“संपन्न ससुराल” –  अंजु अनंत : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : आज सुबह से ही रेणुका देवी खाने की तैयारियों में लगी थी। आज उनकी बेटी शादी के छह महीने बाद मायके आ रही थी। खाना कृति के पसंद का ही बन रहा है आज।

“वेनु बेटा जा जरा दुकान से दही ले आ, कृति के लिये बूंदी का रायता भी बना दू।”

“क्या माँ जब जानती हो जीजी आने वाली है तो ये सब तैयारी कल ही कर लेना था ना, देख रही हो बाहर कितनी तेज धूप है। बस इस गर्मी में मुझे ही दौड़ाओ आप” वेनु ने जवाब दिया।

“अरे अपनी जीजी के लिए इतना नही कर सकती तुम”

“रुको रेणुका मैं ही ले आता हूं बिटिया के लिए दही” कौशल (कृति के पिता) ने कहा और दही लेने चले गए।

सारी तैयारियां हो चुकी थी अब बस इंतेजार था कृति के आने का।

तभी घर के सामने चमचमाती कार खड़ी हुई। उसमे से भारी भरकम साड़ी पहने हुए कृति उतरी। ऊपर से नीचे तक सोने से लदी हुई। कृति के पति उमंग उसके घर वालों से मिल कर चले गए।

रेणुका और कौशल ने अपनी बिटिया के लिए हीरा जैसा लड़का ढूंढा था। कृति का ससुराल मायके से बहुत ही ज्यादा सम्पन्न था। कृति को खुश देख कर दोनों बहुत खुश थे। कृति सब के लिए कुछ ना कुछ लाई थी।

खाने की टेबल पर कृति अपने ससुराल वालों के बारे में बता रही थी, बहुत ही अच्छे है उसके ससुराल वाले। माँ बाप दोनो को संतोष हुआ कि चलो बिटिया खुश तो है।

“अरे माँ ठंडा पानी लाओ ये तो ज्यादा ठंडा नही है” कृति ने पानी का एक घूंट पीते ही कहा।

“अरे बेटा फ्रीज़ खराब हो गया है, रिपेयरिंग के लिए दिया है, घड़े का पानी भी तो ठंडा है और फायदा भी करता है” रेणुका देवी ने कहा।

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“पर मुझे फ्रीज़ का पानी पीने की आदत है, आप दूसरा फ्रीज़ क्यों नही ले लेते, मेरे ससुराल में तो तीन फ्रीज़ है। खराब हुआ तो दूसरा ले लेते है, कौन गर्मी में गरम पानी पिये।” कृति ने बहुत घमण्ड के साथ जवाब दिया।

कृति की बात पे उसके मम्मी पापा चुप रहे लेकिन वेनु चुप ना रह सकी-“जीजी कितने साल तो मटके का ही पानी पिये हो यहाँ, फ्रीज़ तो बहुत बाद में आया था, अब आपको फ्रीज़ के पानी की आदत हो गई”

कृति को गुस्सा आ गया। रेणुका ने वेनु को डांटा भी।

रेणुका का बहुत मन था कि अपनी बिटिया से बात करे लेकिन कृति सारा दिन अपने मोबाइल में ही लगी थी, कभी पति से कभी सास से कभी ननद से। मायके आ कर भी उसे मायके वालों के लिए समय नही था।

“मम्मी थोड़ा फ्रूट्स काट के दे दो ना, मुझे शाम को फ्रूट्स खाने के आदत है, आपको पता है मेरे ससुराल में शाम को फ्रूट्स खाते है नाश्ते में”

घर मे फल तो थे नही, वेनु को बाजार भेज के फल मंगवाई। बिटिया को यहां किसी भी प्रकार की कमी नही होने देना चाहती थी रेणुका। लेकिन शायद अब वो पहले वाली कृति नही थी वो। उसे मायके के प्यार दुलार से ज्यादा ससुराल की संपन्नता ज्यादा प्रभावित कर रही थी। बात-बात पे सिर्फ ससुराल की बड़ाई।

“लो बेटा आ गया नया फ्रीज़, वो दुकान वाला बोल रहा था कि पुराने फ्रीज़ में कम से कम पंद्रह दिन तो लगेंगे ही, इसलिए मैं ये नया ले आया, कृति बिटिया अब तुमको मटके का पानी नही पीना पड़ेगा” कौशल ने पुराने फ़्रिज़ की जगह नया फ़्रिज़ सेट करवा दिया।

