आए हैं उन्हें नमस्ते तो करो” अब शीना की नजर वाणी और अंकल पर पड़ी।  जीभ को दांतो से काटते हुए सलज्ज मुस्कान से दोनों को हाथ जोड़कर नमस्ते की। 

वाणी ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और हाथ में लाए हुए गिफ्ट उसे पकड़ा दिए । शीना ने वाणी को थैंक्यू कहा और फिर दादी से अधीरता से पूछा – “मैं जाऊं दादीमां..??”  दादी मां ने मुस्कुराकर हामी भर दी और वो सहेली का हाथ पकड़कर भाग गई । शाम कैसे हुई पता ही नहीं चला ।

दोनों के वापिस जाने का समय हो रहा था अंकल और वाणी उठे ही थे कि बाबा वाणी की तरफ देख कर बोले “बेटा अपनी अमानत अब तुम संभाल लो,  हमारा कुछ नहीं पता पता नहीं,  कब बुलावा आ जाए अब हमारी हिम्मत जवाब दे रही है, शायद भगवान ने हमारी सुन ली जो तुम खुद यहां आ गई।”

  वाणी और अंकल की कुछ समझ में नहीं आया। “मेरी अमानत” –  वाणी बुदबुदाई।  “हां तुम्हारी अमानत, शीना, जो तुम्हारी ही बेटी है,  जिसे तुमने ही जन्म दिया था,  तुम्हारे पति और ससुराल वालों ने तुमसे झूठ बोला था कि बच्चा पैदा होते ही मर गया। यही शीना हुई थी।  तुम्हारे पति और ससुराल वालों को वारिस चाहिए था तो उन्होंने अस्पताल से सांठगांठ करके इसे अनाथाश्रम भिजवा दिया था। 

अविनाश का दोस्त पवन जिसे तुम भी जानती थी वो उसी अस्पताल में डॉक्टर था उसने अविनाश को तुम्हारे परिवार की कारस्तानी बता दी थी । अविनाश ने पता चलते ही पवन के साथ जाकर इसे कानूनी तौर पर गोद ले लिया।  अविनाश ने शादी भी नहीं की। तब से हम इसे तुम्हारी ही अमानत समझ कर पाल रहे हैं।  तुमसे मिलेंगे यह उम्मीद जरूर थी पर इन हालात में मिलेंगे यह ना पता था।

अविनाश ने कल पार्टी से आने के बाद हमें अपनी और तुम्हारी मुलाकात के बारे में बताया और यह भी बताया कि तुम आओगी तबसे हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे।  सन्नाटा इतना गहरा हो गया था कि बस सांसों के उतार-चढ़ाव को भी गिन लो और उसी सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज गूंजी  -“मम्मा.. आप मेरी मम्मा हो” सबने चौंक कर  दरवाजे की तरफ देखा शीना खड़ी थी। 

शायद उसने सब सुन लिया था शीना ने फिर पूछा-  “पापा सच बताओ ना.. यह मेरी मम्मा हैं..?” कोई कुछ कहता कि अंकल शीना के पास गए और उसे गोद में उठा लिया बोले “हां यह तुम्हारी ही मम्मा है और मैं तुम्हारा नानू”  मैंने वाणी की तरफ देखा वह पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ी थी अंकल शीना को गोद में उठाए हुए वाणी के पास आए  बोले “लो बेटा अपनी अमानत संभाल लो यह तुम्हारा ही खून है” और मेरी तरफ देखा बोले “बहुत सुनता था ईश्वर हमारे आस-पास ही होते हैं बस हम देख नहीं पाते पर आज तुम हमारे लिए वही बन कर आए हो  अब आगे मैं और क्या कहूं”  “आगे मैं बोल देता हूं बाबा बोले- “क्या आप अपनी बेटी को हमारी बहू बनाएंगे..??” और मेरा छोटा सा घर कितने ही दीयों  से रोशन हो गया।

#समर्पण

शिप्पी नारंग

 

 

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