रेणुका मन ही मन महीने के बजट का सोचने लगी। पंद्रह दिन की ही तो बात थी, फ्रीज़ लेने की जल्दी नही करनी चाहिए थी।

“पापा इतना छोटा फ्रीज़ क्यों लाये, डबल डोर वाला ज्यादा अच्छा रहता है मेरे ससुराल में तीनों फ्रीज़ डबल डोर ही है, खैर कोई बात नही ये भी ठीक ही है।” कृति ने मुँह बनाते हुए कहा।

कौशल जी और रेणुका जी चुप ही रहे। क्या हो गया उनकी बेटी को, शादी के बाद इतना बदल गई।

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कितना कर्जा ले कर उन्होंने कृति की शादी की थी, अपनी हैसियत से ज्यादा दिया था। आज वही बेटी हर बात पे सिर्फ ससुराल का ही गुणगान कर रही है। छह महीने में वहां की हर चीज में वो ढल गई, मायके के चौबीस साल बेईमानी से हो गए।

“उफ लाइट चली गई, मेरा तो दम घुटा जा रहा है। आप लोग इन्वर्टर क्यों नही लगवा लेते। मेरे ससुराल में तो पता ही नही चलती की बिजली कब चली गई कब आ गई” कृति ने अपने पल्लू से हवा करते हुए कहा।



“चलो ना जीजी आज छत पे सोएंगे, याद है पहले गर्मियों में कितना मजा आता था सब ऊपर सोते थे साथ मे। चलो इसी बहाने पुरानी यादें ताजा हो जायेगी।”

“हाँ बेटा मैने छत में बिस्तर लगा दिया है चलो मस्त ठंडी-ठंडी हवा चल रही है वही सब सोते है”

कृति कुछ ना बोली बस अपना मोबाइल उठा के छत में चली गई।

“आ बेटा यहाँ मेरे बगल में लेट जा दोनो खूब सारी बाते करेंगे” रेणुका ने कृति के लिए बिस्तर लगते कहा। लेकिन कृति अपना मोबाइल ले के उमंग को कॉल लगाने लगी।

“क्या खाक ठीक हु, पता है लाइट चली गई और इतनी गर्मी में मुझे छत में सोना पड़ रहा है। मुझे नही लगता मैं यहाँ ज्यादा दिन रह पाऊँगी। जल्दी से मुझे लेने आ जाना।”

रेणुका जी की आँखों मे आंसू आ गए। वो कुछ ना बोली पर सारी रात आंखों में ही काट ली।

अब तो कृति बात-बात में ससुराल का जिक्र करती लेकिन घर वाले चुप-चाप सुनते रहते।

“पापा आप एक एसी क्यों नही ले लेते, इतनी गर्मी में कूलर फेल हो जाते है, मेरे ससुराल में तो सब के कमरे में एक-एक एसी लगी हुई है।

कौशल जी कुछ बोलते उससे पहले ही रेणुका ने बोल दिया -“बेटा हम तेरे ससुराल वालों जितने अमीर नही है। हमारी जितनी चादर है उतना ही पैर फैला सकते है। मानती हूं तुम्हे सम्पन्न ससुराल मिल गया है लेकिन इसका मतलब ये तो नही की तुम अपने मायके की कदर ना करो। पूछो अपने पापा से कितना कर्ज ले कर तुम्हारी शादी करवाई है, अरे उतने पैसो में हम नया टीवी नया एसी नया फ्रीज़ क्या नया घर भी ले लेते। तुमको उस ससुराल की कदर है लेकिन जिनकी वजह से वो ससुराल तुम्हे मिला है उनकी कदर भूल गई, अरे बेटियां अपने घर की बुराई भूल कर उनकी अच्छाई बताती है। और एक तुम हो कि अपने मायके की ही बुराई कर रही हो। बेटा मैं भगवान से प्राथना करुँगी की तुम हमेशा खुश रहो लेकिन तुम्हे यहाँ उतनी फैसिलिटी नही मिल पाएगी जितनी तुम्हारे ससुराल में है क्योंकि हमारी एक और बेटी है जिसकी हमे शादी करनी है ताकि उसे भी तुम्हारी तरह सम्पन्न ससुराल मिल सके”

 अंजु अनंत

स्वरचित रचना

 

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